चीन के मिशन प्रशांत से बढ सकतीं हैं भारत की मुश्किलें!

चीन ने क्वॉड और ऑकस को मात देने के लिए बड़ी योजना पर काम तेज कर दिया है। चीन की कोशिश अब 10 द्वीपीय देशों के सुरक्षा समझौता करके प्रशांत क्षेत्र में दबदबा कायम करने की है। अगर चीन अपने मंसूबे में आंशिक सफल होता है तो वह अमेरिका, ऑस्ट्रेलिया के नाक में दम कर सकता है।

चीन के मिशन प्रशांत से बढ सकतीं हैं भारत की मुश्किलें!

31 मई 22।दक्षिण चीन सागर पर कब्जे की फिराक में लगा चीन अब प्रशांत महासागर में ऑस्ट्रेलिया के पास अपनी पकड़ को बहुत मजबूत करने जा रहा है। चीन सोलोमन द्वीप समेत प्रशांत महासागर के 10 छोटे-छोटे द्वीपों के साथ सुरक्षा समझौता कर रहा है जिससे न केवल ऑस्ट्रेलिया बल्कि अमेरिका भी टेंशन में आ गया है। चीन के इस लीक सुरक्षा समझौते से खुलासा हुआ है कि चीन ने प्रशांत महासागर और इस पूरे इलाके के लिए बड़ा मंसूबा पाले हुए है। चीन के इस 'मिशन प्रशांत' से ऑस्ट्रेलिया से लेकर अमेरिका तक टेंशन में आ गए हैं। अमेरिका और ऑस्ट्रेलिया को डर सता रहा है कि चीन उनकी सीमा से कुछ सौ मील की दूरी पर स्थित इन देशों में सैन्य अड्डा बना सकता है। उधर, विशेषज्ञों का मानना है कि चीन पूरे प्रशांत महासागर में अपना दबदबा बनाना चाहता है। आइए समझते हैं पूरा मामला।
चीन ने अपने नए सुरक्षा समझौते में आर्थिक सहयोग को अब सुरक्षा से जोड़ दिया है। इससे प्रशांत महासागर के द्वीपीय देशों के लिए दुविधा की स्थिति पैदा हो गई है। ये देश चीन से पैसा चाहते हैं या वे पहले ही चीन के कर्ज के तले डूबे हुए हैं। साथ ही उन्हें अब कोरोना की मार से बचने के लिए पैसे की जरूरत है। चीन ने इन देशों के लिए व्यापार और निवेश का प्रस्ताव दिया है। इसमें फ्री ट्रेड एरिया बनाना बनाना शामिल है जो पहले से मौजूद व्यापार समझौतों के साथ टकराव पैदा कर सकता है। उधर, सुरक्षा के मुद्दे पर चीन ने हाल ही में दावा किया है कि वह प्रशांत महासागर में 'सुरक्षा हिस्सेदार' है। चीन अब इन 10 देशों में पुलिस को ट्रेनिंग देने के लिए तैयारी कर रहा है।
सुरक्षा समझौते से चीन के हाथ लग सकता है अनमोल खजाना
विशेषज्ञों के मुताबिक सबसे ज्यादा राष्ट्रीय सुरक्षा चिंता डेटा नेटवर्क, साइबर सुरक्षा, स्मार्ट कस्टम सिस्टम को लेकर प्रस्तावित समझौतों पर है। चीन को सामूहिक निगरानी में महारत हासिल है। इससे अब यह डर सता रहा है कि जो लोग इन देशों की यात्रा करेंगे, उन सभी के बॉयोडेटा चीन के हाथ लग सकते हैं। इसके अलावा जो लोग प्रशांत महासागर के इन देशों में रहते हैं या यात्रा करते हैं, उनकी निगरानी हो सकेगी। इसके अलावा चीन ने प्रशांत देशों को फेंगयून मौसम उपग्रह सिस्टम में शामिल होने का न्योता दिया है। यह सैटलाइट सिस्टम मौसम की जानकारी देने के साथ-साथ सैन्य उद्देश्यों जैसे समुद्री निगरानी के लिए इस्तेमाल किया जा सकता है। चीन अगर अपने प्लान में सफल होता है तो वह क्वाड देशों के हिंद प्रशांत क्षेत्र में समुद्री निगरानी प्रोग्राम को कमजोर कर सकता है।
