ये है भारत का आखिरी रेलवे स्टेशन, जहां आज भी है सब कुछ अंग्रेजों के जमाने का

इस स्टेशन को देखकर आपको थोड़ा अजीब लग सकता है। क्योंकि यह काफी पुराना है। इस स्टेशन में सबकुछ अंग्रेजों के जमाने का है। यहां तक की सिग्रल, संचार और स्टेशन से जुड़े उपकरण भी। यहां अब भी कार्डबोड के टिकट रखे हुए हैं, जो शायद ही अब कहीं देखने को मिलते होंगे। यहां पर स्टेशन में रखा टेलिफोन भी बाबा आदम के जमाने का है । इसी तरह सिग्रलों के लिए भी हाथ के गियरों का ही इस्तेमाल होता है। यहां नाम मात्र के कर्मचारी हैं।

ये है भारत का आखिरी रेलवे स्टेशन, जहां आज भी है सब कुछ अंग्रेजों के जमाने का
इस स्टेशन पर कोई भी यात्री ट्रेन नहीं रूकती। इसलिए टिकट काउंटर बंद कर दिया है। लेकिन यहां केवल वह मालगाड़ी ही रूकती हैं, जिन्हें रोहनपुर के रास्ते बांग्लादेश जाना होता है। यहां रूककर ये गाडियां सिग्नल का इंतजार करती हैं।

5 जुलाई। भारत में लगभग 7083 रेलवे स्टेशन्स हैं। इनमें से कुछ स्टेशन ऐसे हैं, जिनकी अपनी अलग कहानी है। आपने अब तक भारत के सबसे बड़े और सबसे छोटे रेलवे स्टेशन के बारे में पढ़ा और सुना होगा, लेकिन क्या आप जानते हैं कि भारत का आखिरी स्टेशन कौन सा है। इस स्टेशन का नाम है सिंहाबाद। ये कोई बड़ा स्टेशन नहीं है , लेकिन बहुत पुराना जरूर है। यह स्टेशन अंग्रेजों के समय का है। यहां आज भी सबकुछ वैसा ही है, जैसा अंग्रेज छोड़कर गए थे।

यहां अब तक कुछ भी नहीं बदला है। बांग्लादेश की सीमा से सटा यह भारत का आखिरी रेलवे स्टेशन है, जिसका इस्तेमाल मालगाडियों के ट्रांजिट के लिए किया जाता है। ये स्टेशन पश्चिम बंगाल के मालदा जिले के हबीबपुर इलाके में है। आपको जानकर हैरत होगी कि सिंहाबाद से लोग कुछ किमी दूर बांग्लादेश पैदल घूमने चले जाते हैं। इसके बाद भारत का कोई और रेलवे स्टेशन नहीं है। यह वास्तव में बहुत छोटा रेलवे स्टेशन है, जहां कोई चहल-पहल नहीं दिखती।

गांधी और सुभाष चंद बोस भी गुजरे इस रूट से -
ये स्टेशन कोलकाता से ढाका के बीच ट्रेन संपर्क के लिए इस्तेमाल होता था। चूंकि यह स्टेशन आजादी से पहले का है, इसलिए इस रूट का इस्तेमाल कई बार महात्मा गांधी और सुभाष चंद बोस ने ढाका जाने के लिए भी किया। एक जमाना था, जब यहां से दार्जिलिंग मेल जैसी ट्रेनें भी गुजरा करती थीं, पर अब यहां से सिर्फ मालगाडियां ही गुजरती हैं।

अंग्रेजों के जमाने का है सबकुछ -
इस स्टेशन को देखकर आपको थोड़ा अजीब लग सकता है। क्योंकि यह काफी पुराना है। इस स्टेशन में सबकुछ अंग्रेजों के जमाने का है। यहां तक की सिग्रल, संचार और स्टेशन से जुड़े उपकरण भी। यहां अब भी कार्डबोड के टिकट रखे हुए हैं, जो शायद ही अब कहीं देखने को मिलते होंगे। यहां पर स्टेशन में रखा टेलिफोन भी बाबा आदम के जमाने का है । इसी तरह सिग्रलों के लिए भी हाथ के गियरों का ही इस्तेमाल होता है। यहां नाम मात्र के कर्मचारी हैं।

बांग्लादेश जाने वाली ट्रेंने सिग्नल का इंतजार करती हैं-
इस स्टेशन पर कोई भी यात्री ट्रेन नहीं रूकती। इसलिए टिकट काउंटर बंद कर दिया है। लेकिन यहां केवल वह मालगाड़ी ही रूकती हैं, जिन्हें रोहनपुर के रास्ते बांग्लादेश जाना होता है। यहां रूककर ये गाडियां सिग्नल का इंतजार करती हैं।

दो यात्री ट्रेनें गुजरती हैं , पर रूकती नहीं-
ऐसा नहीं है कि यहां के लोग नहीं चाहते कि उनके लिए ट्रेन सुविधा शुरू हो। समय-समय पर इसकी मांग उठाई जाती रही है। यहां से दो ट्रेनें गुजरती हैं। मैत्री एक्सप्रेस और मैत्री एक्सप्रेस-1। वर्ष 2008 में कोलकाता से ढाका के लिए मैत्री एक्सप्रेस शुरू हुई थी। जो 375 किमी का सफर तय करती थी। वहीं दूसरी ट्रेन कोलकाता से बांग्लादेश के एक शहर खुलने तक जाती है। हालांकि यहां के लोगों को आज भी यहां से ट्रेनें शुरू होने का इंतजार है। लोगों को आज भी उम्मीद है कि उन्हें कभी न कभी ट्रेन में चढ़ने का मौका मिलेगा।