मौलवियों के फतवों से जागी चमत्कार की आस, इंडोनेशिया ने की शुरूआत
इस्लामिक देशों में मौलवियों की खूब चलती है तो क्या उनका फतवे और तकरीरें धरती बचाने की कोशिशों में बड़ा फर्क ला सकती हैं? एक देश ऐसा है जहां इसके लिये कोशिशें शुरू हुई हैं और उनका कुछ असर दिख रहा है।
21 अगस्त 22। जुमे की नमाज में उमड़ी मस्जिदों की भीड़ से लेकर रिहायशी मदरसों की क्लास तक, मौलवियों से आग्रह किया जा रहा है कि अपने प्रभाव का इस्तेमाल जलवायु परिवर्तन की आशंकाओं पर विजय पाने में करें। यह कहानी इंडोनेशिया की है जहां दुनिया में मुसलमानों की सबसे बड़ी आबादी है।
देश के शीर्ष मुस्लिम प्रतिनिधि पिछले महीने दक्षिण एशिया की सबसे बड़ी मस्जिद में जमा हुए। इस जमावड़े का मकसद था ग्लोबल वॉर्मिंग के बारे में जागरूकता फैलाने और जलवायु के समाधानों को इस्लाम की शिक्षा से जोड़ने के तरीकों पर चर्चा करना। मुस्लिम नेताओं ने एक फोरम भी बनाया है जिसका नाम रखा गया है, मुस्लिम कांग्रेस फॉर सस्टेनेबल इंडोनेशिया। इसके साथ ही उन्होंने मुस्लिम समुदाय से इस फोरम को दान देने के लिये अपील की है ताकि इन कोशिशों के लिये धन की व्यवस्था हो सके।(Fatwas of Muslim religious leaders)
पर्यावरण के लिये अभियान चलाने वालों का कहना है कि मुस्लिम नेता और इमाम जलवायु परिवर्तन से लड़ने और उसके बारे में लोगों की समझ बढ़ाने में अहम भूमिका निभा सकते हैं। इसके साथ ही वे सरकारों के साथ भी काम कर सकते हैं ताकि उनकी नीतियों में केवल आर्थिक विकास ना हो कर शाश्वत विकास पर भी ध्यान रहे।
जलवायु के लिये इंडोनेशिया की प्रतिबद्धता
2015 के पेरिस समझौते में ग्लोबल वॉर्मिंग से निबटने के लिये इंडोनेशिया ने 2030 तक उत्सर्जन घटाने के साथ ही 2060 या उससे पहले ही नेट जीरो तक पहुंचने की प्रतिबद्धता जताई है। इंडोनेशिया दुनिया में कार्बन उत्सर्जन के लिहाज से आठवां सबसे बड़ा देश है। मुस्लिम बहुल देश में 85 फीसदी बिजली जीवाश्म ईंधन के जरिये पैदा होती है और यह धरती के सबसे बड़े कोयला निर्यातकों में है। इसके साथ ही दुनिया का तीसरे सबसे बड़े वर्षावन और पाम ऑयल का सबसे बड़ा उत्पादक देश भी है। पर्यावरणवादी समूह इंडोनेशिया पर जंगलों की कटाई करके खजूर के पेड़ लगाने का आरोप लगाते हैं।(Fatwas of Muslim religious leaders)
जंगलों की कटाई का जलवायु परिवर्तन को रोकने के वैश्विक लक्ष्यों पर बड़ा असर पड़ता है। पेड़ दुनिया भर में धरती को गर्म करने वाले उत्सर्जन का करीब एक तिहाई हिस्सा सोख लेते हैं लेकिन जब इन्हें काटा या फिर जलाया जाता है तो यह वही कार्बन वापस वायुमंडल में उड़ेल देते हैं।
इंडोनेशिया पहले ही ग्लोबल वॉर्मिंग की आंच झेल रहा है। इसके शहर और तटवर्ती इलाके आये दिन बाढ़ और समुद्र का स्तर बढ़ने की समस्या से जूझ रहे हैं। दूसरी तरफ ग्रामीण इलाकों को जंगल की आग और सूखे से जूझना पड़ रहा है।
इंडोनेशइया की क्लाइमेट प्रोजेक्ट लीडर जुल्फिरा वार्ता का कहना है कि जलवायु परिवर्तन के मामले में मुस्लिम धर्मगुरुओं को उनके समुदायों में और अधिक नेतृत्व देने की जरूरत है।
इंडोनेशिया की 27 करोड़ आबादी में 90 फीसदी लोग मुसलमान हैं। देश में 8 लाख मस्जिद और 37 हजार रिहायशी मदरसे हैं। इसके अलावा करीब 170 यूनिवर्सिटियां हैं जिनका नेतृत्व मुसलमानों के हाथ में है। इस लिहाज से यह शिक्षा और इस मसले पर काम के लिये एक विशाल प्लेटफॉर्म मुहैया कराता है। "जलवायु और पर्यावरण के अभियानों को जिस नैतिक और आध्यात्मिक ऊर्जा की जरूरत है, उसमें इमाम बड़ा योगदान दे सकते हैं।"
ईको-मॉस्क और फतवा(Fatwas of Muslim religious leaders)
बहुत से इंडोनेशियाई लोग मानते हैं कि ईश्वर की आपदाओं और जलवायु परिवर्तन में भूमिका है। ग्रीनपीस इंडोनेशिया के रोमाधोन के मुताबिक मुस्लिम धर्मगुरु आज भी ज्यादातर लोगों के जीवन से जुड़े फैसलों में अहम भूमिका निभाते हैं। उनका कहना है कि धार्मिक नेताओं को धरती और उसकी मरम्मत के बारे में और ज्यादा इस्लामी ज्ञान को मथना चाहिये। इस दिशा में कुछ प्रगति हुई है।
इंडोनेशिया की सबसे उच्च परिषद ने 2014 में लुप्तप्राय जीवों को मारने के खिलाफ कानूनी रूप से गैरबाध्यकारी फतवा जारी किया। इसके दो साल बाद इसी तरह के कदम खेत और जंगलों में आग को रोकने के लिये भी उठाये गये।
पांच साल पहले इंडोनेशिया के नमाजियों ने 1,000 ईको-मॉस्क स्थापित करने का अभियान शुरू किया और 2018 में इस्लामिक संगठन प्लास्टिक कचरे को घटाने के लिये सरकार के साथ आये।