महामृत्युंजय मंत्र के हर अक्षर में छुपा है समृद्धि और निरोगी काया प्राप्ति का राज

हिंदू धर्म के दो ऐसे मंत्र हैं जिन्हें बहुत खास माना जाता है, एक गायत्री मंत्र और दूसरा महामृत्युंजय मंत्र। 33 अक्षरों वाले महामृत्युंजय मंत्र के हर अक्षर का अपना एक विशेष अर्थ होता है।

महामृत्युंजय मंत्र के हर अक्षर में छुपा है समृद्धि और निरोगी काया प्राप्ति का राज

26 मई 22। शास्त्रों में मंत्र जाप को बहुत प्रभावी बताया गया है। धार्मिक मान्यताओं के अनुसार इस एक 33 अक्षरी मंत्र के जाप से जीवन में सुख-समृद्धि, आरोग्य और सौभाग्य में वृद्धि होती है।
हिंदू धर्म में मंत्र जाप को बहुत फलदायी और शुभ माना जाता है। धार्मिक आयोजनों से लेकर हर दिन पूजा-पाठ में मंत्र जाप को एक महत्वपूर्ण स्थान दिया गया है। मंत्रों के जाप से व्यक्ति के भीतर सकारात्मक उर्जा का संचार होने के साथ ही भय, द्वेष, क्रोध, दुख जैसी नकारात्मक चीजों से मुक्ति मिल सकती है। हिंदू धर्म के दो ऐसे मंत्र हैं जिन्हें बहुत खास माना जाता है, एक गायत्री मंत्र और दूसरा महामृत्युंजय मंत्र। 33 अक्षरों वाले महामृत्युंजय मंत्र के हर अक्षर का अपना एक विशेष अर्थ होता है। ये 33 अक्षर 33 देवताओं के प्रतीक माने जाते हैं। तो आइए जानते हैं महामृत्युंजय मंत्र के हर अक्षर का अर्थ जिसके नियमित जाप से होती है सुख-समृद्धि, निरोगी काया और ऐश्वर्य की प्राप्ति।

महामृत्युंरजय मंत्र-
।। ॐ त्र्यम्बकं यजामहे सुगन्धिं पुष्टिवर्धनम् उर्वारुकमिव बन्धनान् मृत्योर्मुक्षीय मामृतात् ।।
महामृत्युंजय मंत्र के 33 अक्षरों का अर्थ-
ॐ- ईश्वर
त्रि- ध्रववसु प्राण का घोतक है (सिर में स्थित)।
यम- अध्ववरसु प्राण का घोतक है (मुख में स्थित)।
ब- सोम वसु शक्ति का घोतक है (दक्षिण कर्ण में स्थित)।
कम- जल वसु देवता का घोतक है (वाम कर्ण में स्थित)।

य- वायु वसु का घोतक है (दक्षिण भुजा में स्थित)।
जा- अग्नि वसु का घोतक है (बाम भुजा में स्थित)।
म- प्रत्युवष वसु शक्ति का घोतक है (दक्षिण भुजा के मध्य में स्थित)।
हे- प्रयास वसु मणिबन्धत में स्थित।
सु- वीरभद्र रुद्र प्राण का बोधक है (दक्षिण हाथ के उंगली के मुल में स्थित)।
ग- शुम्भ् रुद्र का घोतक है (दक्षिण हाथ के उंगली के अग्र भाग में स्थित)।
न्धिम्- गिरीश रुद्र शक्ति का मुल घोतक है (बाएं हाथ के मूल में स्थित)।
पु- अजैक पात रुद्र शक्ति का घोतक है (बाम हाथ के मध्य भाग में स्थित)।
ष्टि- अहर्बुध्य्त् रुद्र का घोतक है (बाम हाथ के मणिबन्धा में स्थित)।
व- पिनाकी रुद्र प्राण का घोतक है (बाएं हाथ की अंगुलि के मुल में स्थित)।
र्ध- भवानीश्वपर रुद्र का घोतक है (बाम हाथ के अंगुलि के अग्र भाग में स्थित)।
नम्- कपाली रुद्र का घोतक है (उरु मूल में स्थित)।
उ- दिक्पति रुद्र का घोतक है (यक्ष जानु में स्थित)।
र्वा- स्था णु रुद्र का घोतक है (यक्ष गुल्फ् में स्थित)।
रु- भर्ग रुद्र का घोतक है (चक्ष पादांगुलि मूल में स्थित)।
क- धाता आदित्यद का घोतक है (यक्ष पैरों की उंगलियों के अग्र भाग में स्थित)।
मि- अर्यमा आदित्यद का घोतक है (वाम उरु मूल में स्थित)।
व- मित्र आदित्यद का घोतक है (वाम जानु में स्थित)।
ब- वरुणादित्या का बोधक है (वाम गुल्फा में स्थित)।
न्धा- अंशु आदित्यद का घोतक है (वाम पैर की अंगुली के मुल में स्थित)।
नात्- भगादित्यअ का बोधक है (वाम पैर की अंगुलियों के अग्रभाग में स्थित)।
मृ- विवस्व्न (सुर्य) का घोतक है (दक्ष पार्श्वि में स्थित)।
र्त्यो्- दन्दाददित्य् का बोधक है (वाम पार्श्वि भाग में स्थित)।
मु- पूषादित्यं का बोधक है (पृष्ठै भगा में स्थित)।
क्षी- पर्जन्य् आदित्यय का घोतक है (नाभि स्थिल में स्थित)।
य- त्वणष्टान आदित्यध का बोधक है (गुहय भाग में स्थित)।
मां- विष्णुय आदित्यय का घोतक है (शक्ति स्व्रुप दोनों भुजाओं में स्थित)।
मृ- प्रजापति का घोतक है (कंठ भाग में स्थित)।
तात्- अमित वषट्कार का घोतक है (हदय प्रदेश में स्थित)।