सुप्रीम कोर्ट का आदेश: मप्र के 22 बागी विधायक की अयोग्यता मामले की सुनवाई बंद

कांग्रेस के कपिल सिब्बल ने जताई नाराजगी

सुप्रीम कोर्ट का आदेश: मप्र के 22 बागी विधायक की अयोग्यता मामले की सुनवाई बंद

सुप्रीम कोर्ट ने मध्य प्रदेश में कांग्रेस के 22 बागी विधायकों को अयोग्य करार देने के लिए स्पीकर को निर्देश दिए जाने की याचिका पर सुनवाई बंद कर दी है. ये सभी विधायक इस साल मार्च में इस्तीफा देकर बीजेपी में शामिल हो गए थे. सुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि मध्य प्रदेश के विधायकों की अयोग्यता का मामला अब निष्प्रभावी हो गया है, क्योंकि 10 नवंबर को उपचुनाव के नतीजे आने वाले हैं. कोर्ट ने कहा कि इस वजह से याचिका का निपटारा किया जाता है. इससे पहले सुप्रीम कोर्ट ने मध्य प्रदेश विधानसभा के अध्यक्ष को यह स्पष्ट करने कहा था कि भाजपा में शामिल हुए कांग्रेस के 22 विधायकों (अब पूर्व) की अयोग्यता के मामले का कब तक निपटारा करेंगे? इस पर विधानसभा सचिव की ओर से बताया गया था कि प्रोटेम स्पीकर पहले ही याचिकाओं को खारिज कर चुके हैं. सुप्रीम कोर्ट में सीजेआई जस्टिस एसए बोबड़े, जस्टिस एएस बोपन्ना और जस्टिस वी रामसुब्रमण्यम की पीठ ने जबलपुर के कांग्रेस विधायक विनय सक्सेना की याचिका पर सुनवाई करते हुए साफ किया कि विधानसभा अध्यक्ष को एक सप्ताह के भीतर अपने जवाब में सिर्फ यह स्पष्ट करना है कि 22 कांग्रेस विधायकों की अयोग्यता को लेकर लंबित शिकायत पर आखिर कब तक निर्णय ले लिया जाएगा? वहीं कपिल सिब्बल ने कहा कि अदालत द्वारा अयोग्यता के मामलों को प्राथमिकता के साथ उठाए जाने की आवश्यकता है.

वकील ने जवाब देने मांगा 2 सप्ताह, कोर्ट ने 1 सप्ताह का दिया वक्त
याचिककार्ता विधायक सक्सेना की ओर से वरिष्ठ अधिवक्ता विवेक कृष्ण तन्खा ने पक्ष रखा. उन्होंने दलील दी कि कांग्रेस छोड़कर भाजपा में शामिल हुए 22 पूर्व विधायकों के खिलाफ अयोग्यता का मामला विधानसभा अध्यक्ष के पास विचाराधीन है. इस बीच कांग्रेस के इन विधायकों में से 12 को मंत्री भी बना दिया गया. याचिककार्ता की मांग थी कि विधानसभा अध्यक्ष एक सप्ताह के भीतर अयोग्यता संबंधी लंबित मामले का निराकरण करें. सुनवाई के दौरान विधानसभा सचिवालय की ओर से अधिवक्ता ने जवाब के लिए तीन सप्ताह का समय चाहा, इस पर सुप्रीम कोर्ट ने साफ किया कि विधानसभा अध्यक्ष की ओर से सिर्फ यह साफ करना है कि अयोग्यता मामले का कब तक निराकरण कर दिया जाएगा? इस पर सचिवालय के वकील ने कहा कि वह सचिवालय की ओर से उपस्थित हुए हैं न कि विधानसभा अध्यक्ष की तरफ से. यह सुनकर कोर्ट ने स्पष्ट किया दोनों के बीच कोई विशेष अंतर नहीं है. इस पर विधानसभा के वकील ने दो सप्ताह का समय देने का निवेदन किया, लेकिन कोर्ट ने सिर्फ एक सप्ताह का समय दिया.