अनमैरिड महिलाओं को भी 24 हफ्ते के भीतर अबॉर्शन का अधिकार : SC
सुप्रीम कोर्ट ने एक ऐतिहासिक निर्णय दिया है। SC ने मेडिकल टर्मिनेशन ऑफ प्रेगनेंसी रूल्स के नियम 3-B का विस्तार कर दिया है। यानी अब देश की सभी महिलाओं को गर्भपात का अधिकार मिल गया है। यानी विवाहित हों या अनमैरिड महिलाएं वे 24 हफ्ते तक गर्भपात करा सकती हैं।
29 सितंबर 22। सुप्रीम कोर्ट ने महिलाओं की जिंदगी से जुड़ा एक (Historic decision of Supreme Court)ऐतिहासिक फैसला सुनाया है। इसके तहत अब देश की सभी महिलाओं को गर्भपात का अधिकार मिल गया है। यानी अब विवाहित हों या अनमैरिड कोई भी महिला गर्भपात करा सकती है। वे 24 हफ्ते तक गर्भपात करा सकती हैं। SC ने मेडिकल टर्मिनेशन ऑफ प्रेगनेंसी रूल्स के नियम 3-B का विस्तार कर दिया है। अभी तक सामान्य मामलों में 20 हफ्ते से अधिक और 242 हफ्ते से कम के गर्भ के अबॉर्शन का अधिकार सिर्फ विवाहित महिलाओं को ही था। महिला अधिकारों से जुड़ा यह फैसला सुप्रीम कोर्ट की डीवाई चंद्रचूड़ सिंह की बेंच ने सुनाया है।
24 हफ्ते तक गर्भपात करा सकती हैं।
सुप्रीम कोर्ट ने विवाहित और अविवाहित महिलाओं के बीच गर्भपात के अधिकार के भेद को मिटाते हुए फैसले में कहा है कि मेडिकल टर्मिनेशन ऑफ प्रेग्नेंसी (MTP) एक्ट से अविवाहित महिलाओं को लिव-इन रिलेशनशिप से बाहर करना असंवैधानिक है। सुप्रीम कोर्ट (सुप्रीम कोर्ट का फैसला)के इस फैसले से अविवाहित, खासकर अनचाहे बच्चे से गर्भवती महिलाओं को सम्मानजनक जीने का मौका मिलेगा। सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि आर्टिकल 21 के तहत प्रजनन की स्वायत्तता गरिमा और गोपनीयता का अधिकार एक (Unmarried woman got the right to give birth or not to give birth to a child) अविवाहित महिला को ये हक देता है कि बच्चे को जन्म देन चाहे या नहीं। कोर्ट ने दो टूक कहा कि 20-24 सप्ताह के बीच का गर्भ रखने वाली सिंगल या अविवाहित गर्भवती महिलाओं को गर्भपात करने से रोकने से आर्टिकल-14 की आत्मा का उल्लंघन होगा, जबकि विवाहितों को यह हक मिला हुआ है।
एक दिन पहले केरल हाईकोर्ट ने दिया था बड़ा फैसला
केरल हाई कोर्ट ने 28 सितंबर को एक अहम आदेश दिया था। कोर्ट ने पति से अलग रहने वाली एक महिला को अपने 21 सप्ताह के गर्भ को गिराने की अनुमति दे दी थी। जस्टिस वीजी अरुण ने अपने फैसले में कहा था कि गर्भपात के लिए मेडिकल टर्मिनेशन आफ प्रेग्नेंसी एक्ट (एमटीपी एक्ट) के तहत पति की सहमति जरूरी नहीं है। दरअसल, एमटीपी अधिनियम के नियमों के अनुसार, सामान्य परिस्थितियों में 20 से 24 सप्ताह के गर्भ को खत्म करने की ही अनुमति दी जाती रही है। लेकिन अब सुप्रीम कोर्ट ने इसमें भी बदलाव कर दिया है।
दरअसल, याचिकाकर्ता जब ग्रेजुएशन कर रही थी, तब उसने बस कंडक्टर के साथ अपने परिवार की मर्जी के विरुद्ध जाकर लवमैरिज कर ली थी। लेकिन शादी के बाद पति और उसकी मां ने दहेज की मांग करने लगे। उसके साथ दुर्व्यवहार किया जाने लगा।। महिला ने याचिका में कहा कि वो बच्चा नहीं चाहती थी। जब वो गर्भपात कराने के लिए लोकल क्लीनिक गई, तो डॉक्टरों ने मना कर दिया। उसके पास तलाक जैसा कोई डॉक्यूमेंट नहीं था। तब उसने पति के खिलाफ पुलिस में शिकायत दर्ज कराई। लेकिन डॉक्टर ने FIR को भी नहीं माना। लिहाजा उसे कोर्ट आना पड़ा।