ड्रैगन के सुरक्षा डील से यह भी पता चलता है कि वह प्रशांत क्षेत्र के लिए एक सुरक्षा ढांचा और तंत्र बनाना चाहता है जो वर्तमान समय में मौजूद तंत्र को कमजोर कर देगा। विशेषज्ञों का यह भी मानना है कि चीन अब तक द्विपक्षीय समझौतों पर जोर देता था लेकिन अब उसका आत्मविश्वास बढ़ रहा है और वह बहुपक्षीय समझौतों की ओर बढ़ रहा है। चीन अपने बेल्ट एंड रोड परियोजना को इन देशों में बढ़ावा देगा जो कर्ज के जाल के लिए कुख्यात हैं। चीन की कोशिश इन देशों में व्यवसायिक रूप से मछली पकड़ने के उद्योग में घुसपैठ की ओर है। उदाहरण के लिए किरिबाती में चीन को मछली पकड़ने का व्यापक अधिकार है। दरअसल, चीन की आबादी भोजन की कमी से जूझ रही है और यही वजह है कि वह पूरी दुनिया से मछलियां पकड़कर ले जा रहा है। इसके लिए चीन अवैध तरीके भी अपना रहा है।
क्वाड को जवाब देने के लिए चीन ने बनाई योजना
चीन के 10 देशों से सुरक्षा समझौते का समय भी महत्वपूर्ण है। चीन की कोशिश इसके जरिए क्वाड देशों के इंडो-पैसफिक फ्रेमवर्क फॉर प्रास्पेरिटी और अमेरिका, ऑस्ट्रेलिया तथा न्यूजीलैंड के व्यापक प्रतिबद्धता के ऐलान को जवाब देने की है। विशेषज्ञों का कहना है कि चीन को अगर अपने सुरक्षा समझौते में आंशिक सफलता भी मिलती है तो वह आसानी से प्रशांत क्षेत्र में अपनी उपस्थिति हवाई, आस्ट्रेलिया, न्यूजीलैंड और सामरिक रूप से महत्वपूर्ण अमेरिकी सैन्य अड्डे गुआम के बहुत करीब दर्ज करा सकेगा। इससे ताइवान के लिए भी संकट बढ़ जाएगा। उधर, चीन ने जोर देकर कहा है कि उसका प्रस्ताव क्षेत्रीय स्थायित्व और आर्थिक विकास के लिए है, लेकिन विशेषज्ञों और विभिन्न सरकारें इससे सहमत नहीं हैं। उन्हें आशंका है कि इसकी आड़ में चीन सामरिक रूप से महत्वपूर्ण इलाके में अपने विस्तार देने में जुटा है। मैक्रोनेसिया के राष्ट्रपति डेविड पैनुएलो ने तो अन्य देशों को आगाह भी किया है कि इससे आगे चलकर एक और विश्वयुद्ध भड़क सकता है।
चीन के मिशन प्रशांत से बढ़ेंगी मुश्किलें
चीन अगर अपने मिशन प्रशांत में सफल होता है तो इससे भारत के लिए भी मुश्किलें बढ़ेंगी। चीन पहले ही दक्षिण चीन सागर को एक किले में बदल चुका है और कई कृत्रिम द्वीपों पर मिसाइलें तैनात कर दी हैं। ताइवान पर कब्जे की योजना, अमेरिका-ऑस्ट्रेलिया ऑकस सैन्य समझौते के बाद अब चीन प्रशांत क्षेत्र में अपना दबदबा स्थापित करना चाहता है। चीन की नौसेना अगर इस इलाके में अपनी पकड़ मजबूत करती है तो उसे मलक्का स्ट्रेट से हिंद महासागर में नहीं घुसना होगा। सुंडा और ऑस्ट्रेलिया के करीब से वह हिंद महासागर में घुस जाएगी। इससे चीनी पनडुब्बियों पर भारतीय नौसेना को नजर रख पाना आसान नहीं होगा। भारतीय नौसेना ने ऑस्ट्रेलिया के नेवल बेस के इस्तेमाल का समझौता कर रखा है। चीन भारतीय जंगी जहाजों पर नजर रखेगा।