नासा का दावा: चांद के साउथ पोल पर सबसे बड़े गड्‌ढों में से एक क्लेवियस क्रेटर में मिला पानी

भारत का चंद्रयान-1 वर्ष 2009 में ही पानी होने का दे चुका है सबूत

नासा का दावा: चांद के साउथ पोल पर सबसे बड़े गड्‌ढों में से एक क्लेवियस क्रेटर में मिला पानी

अमेरिकी अंतरिक्ष एजेंसी नासा ने दावा किया है कि उसे चंद्रमा पर पर्याप्त रूप से पानी मिला है। यह पृथ्वी से दिखने वाले साउथ पोल के एक गड्ढे में अणुओं के रूप में नजर आया है। इस खोज से वैज्ञानिकों को भविष्य में चांद पर इंसानी बस्ती बनाने में मदद मिल सकती है। भारतीय अंतरिक्ष एजेंसी इसरो का चंद्रयान-1 ग्यारह साल पहले वर्ष 2009 मे ही चंद्रमा पर पानी होने के सबूत दे चुका है। चांद पर पानी की ताजा खोज नासा की स्ट्रैटोस्फियर ऑब्जरवेटरी फॉर इंफ्रारेड एस्ट्रोनॉमी ने की है। यह पानी सूरज की किरणें पड़ने वाले इलाके में मौजूद क्लेवियस क्रेटर में मिला है।

नासा ने खोज के नतीजे नेचर एस्ट्रोनॉमी में जारी किए 
नासा के मुताबिक चांद की सतह के पिछले परीक्षणों के दौरान हाइड्रोजन की मौजूदगी का पता चला था, लेकिन तब हाइड्रोजन और पानी के निर्माण के लिए जरूरी अवयव हाइड्रॉक्सिल की गुत्थी नहीं सुलझा पाए थे। अब पानी मौजूद होने की पुष्टि हो चुकी है। नासा ने अपनी खोज के नतीजे नेचर एस्ट्रोनॉमी के नए अंक में जारी किए हैं। चंद्रमा की सतह पर जितना पानी खोजा है उसकी मात्रा अफ्रीका के सहारा रेगिस्तान में मौजूद पानी से 100 गुना कम है। चांद पर पानी कम मात्रा में होने के बावजूद सवाल उठ रहे हैं कि चांद पर वायुमंडल नहीं है, फिर भी पानी कैसे बना?

इसरो के चंद्रयान ने पहले ही खोज लिया था पानी
22 अक्टूबर 2008 को लॉन्च किए गए भारतीय मिशन चंद्रयान-1 ने भी चांद पर पानी होने के सबूत दिए थे। यह पानी चंद्रयान-1 पर मौजूद मून इंपैक्ट प्रोब ने तलाशा था। इसे ऑर्बिटर के जरिए नवंबर 2008 में चंद्रमा के साउथ पोल पर गिराया गया था। सितंबर 2009 में इसरो ने बताया कि चांद की सतह पर पानी चट्टान और धूलकणों में भाप के रूप में फंसा है, यानी पानी काफी कम है। चंद्रयान-1 के साथ मून इंपैक्ट प्रोब भेजने का आइडिया पूर्व राष्ट्रपति डॉ. एपीजे अब्दुल कलाम ने दिया था। उनका कहना था कि जब चंद्रयान ऑर्बिटर चांद के इतने करीब जा ही रहा है कि तो क्यों न इसके साथ एक इम्पैक्टर भी भेजा जाए। इससे चांद के बारे में हमारी खोज को विस्तार दिया जा सकेगा।