‘पंजा’ नहीं ‘फूल’, हमारा ‘फूल’ नहीं अब ‘पंजा’, दल-बदल के चलते प्रत्याशियों के लिए चुनाव चिह्न बताना बना चुनौती 

‘पंजा’ नहीं ‘फूल’, हमारा ‘फूल’ नहीं अब ‘पंजा’, दल-बदल के चलते प्रत्याशियों के लिए चुनाव चिह्न बताना बना चुनौती 

अगले महीने होने जा रहे मप्र विधानसभा की कुल 28 विधानसभा सीटों के उपचुनाव में प्रत्याशियों के सामने एक नई मुसीबत आ खड़ी है। दरअसल, बड़े पैमाने पर ज्योतिरादित्य सिंधिया के साथ कांग्रेस के जो नेता भाजपा में आए, अब वे भाजपा के चुनाव चिह्न पर चुनावी मैदान में हैं। इसकी वजह से कुछ भाजपाई नेता भी रूठकर और टिकट कट जाने से कांग्रेस में आ गए और वे कांग्रेस के टिकट पर चुनावी मैदान में है, लेकिन अब इनके कार्यकर्ताओं को क्षेत्रों में जाकर जनता को नेताजी का इस बार का चुनाव चिह्न याद दिलाना पड़ रहा है।

ग्वालियर पूर्व विधानसभा- वर्ष 2018 के विधानसभा चुनाव में कांग्रेस के टिकट पर मुन्नालाल गोयल थे और भाजपा की ओर से डॉ. सतीश सिंह सिकरवार, लेकिन अब दोनों की पार्टियां बदल गई है। अब भाजपा के टिकट पर मुन्नालाल गोयल हैं और कांग्रेस के टिकट पर डॉ. सतीश सिंह सिकरवार। दोनों नेताओं के कार्यकर्ता क्षेत्र में जाकर खासतौर पर पिछड़ी बस्तियों में जाकर बता रहे हैं कि मुन्ना भैया का चुनाव चिह्न इस बार कमल का फूल है और इसी तरह डॉ. सतीश सिकरवार के कार्यकर्ता लोगों को बता रहे हैं कि उनका चुनाव चिह्न इस बार हाथ का पंजा है।

ग्वालियर विधानसभा- यहां प्रदेश के ऊर्जा मंत्री प्रद्युम्न सिंह तोमर इस बार भाजपा के टिकट पर चुनावी मैदान में हैं। उनके कार्यकर्ता भी लोगों को घर-घर जाकर बता रहे हैं कि वोट डालने जाओ, तो याद रखना इस बार नेताजी कमल के फूल पर खड़े हैं। हाथ के पंजा पर नहीं। दरअसल, प्रदुम्न सिंह तोमर सिंधिया खेमे से हैं और बहुत पुराने कांग्रेसी हैं। लंबे समय से जनता की नजर में उनकी छवि कांग्रेसी नेता की ही है, इसलिए कार्यकर्ता मतदाताओं को घर-घर जाकर उनका चुनाव चिन्ह रट्‌टू तोते की तरह याद दिला रहे हैं।

डबरा विधानसभा- डबरा में भी इसी तरह की अदला-बदली है। मंत्री इमरती देवी लगातार तीन बार से कांग्रेस के टिकट पर विधायक बनती रही हैं। क्षेत्र में उनकी भी छवि खांटी कांग्रेसी नेता की रही है, लेकिन अब वे भाजपा के टिकट पर चुनावी मैदान में हैं। उनके कार्यकर्ता वोटरों को याद दिला रहे हैं कि अपनी इमरती देवी इस बार कमल के फूल पर खड़ी हैं। ध्यान रखना हाथ का पंजा नहीं है उनका चुनाव चिह्न। वहीं भाजपा के टिकट पर डबरा विधानसभा सीट से चुनाव लड़ चुके सुरेश राजे इस बार कांग्रेस पार्टी में शामिल हो गए और उनके टिकट पर इमरती देवी के खिलाफ चुनावी मैदान में आ गए, इसलिए उनके कार्यकर्ता भी वोटरों को उनकी भाजपाई पहचान भुलाने और वोट डालते वक्त हाथ का पंजा दबाने की याद दिला रहे हैं।

मेहगांव- इसी तरह कांग्रेस के टिकट पर विधायक बने और बाद में सिंधिया के कहने पर भाजपा में शामिल हुए और फिर शिवराज कैबिनेट में राज्य मंत्री बने ओपीएस भदौरिया इस उपचुनाव में भाजपा के उम्मीदवार है। इसलिए मेहगांव के हर गली-नुक्कड़ में वोटरों को इस बार उनका चुनाव चिह्न कमल का फूल याद दिलाया जा रहा है।

भाजपा में पहुंचे प्रत्याशियों को ज्यादा समस्या
लंबे समय तक कांग्रेस में रहकर संघर्ष करने के बाद डेढ़ साल सत्ता में रहकर भारतीय जनता पार्टी में आने वाले नेताओं को इस समस्या से ज्यादा रूबरू होना पड़ रहा है। इन प्रत्याशियों के चेहरों को देखकर वोट डालने वाले वोटरों को ही चुनाव चिह्न समझाने की स्ट्रेटजी पर अब खासतौर पर वर्किंग करनी पड़ रही है।