कोरोना के चलते तेजी से बड़ी हो रहीं बच्चियां, जानवरों को भी लगेगा टीका

देश की जानी मानी न्यूट्रिशनिस्ट अंजलि मुखर्जी ने अपने इंस्टा पोस्ट में 40 की उम्र के बाद महिलाओं के वजन बढ़ने के कारणों पर बात की है। अंजलि ने बताया कि इस उम्र में मेटाबॉलिज्म स्लो हो जाता है। जिसके कारण उनका शरीर कम कैलोरी बर्न कर पाता है। साथ ही इस उम्र में बढ़ते वजन के लिए अंजलि ने आफ्टर प्रेग्नेंसी, मोनोपॉज को भी जिम्मेदार बताया। इससे बचने के लिए उन्होंने प्रोटीन और फाइबर से भरपूर खाना खाने के साथ विटामिन, कैल्शियम और आयरन सप्लीमेंट्स लेने की सलाह दी है।

कोरोना के चलते तेजी से बड़ी हो रहीं बच्चियां, जानवरों को भी लगेगा टीका

19 जून 22। कोरोना की वजह से दुनिया भर में काफी तब्दीली देखने को मिल रही है। लोगों के स्वास्थ्य और उनकी आदतों में भी परिवर्तन आया है। आज हम ऐसे ही कुछ परिवर्तनों के बारे में बात करने जा रहे हैं, जिन्हें विशेषज्ञों ने रेखांकित किया है।
1. कोविड की वजह से जल्दी बड़ी हो रही हैं बच्चियां, सैनिटाइटर और टेंशन ने भी बढ़ाई उम्र
पुणे के जहांगीर हॉस्पिटल के एक्सपर्ट्स ने अपनी रिसर्च में पाया है कि कोविड की वजह से होने वाली टेंशन और सैनिटाइजर का ज्यादा इस्तेमाल कम उम्र की लड़कियों को जल्दी बड़ा कर रहा है। कोविड की वजह से 8-9 साल तक की बच्चियों में भी जवानी के लक्षण दिखाई देने लगे हैं। रिसर्च में पाया गया है कि कोविड पीरियड के दौरान कम उम्र में प्यूबर्टी तक पहुंचने वाली बच्चियों की संख्या 3.6 गुना तक बढ़ी है। दूसरी ओर ‘डेली मेल’ की एक रिपोर्ट में भी कहा गया है कि अमेरिकी बच्चियां अपने मां के मुकाबले 2 से 3 साल पहले बड़ी हो रही हैं।
2. पीरियड्स की वजह से महिलाओं का दिमाग होता है पुरुषों से ज्यादा गर्म
कैम्ब्रिज यूनिवर्सिटी की ‘MRC लैबोरेटरी फॉर मॉलिक्यूलर बायोलॉजी’ की एक रिसर्च में बताया गया है कि महिलाओं का दिमाग पुरुषों की तुलना में ज्यादा गर्म होता है। हालांकि यह अंतर बमुश्किल आधे से 1 डिग्री का ही होता है। रिसर्च में बताया गया है कि पीरियड्स की वजह से महिलाओं का दिमाग ज्यादा गर्म होता है। रिसर्च में यह बात भी सामने आई है कि उम्र बढ़ने के साथ महिलाओं और पुरुषों का दिमाग ज्यादा गर्म होता जाता है।
3. भारत में जानवरों के लिए कोरोना का टीका बना, पहले आर्मी और पुलिस के डॉग्स को लगेगा
अब देश में इंसानों के साथ जानवरों को भी कोविड का टीका लगाया जाएगा। लेकिन यह टीका इंसानों के टीके से अलग होगा। इसके लिए इंडियन काउंसिल ऑफ एग्रीकल्चर रिसर्च (ICAR) ने ‘एंकोवैक्स’ नाम की एक वैक्सीन बनाई है। इस वैक्सीन को अलग-अलग जंगली और पालतू जानवरों पर ट्रायल में कारगर पाया गया। बताया जा रहा है कि इस वैक्सीन को सबसे पहले आर्मी और पुलिस के डॉग्स को लगाया जाएगा।
