'धरती पर सूरज' बनाने से चंद कदम दूर वैज्ञानिक

फ्रांस में साल 2007 से बन रहा नकली सूरज अब अपने विकास से मात्र चंद कदम की दूरी पर है। इंटरनैशनल थर्मोन्यूक्लियर फ्यूजन एक्सपेरिमेंटल रिएक्टर अगर बनकर तैयार हो जाता है तो दुनिया में अनंतकाल तक अपार ऊर्जा का रास्ता साफ हो जाएगा। भारत इसमें बड़ी भूमिका निभा रहा है।

'धरती पर सूरज' बनाने से चंद कदम दूर वैज्ञानिक
फ्रांस के सेंट पॉल लेज दुरांस इलाके में इस सूरज को बनाने में 35 देशों के हजारों वैज्ञानिक जुटे हुए हैं। यह सूरज एकबार जब बनकर तैयार हो जाएगा तब मानव इतिहास का सबसे बड़ा संकट खत्म हो जाएगा।

31 मई 22। दुनियाभर में साफ और स्वच्छ ऊर्जा के स्रोतों को हासिल करने के लिए पानी की तरह से पैसा बहाया जा रहा है। आलम यह है कि अब चांद से हीलियम-3 लाने की भी चर्चा तेज हो गई है। इस बीच वैज्ञानिक धरती पर एक ऐसे सूरज को बना रहे हैं जो अनंतकाल तक इंसान की ऊर्जा की जरूरतों को पूरा कर सकेगा। फ्रांस के सेंट पॉल लेज दुरांस इलाके में इस सूरज को बनाने में 35 देशों के हजारों की तादाद में वैज्ञानिक हिस्सा ले रहे हैं। यह सूरज एकबार जब बनकर तैयार हो जाएगा तब मानव इतिहास का सबसे बड़ा संकट खत्म हो जाएगा। यही नहीं जलवायु परिवर्तन के कहर से जूझ रही धरती को भी इस महासंकट से मुक्ति मिल जाएगी। इसके जरिए मात्र 1 ग्राम परमाणु ईंधन से 8 टन तेल के बराबर ऊर्जा का निर्माण किया जा सकेगा।
ये वैज्ञानिक परमाणु संलयन पर अपनी बादशाहत हासिल करने के लिए प्रयास कर रहे हैं ताकि उस पर अपनी बादशाहत हासिल की जा सके। परमाणु संलयन वही प्रक्रिया है जो हमारे असली सूरज और अन्य सितारों में प्राकृतिक रूप से होती है। हालांकि यह प्रक्रिया धरती पर दुहराना उतना आसान नहीं है। परमाणु संलयन के जरिए जीवाश्म ईंधन के विपरीत असीमित ऊर्जा मिलती है। अच्छी बात यह है कि परमाणु संलयन में जरा भी ग्रीन हाउस गैस नहीं निकलती है। साथ ही परमाणु विखंडन के जरिए अभी पैदा की जा रही ऊर्जा से निकलने वाले रेडियो एक्टिव कचरे से भी मुक्ति मिल जाएगी। इससे निकलने वाली ऊर्जा का अंदाजा इस बात से लगाया जा सकता है कि मात्र 1 ग्राम परमाणु ईंधन से 8 टन तेल के बराबर ऊर्जा को पैदा किया जा सकेगा।
ब्रिटेन ने परमाणु संलयन से हासिल की ऊर्जा
इतिहास में पहली बार ऐसा हो रहा है जब यह सच साबित हो सकता है। इससे पहले फरवरी में ब्रिटेन के वैज्ञानिकों ने 5 सेकंड तक ऑक्सफर्ड के पास 59 मेगाजूल परमाणु संलयन पर आधारित ऊर्जा को पैदा करने में सफलता हासिल की थी। इस ऊर्जा को टोकामैक मशीन के जरिए बनाया गया था। इस ऊर्जा की मदद से एक घर में एक दिन बिजली की सप्लाइ की जा सकती थी। वहीं इसे बनाने में इससे भी ज्यादा ऊर्जा खर्च हुई थी। हालांकि वैज्ञानिकों की मानें तो यह अपने आप में एक ऐतिहासिक मौका था। इससे यह साबित हो गया कि परमाणु संलयन को कर पाना वास्तव में धरती पर संभव है। ब्रिटेन की सफलता फ्रांस के अंतरराष्ट्रीय थर्मोन्यूक्लियर प्रायोगात्मक रिएक्टर (आईटीईआर) प्रॉजेक्ट के लिए बहुत ही शानदार खबर है।
