आंखों के सामने अपने बच्चों के डूबने की घटना को याद कर भावुक हुए शिंदे

एकनाथ शिंदे ने कहा, “विधानसभा में बहुत कुछ बोला गया, लेकिन सुनील प्रभु जानते हैं कि मेरे साथ क्या-क्या हुआ… मुझे किस तरह छलनी-छलनी किया गया तुम सब जानते हो… एक तरफ मेरे से बातचीत के लिए बोलते हुए कुछ लोगो को भेजते हैं और दूसरी तरफ लोगों को मेरे घर पत्थरबाजी करने के लिए भेजते हैं…अगर मेरे घर पर पत्थर मारोगे, तो मेरे हजारों हाथ उठेंगे…” एकनाथ शिन्दे अपने बचपन के बुरे दौर, खाने-पीने की दिक्कत, बड़े होने पर अपने परिवार से जुड़ी परेशानी, अपने बच्चों को हादसे में खो देने का दुख याद कर भावुक हो गए और उनकी आंखों से आंसू झलक गए।

आंखों के सामने अपने बच्चों के डूबने की घटना को याद कर भावुक हुए शिंदे
एकनाथ शिंदे ने कहा कि विधानसभा में बहुत कुछ बोला गया, लेकिन सुनील प्रभु जानते हैं कि मेरे साथ क्या-क्या हुआ। मुझे किस तरह छलनी-छलनी किया गया, तुम सब जानते हो। एक तरफ मेरे से बातचीत के लिए बोलते हुए कुछ लोगो को भेजते हैं और दूसरी तरफ लोगों को मेरे घर पत्थरबाजी करने के लिए भेजते हैं।

4 जुलाई 22।  एकनाथ शिंदे सोमवार को विश्वास मत जीतने के बाद बतौर मुख्यमंत्री महाराष्ट्र विधानसभा में अपना पहला भाषण देते हुए भावुक हो गए। शिंदे ने शिवसेना के साथ विद्रोह के बाद अपने परिवार पर खतरे को लेकर बात करते हुए अपने दो बच्चों का जिक्र किया, जिनकी मृत्यु हो गई थी। उन्होंने कहा, “जब मैं ठाणे में शिवसेना पार्षद के रूप में काम कर रहा था, मैंने अपने 2 बच्चों को खो दिया और सोचा कि सब कुछ खत्म हो गया है … मैं टूट गया था लेकिन आनंद दीघे साहब ने मुझे राजनीति में बने रहने के लिए मना लिया।”

मुख्यमंत्री ने आगे कहा, “उन्होंने मेरे परिवार पर हमला किया… मेरे पिता जीवित हैं, मेरी मां की मृत्यु हो गई। मैं अपने माता-पिता को ज्यादा समय नहीं दे सका। जब मैं आता तो वे सो जाते और जब मैं सो जाता तो काम पर चले जाते। मैं अपने बेटे श्रीकांत को ज्यादा समय नहीं दे पाता। मेरे दो बच्चों की मृत्यु हो गई – उस समय, आनंद दीघे ने मुझे सांत्वना दी। मैं सोचता था कि जीने के लिए क्या है? मैं अपने परिवार के साथ रहूंगा।”

विश्वास मत जीतने के बाद विधानसभा के अपने पहले भाषण में सीएम एकनाथ शिंदे ने कहा, “मेरे साथ क्या-क्या हुआ… ये सब जानते हैं…। विधानपरिषद के पहले मुझे एक दिन बालासाहेब और आनंद दीघे की वो बाते याद आई कि अगर आदर्श को जीवन्त रखना है तो द्रोही बनो… मैंने लोगो को फोन लगाया और लोग साथ आए… मैं निकल गया… मेरे लोग मेरे साथ आने लगे… पूछा कहां जाना है… मैंने कहा पता नहीं… कब आएंगे? मैंने कहा पता नहीं… वक्त बीता और मेरे लोगों का भरोसा मुझ पर बढ़ता गया… एक दिन में ये सब नहीं हुआ… मेरे सभी 40 लोग मेरे साथ रहे, तब जाकर ये सरकार अस्तित्व में आई…”

उन्होंने आगे कहा, “विधानसभा में बहुत कुछ बोला गया, लेकिन सुनील प्रभु जानते हैं कि मेरे साथ क्या-क्या हुआ… मुझे किस तरह छलनी-छलनी किया गया तुम सब जानते हो… एक तरफ मेरे से बातचीत के लिए बोलते हुए कुछ लोगो को भेजते हैं और दूसरी तरफ लोगों को मेरे घर पत्थरबाजी करने के लिए भेजते हैं…अगर मेरे घर पर पत्थर मारोगे, तो मेरे हजारों हाथ उठेंगे…” एकनाथ शिन्दे अपने बचपन के बुरे दौर, खाने-पीने की दिक्कत, बड़े होने पर अपने परिवार से जुड़ी परेशानी, अपने बच्चों को हादसे में खो देने का दुख याद कर भावुक हो गए और उनकी आंखों से आंसू झलक गए।