खतरे की घंटी : 10,000 दलितों ने दिल्ली में एक साथ हिंदू धर्म छोड़ा, बौद्ध बने

खतरे की घंटी : 10,000 दलितों ने दिल्ली में एक साथ हिंदू धर्म छोड़ा, बौद्ध बने
समारोह में डॉ. आंबेडकर के पड़पोते राजरत्न आंबेडकर ने लोगों को शपथ दिलाई। उनके वक्तव्य में हिंदू धर्म और भारतीय समाज व्यवस्था को लेकर आक्रामकता भरी हुई थी। आयोजकों का कहना है कि बाबा साहब आंबेडकर ने 14 अक्टूबर, 1956 को स्वयं बौद्ध धर्म स्वीकारने के बाद चंद्रपुर में सामूहिक धर्म परिवर्तन के कार्यक्रम में जो 22 शपथ दिलवाई थी, वही यहां दिलवाई गई हैं।

11 अक्टूबर 22।  दिल्ली में आज से चार दिन पहले 10 हजार दलितों(10 thousand dalits) ने हिंदू धर्म का त्याग कर बौद्ध धर्म अपना लिया। हिंदू धर्म के ठेकेदारों को दंभ छोड़कर इस पर गंभीर चिंतन करना चाहिए। आरएसएस चीफ मोहन भागवत ने हाल ही में धर्म आधारित जनसंख्या के बदलते अनुपात को लेकर चिंता जताई थी। 

समय बदल गया है, अब आप लोगों को अशिक्षित रखकर उनको उनके हक से महरूम नहीं रख सकते हैं। जैसा कि अनादि काल से उनके साथ होता आ रहा है। यह घटना आंखें खोल देने वाली है। उन उच्च जातियों को जिनमें न्यायिक फेक्टर शून्य है, उनको समझना होगा कि अगर वह समाज को सामूहिक रूप से ठगने का काम बंद नहीं करेंगे, तो आने वाला समय बेहत घातक हो सकता है। लगता है (We learned nothing from 1300 years of slavery)​हमने 1300 साल की गुलामी से कुछ नहीं सीखा। हम वही गलतियां दोहरा रहे हैं, जो हमारे पूर्वजों ने कीं।  

7 अक्टूबर को दिल्ली में जो कुछ हुआ उसके कई पहलू हो सकते हैं। ज्यादातर लोग बौद्ध धर्म की शपथ को लेकर तर्क वितर्क कर रहे हैं, लेकिन हकीकत यह है कि जितने लोग धर्म छोड़ते हैं, उतने ही हम नए शत्रु पैदा कर लेते हैं।

राजधानी दिल्ली के आंबेडकर भवन का सात अक्टूबर वाला दृश्य निश्चित रूप से इस देश के ज्यादातर लोगों के जेहन में लंबे समय तक कायम रहेगा। आयोजकों का दावा है कि वहां(10 thousand dalits embraced Buddhism) 10 हजार दलितों ने हिंदू धर्म त्याग कर बौद्ध धर्म ग्रहण किया। संविधान व्यक्ति को अपनी मर्जी से किसी भी धर्म को त्यागने या अपनाने की स्वतंत्रता देता है। इस नाते जिन लोगों ने बौद्ध धर्म स्वीकार किया, यह उनकी व्यक्तिगत आस्था का विषय है। किंतु इसके साथ कुछ अन्य पहलू भी जुड़े हैं। दो-चार लोग या परिवार धर्मांतरण करते हैं तो ज्यादा आश्चर्य नहीं होता। एक साथ इतनी संख्या में लोगों को कैसे हिंदू धर्म अस्वीकार्य लगा और बौद्ध धर्म के प्रति उनकी आस्था घनीभूत हो गई?

समारोह में डॉ. आंबेडकर के पड़पोते राजरत्न आंबेडकर ने लोगों को शपथ दिलाई। उनके वक्तव्य में हिंदू धर्म और भारतीय समाज व्यवस्था को लेकर आक्रामकता भरी हुई थी। आयोजकों का कहना है कि बाबा साहब आंबेडकर ने 14 अक्टूबर, 1956 को स्वयं बौद्ध धर्म स्वीकारने के बाद चंद्रपुर में सामूहिक धर्म परिवर्तन के कार्यक्रम में जो 22 शपथ दिलवाई थी, वही यहां दिलवाई गई हैं।