ईरान: महिलाओं के जज्बे को सलाम, लेकिन अभी और इम्तिहान बाकी हैं

ईरान: महिलाओं के जज्बे को सलाम, लेकिन अभी और इम्तिहान बाकी हैं
कई दशकों से मौलवियों के तंत्र ने अपनी भरोसेमंद एलीट फोर्स रिवॉल्यूशनरी गार्ड्स को हिंसक तरीके से विरोध प्रदर्शनों को दबाने में इस्तेमाल किया है। अब यह चाहे छात्रों का विरोध रहा हो या फिर आर्थिक मुश्किलों के विरोध में आम लोगों का प्रदर्शन। इस बार अब तक ये गार्ड्स सामने नहीं आये हैं लेकिन किसी भी क्षण इन्हें बुलाया जा सकता है।

9 अक्टूबर 22। ईरान में महिलाओं के जज्बे को सलाम, लेकिन अभी और इम्तिहान बाकी हैं। विश्लेषकों का कहना है कि ईरान के धार्मिक शासक देश में उबल रहे मौजूदा विरोध पर काबू कर लेंगे और इस बात के आसार बहुत कम हैं कि किसी नयी राजनीतिक व्यवस्था का उदय होगा। बात सिर्फ इतनी ही नहीं है। विरोध प्रदर्शनों का रुख बहुत हद तक हिजाब तक सीमित(Protests limited to hijab) है और दशकों से पर्दे में रहता आया इस्लामी देश कम से कम इस मुद्दे पर तो अपनी सरकार बदलने का माद्दा नहीं दिखायेगा।

22 साल की महसा अमीनी की मोरलिटी पुलिस की गिरफ्त में हुई मौत के बाद शुरू हुए प्रदर्शनों ने अब सत्ताधारी मौलवियों की बढ़ती निरंकुशता के खिलाफ विद्रोह का रूप धर लिया है। हालांकि 2011 में ट्यूनीशिया और मिस्र के शासकों को जिस तरह विरोध प्रदर्शनों के बाद सत्ता छोड़नी पड़ी थी उस हाल तक पहुंचने के आसार दूर दूर तक नहीं दिख रहे हैं। इसकी एक वजह यह भी है कि ईरान के शासकों की सत्ता पर पकड़ काफी मजबूत है और वह इस तरह के विरोध का सामना करने में माहिर हैं।

अंतरराष्ट्रीय मामलों की भारतीय परिषद के सीनियर रिसर्चर और मध्यपूर्व के जानकार फज्जुर रहमान कहते हैं, "ईरान की सरकार और वहां के लोगों के लिए अमेरिका से बड़ा कोई (America's biggest enemy for Iran)दुश्मन नहीं है और इस बार भी सरकार लोगों को यह समझाने में सफल रही है कि सब कुछ विदेशी ताकतों के दबाव में हो रहा है ऐसे में ईरान के दूसरे तबकों का समर्थन इन विरोध प्रदर्शनों का उस तरह से नहीं मिल रहा है जो सरकार बदलने के लिये जरूरी है। बीते 40-50 सालों से ईरान के मौलवी अपने लोगों की नब्ज पहचानते रहे हैं और इन विरोध प्रदर्शनों में वो बात नहीं है कि सरकार बदल सके।"

टेनेसी यूनिवर्सिटी में राजनीतिक शास्त्र के असिस्टेंट प्रोफेसर सईद गोलकर का कहना है कि विरोध प्रदर्शन "धर्मनिरपेक्ष, गैर वैचारिक और कुछ हद तक इस्लाम विरोधी हैं। ईरानी लोग "मौलवियों के खिलाफ विद्रोह (rebellion against the clerics)कर रहे हैं, जो धर्म का इस्तेमाल लोगों को दबाने के लिए करते हैं।

17 सितंबर को अमीनी के अंतिम संस्कार में कुर्द स्वतंत्रता आंदोलन का एक मशहूर राजनीतिक नारा गूंज रहा था, "औरत, जिंदगी, आजादी।" अब यही नारा पूरी दुनिया में अमीनी की मौत के विरोध में हुए प्रदर्शनों में सुनाई दे रहा है।