SC के जज व्यक्तिगत हमले से आहत सोशल मीडिया पर की तल्ख टिप्पणी

न्यायमूर्ति पारदीवाला (Supreme Court Judge JB Pardiwala) ने कहा कि न्यायाधीशों पर उनके निर्णयों के लिए व्यक्तिगत हमले एक खतरनाक परिदृश्य की ओर ले जाते हैं जहां न्यायाधीशों को यह सोचना पड़ता है कि कानून वास्तव में क्या सोचता है इसके बजाय मीडिया क्या सोचता है। यह कानून के शासन को नुकसान पहुंचाता है। सामाजिक और डिजिटल मीडिया मुख्य रूप से न्यायाधीशों के खिलाफ उनके निर्णयों के रचनात्मक आलोचनात्मक मूल्यांकन के बजाय व्यक्तिगत राय व्यक्त करने का सहारा लेता है। यह न्यायिक संस्थान को नुकसान पहुंचा रहा है और इसकी गरिमा को कम कर रहा है। निर्णयों का उपाय सोशल मीडिया के साथ नहीं है, यह केवल कोर्ट ही दे सकता है।

SC के जज व्यक्तिगत हमले से आहत सोशल मीडिया पर की तल्ख टिप्पणी
जस्टिस जेबी पारदीवाला ने कहा कि न्यायाधीश कभी अपनी जुबान नहीं बोलते हैं। वह कानून की भाषा को बोलते हैं और उसी के अनुसार अपने निर्णयों को सुनाते हैं।

5 जुलाई 22। बीजेपी की विवादित निलंबित प्रवक्ता नुपुर शर्मा (Nupur Sharma) की याचिका पर सुनवाई करने वाले सुप्रीम कोर्ट (Supreme Court) के जज ने निर्णय के लिए व्यक्तिगत हमले से आहत होकर कहा कि यह खतरनाक स्थितियां पैदा कर सकता है। उच्चतम न्यायालय (Supreme Court) के फैसलों पर जजों पर हो रहे व्यक्तिगत हमलों पर कड़ी टिप्पणी करते हुए जस्टिस जेबी पारदीवाला (Justice JB Pardiwala) ने एक समारोह में कहा कि न्यायाधीशों पर उनके फैसलों के लिए व्यक्तिगत हमले एक खतरनाक परिदृश्य की ओर ले जाते हैं। यह अनुचित है। उन्होंने कहा कि पूर्व भाजपा प्रवक्ता को पूरे देश से माफी मांगने की जरूरत है।

राजनीतिक एजेंडा के लिए सोशल मीडिया का हो रहा दुरुपयोग
जस्टिस जेबी पारदीवाला ने कहा कि न्यायाधीश कभी अपनी जुबान नहीं बोलते हैं। वह कानून की भाषा को बोलते हैं और उसी के अनुसार अपने निर्णयों को सुनाते हैं। भारत में, जिसे पूरी तरह से परिपक्व या परिभाषित लोकतंत्र के रूप में परिभाषित नहीं किया जा सकता है, सोशल मीडिया को पूरी तरह से कानूनी और संवैधानिक मुद्दों का राजनीतिकरण करने के लिए अक्सर नियोजित किया जाता है। उन्होंने कहा कि संविधान के तहत कानून के शासन को बनाए रखने के लिए पूरे देश में डिजिटल और सोशल मीडिया को विनियमित करने की आवश्यकता है। उन्होंने कहा कि आधुनिक समय के संदर्भ में, डिजिटल मीडिया द्वारा परीक्षण न्याय वितरण की प्रक्रिया में एक अनुचित हस्तक्षेप है और कई बार लक्ष्मण रेखा को पार कर जाता है।

न्यायमूर्ति पारदीवाला ने उदाहरण के तौर पर अयोध्या मामले का हवाला दिया। उन्होंने कहा कि यह एक भूमि और मालिकाना विवाद था, लेकिन जब तक अंतिम फैसला सुनाया गया, तब तक यह मुद्दा राजनीतिक रूप ले चुका था। यह आसानी से भूल गया था कि किसी न किसी न्यायाधीश को विवादास्पद नागरिक विवाद का फैसला करना था जो निर्विवाद रूप से था। देश की अदालत में चल रहा सबसे पुराना मुकदमा हजारों पन्नों का है। यहीं पर संवैधानिक अदालत के सामने किसी भी न्यायिक कार्यवाही का दिल गायब हो सकता है और विवाद का फैसला करने वाले न्यायाधीश थोड़ा हिल सकते हैं, जो कि नियम के खिलाफ है। यह कानून के शासन के लिए स्वस्थ नहीं है।

नुपुर शर्मा केस की सुनवाई की थी
दरअसल, जस्टिस जेबी पारदीवाला सुप्रीम कोर्ट के उस बेंच का हिस्सा थे जिसने बीजेपी की निलंबित प्रवक्ता नुपुर शर्मा की याचिका पर सुनवाई की है। पैगंबर मोहम्मद पर विवादित बयान देने वाली नुपुर शर्मा की बेंच ने कड़ी आलोचना की थी। जस्टिस पारदीवाला और जस्टिस सूर्यकांत दोनों को सोशल मीडिया पर यूजर्स ने उनकी याचिका की सुनवाई के दौरान नुपुर शर्मा के खिलाफ मौखिक टिप्पणियों के बाद निशाना बनाया जा रहा है।

नुपुर शर्मा ने इसलिए दायर की थी याचिका
नूपुर शर्मा ने सुप्रीम कोर्ट से मांग की थी कि देश भर में उनके खिलाफ दर्ज सभी प्राथमिकी रिपोर्ट को एक साथ जोड़कर दिल्ली स्थानांतरित किया जाए। अपनी याचिका में, उन्होंने यह भी कहा कि उनको और उनके परिवार को सुरक्षा खतरों का सामना करना पड़ रहा है और उन्हें सुरक्षा की आवश्यकता है।

कड़ी टिप्पणी की थी सुप्रीम कोर्ट ने...
पैगंबर मुहम्मद (Prophet Muhammad) पर विवादित टिप्पणी करने वाली बीजेपी की निलंबित प्रवक्ता नुपुर शर्मा (Nupur Sharma) को सुप्रीम कोर्ट (Supreme Court) ने जमकर लताड़ लगाई है। सुप्रीम कोर्ट ने लोअर कोर्ट्स को दरकिनार कर सीधे पहुंचने पर भी बीजेपी की पूर्व प्रवक्ता को फटकारा साथ ही नाम बदलकर याचिका दायर करने पर भी आपत्ति जताई।