छठपूजा शुरू: आज नहाय-खाय, कल खरना है, 20 व 21 को सूर्य को देंगे अर्घ्य

इस पूजा से प्रसन्न होती हैं सूर्यदेव की बहन छठ माता बिहार, झारखंड और पूर्वी उत्तर प्रदेश का सबसे बड़ा त्यौहार 

छठपूजा शुरू: आज नहाय-खाय, कल खरना है, 20 व 21 को सूर्य को देंगे अर्घ्य

देश के बिहार, झारखंड राज्य और पूर्वी उत्तर प्रदेश का सबसे बड़ा त्योहार छठ पूजा 20 नवंबर को है। आज से यह पर्व शुरू हो रहा है, जो चार दिन तक चलेगा। इसमें छठ मैया का पूजन और सूर्य कोअर्घ्य दिया जाता है। पहले दिन यानी 18 नवंबर को नहाय-खाय है, 19 को खरना, 20 को छठ पूजा और 21 को सुबह सूर्य को अर्घ्य दिया जाएगा। ये सूर्य और प्रकृति के प्रति आभार प्रकट करने का पर्व है। पूरे बिहार का ये एकमात्र ऐसा पर्व है, जिसे हर वर्ग एक साथ मनाता है। सूर्य को ग्रंथों में प्रत्यक्ष देवता यानी ऐसा भगवान माना है जिसे हम खुद देख सकते हैं। सूर्य ऊर्जा का स्रोत है और इसकी किरणों से विटामिन डी जैसे तत्व शरीर को मिलते हैं। सूर्य मौसम चक्र को चलाने वाला ग्रह है। ज्योतिष के नजरिए से देखा जाए तो सूर्य आत्मा का ग्रह माना गया है। सूर्य पूजा आत्मविश्वास जगाने के लिए की जाती है। पुराणों में सूर्य को पंचदेवों में से एक माना गया है, ये पंच देव हैं ब्रह्मा, विष्णु, शिव, दुर्गा और सूर्य। किसी भी शुभ काम की शुरुआत में सूर्य की पूजा अनिवार्य रूप से की जाती है। शादी करते समय भी सूर्य की स्थिति खासतौर पर देखी जाती है। भविष्य पुराण से ब्रह्म पर्व में श्रीकृष्ण ने अपने पुत्र को सूर्य पूजा का महत्व बताया है। बिहार में मान्यता प्रचलित है कि पुराने समय में सीता, कुंती और द्रौपदी ने भी ये व्रत किया था।

छठ माता बच्चों की रक्षा करने वाली देवी हैं
माना जाता है कि छठ माता सूर्यदेव की बहन हैं। जो लोग इस तिथि पर छठ माता के भाई सूर्य को जल चढ़ाते हैं, उनकी मनोकामनाएं छठ माता पूरी करती हैं। छठ माता बच्चों की रक्षा करने वाली देवी हैं। इस व्रत को करने से संतान को लंबी आयु का वरदान मिलता है। मार्कण्डेय पुराण में इस बात का उल्लेख मिलता है कि प्रकृति ने अपने आप को छह भागों में विभाजित किया है। इनके छठे अंश को सर्वश्रेष्ठ मातृ देवी के रूप में जाना जाता है, जो ब्रह्मा की मानस पुत्री हैं। माना ये भी जाता है कि देवी दुर्गा का छठवां रूप कात्यायनी ही छठ मैया हैं।

बिना खाना-पानी के 36 घंटे निर्जला व्रत रहती हैं महिलाएं
छठ पूजा के लिए व्रत करने वाला व्यक्ति करीब 36 घंटे तक निर्जल रहता है। सप्तमी की सुबह सूर्य पूजा के बाद व्रत खोला जाता है और अन्न-जल ग्रहण किया जाता है। छठ पूजा के लिए व्रत करने वाला व्यक्ति करीब 36 घंटे तक निर्जल रहता है। सप्तमी की सुबह सूर्य पूजा के बाद व्रत खोला जाता है और अन्न-जल ग्रहण किया जाता है।नहाय-खाय में घर की साफ-सफाई करते हैं। छठ तिथि से दो दिन पहले चतुर्थी तिथि पर पूरे घर की साफ-सफाई की जाती है। इसे नहाय-खाय कहते हैं। इस दिन पूजा-पाठ के बाद शुद्ध सात्विक भोजन किया जाता है। इसी से छठ पर्व की शुरुआत मानी जाती है। छठ माता के लिए निर्जला व्रत किया जाता है, यानी व्रत करने वाले लोग करीब 36 घंटे तक पानी भी नहीं पीते हैं। आमतौर पर ये व्रत महिलाएं ही करती हैं। इसकी शुरुआत पंचमी तिथि पर खरना करने के बाद होती है। खरना यानी तन और मन का शुद्धिकरण। इसमें व्रत करने वाला शाम को गुड़ या कद्दू की खीर ग्रहण करता है। इसके बाद छठ पूजन पूरा करने के बाद ही भोजन किया जाता है। छठ तिथि की सुबह छठ माता का भोग बनाया जाता है और शाम डूबते सूर्य को जल चढ़ाया जाता है। इसके बाद सप्तमी की सुबह फिर से सूर्य को अघ्र्य दिया जाता है। इस तरह 36 घंटे का व्रत पूरा होता है।