इसका मुख्य उद्देश्य यह साबित करना है कि संलयन को व्यवसायिक रूप से इस्तेमाल किया जा सकता है। अगर ऐसा हुआ तो दुनिया को जीवाश्म ईंधनों जैसे कोयला, तेल और गैस की जरूरत ही नहीं रहेगी। इन जीवाश्म ईंधनों के कारण ही धरती पर जलवायु परिवर्तन का संकट आया हुआ है। ब्रिटेन की सफलता के बाद अब फ्रांस में काम में बहुत तेजी आ गई है। हालांकि इसके साथ ही एक बड़ी दिक्कत शुरू हो गई है और इस परियोजना पर काम कर रहे वैज्ञानिकों को इसका सामना करना पड़ रहा है। इस परियोजना के डायरेक्टर जनरल बेरनार्ड बिगोट की 14 मई को बीमारी से मौत हो गई। उन्होंने 7 साल तक इस परियोजना का नेतृत्व किया। उन्होंने कहा था, 'ऊर्जा ही जीवन है।' उन्होंने कहा था कि जब धरती पर 1 अरब से कम लोग थे तब ऊर्जा जरूरतों को पूरा करने के लिए पर्याप्त तरीके थे। हालांकि अब ऐसा नहीं है, दुनिया की आबादी 8 अरब तक पहुंच गई है और जलवायु परिवर्तन का दौर तेज हो गया है।
क्या है परमाणु संलयन रिएक्शन?
वैज्ञानिकों के मुताबिक न्यूक्लियर फ्यजून रिएक्शन से 15 करोड़ डिग्री सेल्सियस का तापमान पैदा होता है। इसकी वजह से ऐसा प्लाज्मा पैदा होता है जिसमें हाइड्रोजन के आइसोटोप्स (ड्यूटीरियम और ट्राइटियम) आपस में फ्यूज होकर हीलियम और न्यूट्रॉन बनाते हैं। इस प्रयोग में शुरुआत में रिएक्शन से गर्मी पैदा हो, इसके लिए ऊर्जा की खपत होती है लेकिन एक बार रिएक्शन शुरू हो जाता है तो फिर रिएक्शन की वजह से ऊर्जा पैदा भी होने लगती है। आईटीईआर पहला ऐसा रिएक्टर है जिसका उद्देश्य है कि न्यूक्लियर फ्यूजन रिएक्शन के शुरू होने में जितनी ऊर्जा इस्तेमाल हो, उससे ज्यादा ऊर्जा रिएक्शन की वजह से बाद में उत्पाद के तौर पर निकले।
जानें क्यों अहम है आईटीईआर?
फ्रांस में बन रही आईटीईआर पहली ऐसी डिवाइस होगी जो लंबे वक्त तक फ्यूजन रिएक्शन जारी रख सकेगी। आईटीईआर में इंटिग्रेटेड टेक्नॉलजी और मटीरियल को टेस्ट किया जाएगा जिसका इस्तेमाल फ्यूजन पर आधारित बिजली के व्यवसायिक उत्पादन के लिए किया जाएगा। बड़े स्तर पर अगर कार्बन-फ्री स्रोत के तौर पर यह एक्सपेरिमेंट सफल हुआ तो भविष्य में साफ ऊर्जा के क्षेत्र में दुनिया को अभूतपूर्व फायदा हो सकता है। इसका पहली बार 1985 में एक्सपेरिमेंट का पहला आइडिया लॉन्च किया गया था। इसकी डिजाइन बनाने में इसके सदस्य देशों चीन, यूरोपियन यूनियन, भारत, जापान, कोरिया, रूस और द यूनाइटेड्स के हजारों इंजिनियरों और वैज्ञानिकों ने अहम भूमिका निभाई है।
भारत आईटीईआर में क्या निभा रहा भूमिका?
भारत इस प्रयोग से साल 2005 में जुड़ा था। लार्सन ऐंड टूब्रो हेवी इंजिनियरिंग ने 4 हजार टन की स्टेनलेस स्टीन से बनी क्रायोस्टैट की लिड तैयार की है। इसके अलावा भारत अपर-लोअर सिलिंडर, शील्डिंग, कूलिंग सिस्टम, क्रायोजेनिक सिस्टम, हीटिंग सिस्टम्स बना रहा है। क्रायोस्टैट 30 मीटर ऊंचा और 30 मीटर डायमीटर का सिलिंडर है जो विशाल फ्रिज की तरह काम करेगा और फ्यूजन रिएक्टर को ठंडा करने का काम करेगा। यह दुनिया में अपनी तरह का सबसे विशाल जहाज है। भारत की दिग्गज कंपनी L&T के अलावा 200 कंपनियां और 107 वैज्ञानिक इस प्रॉजेक्ट से जुड़े हुए हैं।