4. साइंस का कमालः आंख की जांच से पता चलेगा, कितना है हार्ट अटैक का खतरा
स्कॉटलैंड की एडिनबर्ग यूनिवर्सिटी के वैज्ञानिकों ने एक ऐसी मॉडर्न तकनीक डेवलप की है, जिसके सहारे आंख की जांच से हार्ट अटैक के खतरे का पता चलेगा। यानी अब आप अपनी आंख और हार्ट का ख्याल एक साथ रख सकती हैं। बायो बैंक से 5 लाख से ज्यादा डेटा की स्टडी के बाद रिसर्चर इस नतीजे पर पहुंचे कि रेटिना के पीछे मौजूद ब्लड वैसल्स के पैटर्न को देख कर हार्ट अटैक के खतरे का अंदाजा लगाया जा सकता है। इससे मामूली इलाज के सहारे हार्ट अटैक आने से पहले ही खतरे को काफी हद तक कम किया जा सकता है।
5. गर्भ में ही हो सकता है मंकीपॉक्स, बचने के लिए ऑपरेशन से डिलीवरी की सलाह
दुनिया भर में मंकीपॉक्स के बढ़ते मामलों के बीच एक स्टडी में बताया गया है कि इससे संक्रमित मां के अजन्मे बच्चे को भी हो सकता है। मां के ज्यादा संपर्क में आने से बच्चे को मंकीपॉक्स का खतरा भी ज्यादा होता है। इससे बचने के लिए रिसर्च करने वाले डॉक्टरों की टीम ने ऐसी मांओं को नॉर्मल डिलीवरी की जगह ऑपरेशन से बच्चा पैदा करने की सलाह दी है। बता दें कि मंकीपॉक्स बंदरों से इंसानों में फैला एक संक्रामक रोग है। इससे संक्रमित व्यक्ति के पूरे शरीर पर डरावने फोड़े निकल आते हैं।
6. फास्टिंग में ब्लैक कॉफी दे सकती है तकलीफ, एसिडिटी होगी और नींद भगा देगी कैफीन
फास्टिंग में एनर्जी पाने के लिए लोग अक्सर ब्लैक कॉफी ज्यादा पीने लगते हैं। लेकिन सीनियर न्यूट्रिशनिस्ट लवनीत बत्रा का कहना है कि ऐसा करना खतरनाक हो सकता है। विशेषकर उनके लिए जो एसिडिटी, हाई ब्लड प्रेशर और हार्ट संबंधी परेशानियों से जूझ रहे हों। लवनीत ने अपने एक इंस्टाग्राम पोस्ट में बताया कि फास्टिंग के दौरान कभी-कभार कॉफी पीना ठीक है। लेकिन खाली पेट ज्यादा कैफीन नुकसानदायक हो सकती है। कैफीन की अधिकता आपकी नींद भी भगा सकती है।
7. ऑटिस्टिक प्राइड डेः इस बीमारी से पीड़ित बच्चे बार-बार एक ही काम को दोहराते हैं
ऑटिज्म से पीड़ित बच्चों के आत्मविश्वास को बढ़ाने और उन्हें बेहतर माहौल देने के लिए हर साल 18 जून को ‘ऑटिस्टिक प्राइड डे’ मनाया जाता है। दरअसल, ऑटिज्म एक जेनेटिक बीमारी है। इससे पीड़ित बच्चों का मानसिक विकास रुक जाता है। ऐसे बच्चे एक ही काम को बार-बार दोहराते रहते हैं। उन्हें कुछ नया सीखने में काफी परेशानी होती है। इस न्यूरोलॉजिकल डिसऑर्डर की शुरुआत बचपन में ही होती है। इससे पीड़ित 40% से ज्यादा बच्चे बोल भी नहीं पाते।