अमृत महोत्सव तो ठीक, पर यह न भूलें, देश में 27 करोड़ लोग अब भी गरीब

अमृत महोत्सव तो ठीक, पर यह न भूलें, देश में 27 करोड़ लोग अब भी गरीब
नेशनल कैंपेन कमिटी फॉर इरैडिकेशन ऑफ बॉन्डेड लेबर के राष्ट्रीय संयोजक निर्मल गोराना कहते हैं,

14 अगस्त 22।  भारत में आज भी 27 करोड़ लोग गरीबी रेखा से नीचे (27 crore people below poverty line)रहते हैं। आजादी के समय देश की 80 फीसदी आबादी गरीबी रेखा से नीचे थी। आज 22 फीसदी लोग गरीबी में जीवन यापन कर रहे हैं लेकिन संख्या के तौर पर इसमें कोई खास बदलाव नहीं हुआ है। राज्यों की बात की जाए तो छत्तीसगढ़ सबसे ज्यादा गरीब राज्य है। झारखंड, मध्य प्रदेश, ओडिशा और असम में भी गरीबी चरम पर है।  

नेशनल कैंपेन कमिटी फॉर इरैडिकेशन ऑफ बॉन्डेड लेबर के राष्ट्रीय संयोजक निर्मल गोराना कहते हैं, "देश में बेरोजगारी की दर लगातार बढ़ रही है और युवाओं के पास भी काम नहीं है। अगर लोगों को रोजगार नहीं मिलेगा तो देश का विकास कैसे होगा? जिन लोगों को काम मिल भी रहा है तो उनको उसके बदले सही भुगतान नहीं हो रहा है। अगर काम का दाम नहीं मिल रहा है तो यह एक तरह की गुलामी है।"

नहीं बदली गरीबों की स्थिति

मानसून सत्र के दौरान गरीबी पर पूछे गए एक सवाल के जवाब में वित्त राज्य मंत्री पंकज चौधरी ने बताया था कि देश में करीब एक दशक में कोई आकलन जारी नहीं हुआ है। पिछला आकलन 2011-12 में जारी हुआ था। इसमें देश में गरीबी रेखा के नीचे रहने वाले लोगों की संख्या 27 करोड़ आंकी गई थी। सरकार का कहना है कि देश की 21.9 फीसदी आबादी आज भी गरीबी रेखा से नीचे है। सरकार का कहना है कि गांवों में रहने वाला व्यक्ति हर दिन 26 रुपये और शहर में रहने वाला व्यक्ति 32 रुपये खर्च नहीं कर पा रहा है तो वह गरीबी रेखा से नीचे माना जाएगा।         

बच्चों पर भी असर

चाइल्ड राइट्स एंड यू' की सीईओ पूजा मारवाह कहती हैं, "हालिया सीएमआईई (सेंटर फॉर मॉनिटरिंग इंडियन इकोनॉमी) के आंकड़ों से पता चलता है कि बेरोजगारी दर मई 2022 में 7.1 प्रतिशत से बढ़कर जून 2022 में 7.8 प्रतिशत हो गई, जिसमें ग्रामीण भारत में बेरोजगारी 1.4 प्रतिशत अंक बढ़ गई। शहरी संदर्भ में जुलाई 2022 में बेरोजगारी दर 8.21 प्रतिशत है, हालांकि ग्रामीण भारत की स्थिति में कुछ सुधार दिखाई देता है। 

भारत के बच्चों पर महामारी के प्रभाव के बारे में बताते हुए मारवाह ने बताया, "स्कूलों को बंद करने से उन्हें करीब दो साल तक शिक्षा से दूर रखा गया, जिससे ड्रॉप-आउट का खतरा बढ़ गया। ऑनलाइन शिक्षा का लाभ आखिरी छोर तक पहुंचने में विफल रहा, इस प्रकार एक ऑनलाइन विभाजन पैदा हुआ।  स्कूलों के लंबे समय तक बंद रहने से बच्चों के मानसिक-सामाजिक कल्याण को भी नुकसान पहुंचा है।"

CRY और TISS द्वारा संयुक्त रूप से किए गए एक हालिया अध्ययन के मुताबिक लगभग आधे बच्चों ने बताया कि उनकी दैनिक दिनचर्या "बहुत बदल गई है" और 50 प्रतिशत से थोड़ा कम ने "चिंतित महसूस करना" या "ऊबाऊ" होने की सूचना दी। कुल मिलाकर, पिछले कुछ दशकों में हमारे बच्चों की शिक्षा, स्वास्थ्य, पोषण, मानसिक कल्याण और सुरक्षा के मुद्दों को सुरक्षित करने के लिए यह एक कठिन लड़ाई रही है और इस बात की बहुत अधिक संभावना है कि जो इस क्षेत्र में प्रगति हुई है वह अधूरी रह सकती है।