गंगा की सफाई को लेकर सरकार के दावों से इलाहाबाद हाईकोर्ट नाराज?
2 नवंबर 22। उत्तर प्रदेश में गंगा को प्रदूषण मुक्त करने की जमीनी स्थिति क्या है? सरकार का दावा है कि तेजी से काम हो रहा है। नमामि गंगे प्रोजैक्ट से गंगा की अविरलता और निर्मलता दोबारा प्राप्त हुई है। वहीं दूसरी तरफ हाईकोर्ट का मानना है कि गंगा प्रदूषण मुक्त करने के काम में तमाम विभागों में तालमेल का ही अभाव है। हाईकोर्ट काे कहना पड़ रहा है कि रिपोर्ट बहुत अच्छी है लेकिन जमीनी हकीकत कुछ और दिखाई दे रही है। रिपोर्ट में नाले टैप है, गंदा पानी नहीं जा रहा। लेकिन गंगा का प्रदूषण खत्म नहीं हो रहा, जितना उत्सर्जन है, शोधन क्षमता उससे काफी कम है। ऐसे में बड़ा सवाल है कि गंगा सफाई को लेकर सच क्या है?
गंगा सफाई को लेकर खुद मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ सराहना करते हुए कहते हैं कि पहले गंगा का जल आचमन योग्य नहीं होता था लेकिन आज गंगा में डॉल्फिन भी दिखाई पड़ती है।
वहीं दूसरी तरफ इलाहाबाद हाईकोर्ट गंगा प्रदूषण के लिए चल रहे सरकारी काम से खुश नहीं है। हाईकोर्ट ने अब गंगा प्रदूषण मामले में विभागों, निगमों व अधिकरणों में तालमेल न होने और विरोधाभासी हलफनामा दाखिल कर एक-दूसरे को जवाबदेह ठहराने पर सख्त रवैया अपना लिया है। कोर्ट ने प्रदेश के मुख्य सचिव को निर्देश दिया है कि वह इस मामले में आपसी तालमेल बैठाने के लिए सभी विभागों के अधिकारियों की एक कमिटी गठित करें, जो प्रदेश के महाधिवक्ता को कोर्ट की कार्यवाही में सहयोग करेंगे। कोर्ट ने इसके लिए मुख्य सचिव को जरूरी दिशा-निर्देश जारी करने का आदेश दिया है।
बता दें कोर्ट में जल निगम ग्रामीण के अधिवक्ता ने केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड की सीवेज ट्रीटमेंट प्लांट व गंगा जल प्रदूषण पर दाखिल रिपोर्ट की विश्वसनीयता पर सवाल खड़े किए और कहा कि आईआईटी कानपुर की रिपोर्ट बोर्ड की रिपोर्ट से भिन्न है। कोर्ट ने केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड के अधिवक्ता कुंवर बाल मुकुंद सिंह से स्थिति स्पष्ट करने को कहा है। उन्होंने जानकारी लेने के लिए समय मांगा। जनहित याचिका की अगली सुनवाई एक दिसंबर को होगी।