हिमाचल प्रदेश के किन्नौर में दुर्लभ खजाने की तलाश करेगी जीएसआई

हिमाचल प्रदेश के किन्नौर में दुर्लभ खजाने की तलाश करेगी जीएसआई
जीएसआई के अधिकारियों के अनुसार, 1992 से 1995 तक किए गए अन्वेषण सर्वेक्षणों के दौरान इस क्षेत्र से टिन, टंगस्टन, ट्रेस तत्वों और दुर्लभ पृथ्वी तत्वों की उपस्थिति की सूचना मिली थी।  कुछ क्षेत्रों को रॉक निर्माण, संरचना और खनिजकरण के लिए मैप किया गया था।

11 सितंबर 22।    हिमाचल प्रदेश के किन्नौर (Kinnaur in Himachal Pradesh)में भारतीय भूवैज्ञानिक सर्वेक्षण (जीएसआई) की टीम दुर्लभ खजाने टंगस्टन और कुछ अन्य तत्वों के दोहन के लिए एक परियोजना शुरू की है। टंगस्टन एक दुर्लभ धातु (rare metal tungsten)है जो प्राकृतिक रूप से पृथ्वी की पपड़ी में यौगिकों के रूप में पाई जाती है। पहली बार 1781 में खोजा गया, यह अपनी मजबूती के लिए जाना जाता है।

जीएसआई (GSI)के अधिकारियों के अनुसार, 1992 से 1995 तक किए गए अन्वेषण सर्वेक्षणों के दौरान इस क्षेत्र से टिन, टंगस्टन, ट्रेस तत्वों और दुर्लभ पृथ्वी तत्वों की उपस्थिति की सूचना मिली थी।  कुछ क्षेत्रों को रॉक निर्माण, संरचना और खनिजकरण के लिए मैप किया गया था।

मेहर नाला खंड, रिब्बा-किब्बर डोगरी खंड और चितकुल से एकत्र किए गए नमूनों से टंगस्टन के उत्पादन के संकेत मिल रहे हैं। अधिकारियों ने कहा कि लैंथेनम, सेरियम, नियोडिमियम, समैरियम और यूरोपियम जैसे दुर्लभ पृथ्वी तत्वों के उच्च मूल्य भी दर्ज किए गए हैं। यह क्षेत्र ऊबड़-खाबड़ है, जिसकी ऊंचाई 6,400 फीट से लेकर 14,100 फीट तक है। सतलुज और इसकी सहायक नदी, बसपा, इस क्षेत्र की मुख्य जल निकासी बनाती है, जिसका बड़ा हिस्सा संरक्षित वन क्षेत्र के अंतर्गत आता है।

यहां होता है टंगस्टन का प्रयोग

टंगस्टन का प्रयोग बिजली के बल्ब, फाइटर जेट, रॉकेट, एयरक्राफ्ट, एटॉमिक पावर प्लांट, ड्रिलिंग और कटिंग टूल्स, स्टेनलेस स्टील के वेल्डिंग , इलेक्ट्रोड, फ्लोरेसेंट लाइटिंग, दांत के इलाज के अलावा उच्च तापमान वाली जगह में इसका इस्तेमाल होता है। 2200 डिग्री सेंटीग्रेट तक तापमान वाली जगह पर इसका प्रयोग किया जा सकता है। लोहा में इसके मिश्रण से उसकी ताक़त बढ़ जाती है।