वंशवाद : गुजरात चुनाव में भाजपा और कांग्रेस ने 20 ‘बेटों’ को दिया टिकट
22 नवंबर 22। वंशवादी राजनीति आज के दौर का ऐसा सच है, जिसे कोई नकार नहीं सकता है। सब जानते हैं कि यह लोकतंत्र के माथे पर बदनुमा दाग की तरह है। फिर भी राजनीतिक पार्टियां जिताउू उम्मीदवार के लालच में इन्हें चुनाव के मैदान में उतार कर पोषित करती रहती हैं। अभी गुजरात चुनाव की ही बात करें तो यहां कांग्रेस ने 13 और भाजपा ने 07 ऐसे ही उम्मीदवारों टिकट दिए हैं।
आजादी के बाद वंशवाद को बढ़ाने का आरोप सबसे पहले नेहरू गांधी परिवार पर लगा क्योंकि इसके तीन सदस्य, जवाहर लाल नेहरू, बेटी इंदिरा गांधी और इंदिरा के बेटे राजीव गांधी, देश के प्रधानमंत्री रह चुके हैं। आज जब राजीव के बेटे राहुल गांधी, कांग्रेस की इस परंपरा को आगे बढ़ाने की कोशिश में जी जान से जुटे हैं वहीं बहन प्रियंका वाड्रा भाई का साथ देने मैदान में कूद पड़ी हैं।
पहले जहां आलोचना के बावजूद वंशवाद नेहरू गांधी परिवार का अचूक हथियार माना जाता था, आज वामपंथियों को छोड़ लगभग सभी दलों ने इसे बेझिझक अपना कर एक नई प्रथा सी कायम कर दी है।
वंशवाद भारत की राजनीति में किस हद तक घुस चुका है, इसका नमूना अब करीबन हर राज्य और ज्यादातर पार्टियों में दिखाई पड़ रहा है। लोकतंत्र के समानांतर राजशाही की झलक भी मिलने लगी है।
यहां यह बताना भी मुनासिब होगा कि प्रधानमंत्री मोदी इसके सख्त खिलाफ हैं। उन्होंने पार्टी की उच्च स्तरीय बैठकों से लेकर खुले मंचों तक इसका इजहार किया है। इसके बावजूद भी भाजपा खुद को इस दलदल से बाहर निकाल नहीं पा रही है। यह अलग बात है कि भाजपा के नेता व प्रवक्ता हमेशा खुद को पाक साफ दिखाकर कांग्रेस पर वंशवाद आरोप मढ़ते रहते हैं, जबकि उनको अच्छे से पता है कि वे भी दूध के धुले नहीं हैं।
विश्लेषकों का कहना है कि राजनीतिक दलों को कभी-कभी मजबूत उम्मीदवार की चाहत होती है, और उनकी यह तलाश वंशवाद के मुखिया अपने बेटा, बेटियों, बहुओं को टिकट दिलाकर पूरी कर देते हैं। यही वजह है कि यह रोग लाइलाज होता जा रहा है।
मध्यप्रदेश में भी 11 माह बाद विधानसभा के चुनाव होना हैं। यहां भी वंशवाद की परंपरा वाले कई खानदान मौजूद हैं। इस चुनाव में यह अपने बेटा, बेटियों को लांच करने की तैयारी कर चुके हैं। संगठन को लगातार यह समझाने का प्रयास किया जा रहा है कि अगर सत्ता ने आना है, तो अपनी गाइड लाइन को उठाकर ताक पर रखना होगा।