भाजपा को पसमांदा पसंद… लोकसभा चुनाव के लिए तैयार हो रही है पार्टी

पसमांदा समाज के लोग खुद को उन 15 प्रतिशत मुसलमानों के मुकाबिल देखना चाहते हैं जो सियासत में मुसलमानों के रहनुमा बनने की बातें करते हैं। प्रधानमंत्री मोदी का मानना है कि हर धर्म और समुदाय के पिछड़े और वंचित लोगों को पार्टी के साथ जोड़ा जाए। प्रधानमंत्री की इस बात से विपक्षी दलों की पेशानी पर चिंता की लकीरें आ सकती हैं। खासतौर से यूपी और बिहार जैसे राज्यों से जहां वोटों का धर्म के आधार पर ध्रुवीकरण होता है। विपक्षी दल भाजपा के खिलाफ खासतौर से इन वोटों का इस्तेमाल करते हैं।

भाजपा को पसमांदा पसंद… लोकसभा चुनाव के लिए तैयार हो रही है पार्टी
पूरे देश में पसमांदा समाज के लोग लगभग 18 राज्यों में फैले हैं। यूपी, बिहार, राजस्थान, तेलगांना, कर्नाटक, मध्य प्रदेश में इनकी संख्या अधिक है। पसमांदा मुसलमानों की सबसे ज्यादा संख्या उत्तर प्रदेश में है।

5 जुलाई 22। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने हैदराबाद की राष्ट्रीय कार्यकारिणी बैठक में पसमांदा मुसलमानों पर काम करने की जो सलाह दी, जिस सोशल इंजीनियरिंग की बात की, वो यूं ही नहीं की थी। उसके पीछे पार्टी की पूरी रिसर्च रही है। प्रधानमंत्री के वक्तव्य के पीछे 2022 के उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव के नतीजों की पूरी रिपोर्ट थी। ये रिपोर्ट बताती है कि पसमांदा समाज के 8-10 प्रतिशत गरीब मुसलमानों ने भाजपा को उसकी लाभार्थी योजनाओं के चलते वोट दिया है। लाभार्थी वोटरों में इस समाज के करीब 20-25 प्रतिशत लोग शामिल हैं। आर्थिक रूप से गरीब और शिक्षा के मामले में भी काफी पीछे रहने वाले पसमांदा समाज को मुख्यधारा में लाने के लिए राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ भी फोकस कर रहा है। यूपी विधानसभा चुनावों में 34 मुस्लिम विधायक जीतकर विधानसभा पहुंचे हैं, जिनमें से 30 पसमांदा समाज से हैं।

कौन होते हैं पसमांदा मुसलमान?
प्रधानमंत्री मोदी के पसमांदा मुस्लिमों का जिक्र करने के बाद से देश में लोग इस समाज के बारे में जानने को उत्सुक हैं। जिस तरह से हिंदुओं में ओबीसी, दलित और उनमें भी अलग-अलग उपजातियां होती हैं, उसी तरह से मुसलमानों में भी ओबीसी और दलित मुस्लिमों को पसमांदा मुसलमान कहा जाता है। देश में पूरी मुस्लिम आबादी का लगभग 85 प्रतिशत पसमांदा समाज है। इनमें करीब 44 जातियां जैसे राइनी, इदरीसी, नाई, मिरासी, मुकेरी, बारी, घोसी शामिल हैं। बाकी 15 प्रतिशत में चार बड़ी जातियां शेख, सैयद, मुगल और पठान हैं।

18 राज्यों में पसमांदा, यूपी में ज्यादा
पूरे देश में पसमांदा समाज के लोग लगभग 18 राज्यों में फैले हैं। यूपी, बिहार, राजस्थान, तेलगांना, कर्नाटक, मध्य प्रदेश में इनकी संख्या अधिक है। पसमांदा मुसलमानों की सबसे ज्यादा संख्या उत्तर प्रदेश में है। लेकिन पश्चिमी उत्तर प्रदेश में इनकी आर्थिक स्थिति पूर्वांचल के मुसलमानों से बेहतर है। हर विधानसभा सीट पर इनकी उपस्थिति अच्छी खासी संख्या में है जो जीत-हार का समीकरण बदलने की हैसियत रखते हैं।

बाकियों ने सिर्फ सपने दिखाए, बीजेपी ने काम किया’
पसमांदा मुस्लिम समाज के राष्ट्रीय अध्यक्ष अनीस मंसूरी का कहना है कि हमारे समाज में ज्यादातर लोग दस्तकार और कारीगर हैं। रोज कमाते हैं और घर का खर्च चलाते हैं। बहुजन समाज पार्टी और समाजवादी पार्टी ने हमें सपने दिखाए, वोट लिया, मगर चुनाव के वक्त किए गए वादों को भूल गए। जबकि केंद्र और यूपी की भाजपा सरकारों ने जो योजनाएं चलाईं, उसमें बिना जाति-धर्म देखे सबको लाभ दिया, इसीलिए 2022 में हमारे लोगों ने भाजपा को वोट दिया। राशन, शौचालय, प्रधानमंत्री आवास योजना, आयुष्मान योजना का सीधा लाभ हमारे तबके के लोगों को मिला है। हमारे प्रतिनिधिमंडल ने पिछले महीने गृहमंत्री अमित शाह से मिलने का वक्त मांगा था। उन्होंने हमें मिलने के लिए दिल्ली बुलाया है। पसमांदा समाज प्रधानमंत्री जी का शुक्रगुजार है कि उन्होंने हमारी सुध ली।

पहले सपा-बसपा को दिया था समर्थन
बहुजन समाज पार्टी की सुप्रीमो मायावती ने 2007 के चुनाव में जब सोशल इंजीनियरिंग की बात की थी तो उसमें मुस्लिम पसमांदा समाज के लोगों को भी जोड़ा था। मगर उनके सरकार में आने के बाद भी इस समाज के लोगों को लगा कि वो हाशिए पर ही हैं। उनसे किए गए वादे पूरे नहीं हुए। बसपा में भी मुस्लिमों के उच्च वर्ग के नेता ही राज कर रहे थे। 2012 के विधानसभा चुनाव में पसमांदा मुस्लिम समाज ने फिर से समाजवादी पार्टी को समर्थन दिया। उस साल सपा ने राज्य में पहली बार पूर्ण बहुमत की सरकार बनाई थी और अखिलेश यादव मुख्यमंत्री बने थे।