कीड़ाजड़ी : देसी वियाग्रा की पैदावार बढ़ी, कीमत जानकर कहोगे-oh my god

कीड़ाजड़ी : देसी वियाग्रा की पैदावार बढ़ी, कीमत जानकर कहोगे-oh my god
कोरोना काल में पिछले 2 साल तक ऊंचे इलाकों में इंसानी दखल नहीं के बराबर रहा। इसका नतीजा ये है कि दुनिया की सबसे महंगी कीड़ाजड़ी का उत्पादन इस बार तीन गुना बढ़ गया। शक्तिवर्धक दवा बनाने में काम आने वाली कीड़ाजड़ी की सबसे अधिक डिमांड अभी भी चाइना में है।

29 अगस्त 22।  कोरोना काल में इंसानी दखल नहीं होने से इस बार कीड़ाजड़ी(where do you get wormwood) यानी हिमालयन वियाग्रा के उत्पादन में खासा इजाफा हुआ है। आलम ये है कि उच्च हिमालयी इलाकों में बीते सालों के मुकाबले तीन गुना से अधिक बेशकीमती कीड़ाजड़ी का उत्पादन हुआ है। देसी वियाग्रा, यौनवर्द्धक जड़ीबूटी या शक्तिवर्द्धक जड़ी के नाम से जानी-पहचानी जानेवाली इस कीड़ाजड़ी की अंतरराष्ट्रीय बाजार में बहुत डिमांड है। खासकर पड़ोसी देश चीन में यह मुंहमांगे दाम पर खरीदी-बेची जाती है। उत्तराखंड के बॉर्डर इलाकों में कीड़ाजड़ी का सबसे अधिक उत्पादन होता है। सालाना औसतन 300 किलो की जगह इस साल उत्तराखंड में कीड़ाजड़ी का उत्पादन 1000 किलो के पार पहुंच गया है।

उत्तराखंड के ऊंचे पहाड़ी इलाकों में गर्मियों में कीड़ाजड़ी (where do you get wormwood)मिलती है। बीते कुछ सालों में बेतहाशा दोहन के कारण इस बेशकीमती कीड़ाजड़ी का उत्पादन कम हो गया था। लेकिन कोरोना काल में पिछले 2 साल तक ऊंचे इलाकों में इंसानी दखल नहीं के बराबर रहा। इसका नतीजा ये है कि दुनिया की सबसे महंगी कीड़ाजड़ी का उत्पादन इस बार तीन गुना बढ़ गया। शक्तिवर्धक दवा बनाने में काम आने वाली कीड़ाजड़ी की सबसे अधिक डिमांड अभी भी चाइना में है। इंटरनेशनल मार्केट में कीड़ाजड़ी 20 लाख रुपए प्रति किलो के हिसाब से बिकती है। कीड़ाजड़ी पर रिसर्च कर रहे डॉ। सचिन बोहरा ने बताया कि हिमालयी इलाकों में इंसानों का दखल जितना कम होगा, कीड़ाजड़ी का उत्पादन उतना ही अधिक होगा।

उत्तराखंड में होती है हर साल 300 किलो कीड़ाजड़ी

कोरोना संकट से पहले उत्तराखंड में हर साल करीब 300 किलो कीड़ाजड़ी का उत्पादन होता था। लेकिन इस बार ये आंकड़ा हजार के पार जा पहुंचा है। कीड़ाजड़ी का उत्पादन बढ़ने से इस कारोबार से जुड़े लोगों के चेहरे खिले हुए हैं। बॉर्डर के इलाकों में करीब 10 हजार से अधिक लोग इस कारोबार से सीधे जुड़े हैं। बावजूद इसके कीड़ाजड़ी को बेचने की नीति साफ नहीं है। इससे कारोबारी हताश भी हैं। मुनस्यारी के जिला पंचायत सदस्य जगत मर्तोलिया ने सरकार से मांग की है कि इसके व्यापार को देश ही नहीं, बल्कि विदेशों में खोला जाए। इस बारे में सरकारी नीति साफ नहीं होने के कारण कई बार पुलिस इससे जुड़े व्यापारियों को पकड़ लेती है। जिससे कारोबार प्रभावित होता है।

साल में सिर्फ 3 महीने ही होता है उत्पादन

कीड़ाजड़ी का उत्पादन पहाड़ों पर होता है। यह 10 हजार फीट की ऊंचाई पर मौजूद बुग्यालों में पाई जाती है। साल में इसका दोहन सिर्फ 3 महीने ही सम्भव है। ऐसे में इस कारोबार से जुड़े लोगों को खासी दिक्क्तों का सामना भी करना पड़ता है। यही नहीं कई दफा तस्करी के आरोप में भी कारोबारी पुलिस के हत्थे चढ़ जाते हैं। ये सबकुछ इसीलिए होता है कि सरकार ने अभी तक भी इसे बेचने की कोई ठोस और व्यवहारिक नीति नही बनाई है।