जयशंकर ने ताइवान पर चीन की धमकी का 'मनमोहन नीति' से दिया कड़ा जवाब

भारत ने ताइवान के मुद्दे पर मनमोहन सरकार की नीति को अपनाकर चीन को करारा जवाब दिया है। भारत ने चीन की उम्मीदों पर पानी फेरते हुए 'एक चीन नीति' (One China Policy) के समर्थन में कोई बयान नहीं दिया। वहीं भारत के पड़ोसी देशों पाकिस्तान, श्रीलंका और बांग्लादेश ने खुलकर चीन का ताइवान पर समर्थन किया है।

जयशंकर ने ताइवान पर चीन की धमकी का 'मनमोहन नीति' से दिया कड़ा जवाब
एक रिटायर अधिकारी ने बताया कि यह नीति में बदलाव नहीं था बल्कि एक चीन नीति को दोबारा रिपीट नहीं करने का फैसला था। मनमोहन सरकार ने साफ-साफ कह दिया था कि अगर चीन की इच्छा है कि भारत उसकी एक चीन नीति को माने तो उसे भी 'एक भारत' की नीति को मानना होगा। इसके बाद मोदी सरकार के आने पर साल 2014 सुषमा स्वराज भी चीन के खिलाफ इसी रणनीति पर कायम रहीं। भारत ताजा ताइवान संकट में भी इसी नीति पर कायम रहकर चीन को कड़ा संदेश दिया है।

5 अगस्त 22। एक चीन नीति को लेकर धमकाने वाले चीन को भारत ने चुप रहकर करारा जवाब दिया है। चीन के कर्ज में डूबे पाकिस्तान, श्रीलंका और बांग्लादेश जैसे देशों ने ताइवान संकट के बाद जहां 'एक चीन नीति' का जहां खुलकर समर्थन किया है, वहीं भारत ने इस पूरे मामले पर कोई बयान नहीं दिया है। यही नहीं चीन ने पाकिस्तान जैसे अपने 'आर्थिक गुलामों' के जरिए कोशिश की कि दुनिया में एक माहौल बनाया जाए और 'एक चीन नीति' के लिए खुलकर समर्थन हासिल किया जा सके। भारत ने चीन के उम्मीदों पर पानी फेर दिया। वहीं भारत ने सीमा को लेकर हो रही बातचीत के संवेदनशील मुद्दे को देखते जी7 देशों की तरह से चीन की आलोचना भी नहीं की है। 

रिपोर्ट के मुताबिक भारत ने चीनी ड्रैगन की दादागिरी को देखते हुए पिछले एक दशक से 'एक चीन नीति' के समर्थन में कोई बयान नहीं दिया है। बताया जा रहा है कि भारत ने बहुत सोच समझकर इस पूरे मामले में कोई बयान नहीं दिया है। विदेश मंत्री एस जयशंकर ने आसियान के कार्यक्रम में हिस्सा लिया लेकिन ताइवान संकट पर कोई बयान नहीं दिया। अधिकारियों और विशेषज्ञों का कहना है कि ताइवान मामले पर भारत ने जानबूझकर कोई बयान नहीं दिया है। भारत ने इस पूरे मामले में अमेरिका और ताइवान के बीच तनातनी को देखते हुए किसी विवाद से खुद को बचाया है। 

'एक चीन नीति' का भारत ने जिक्र करना बंद किया

भारत ने साल 2010 के बाद से अब एक बार भी 'एक चीन नीति' का जिक्र नहीं किया है। गुरुवार को विदेश मंत्री एस जयशंकर ने आसियान-भारत शिखर सम्मेलन में हिस्सा लिया और अमेरिका के विदेश मंत्री एंटनी ब्लिंकन, श्रीलंका और वियतनाम के विदेश मंत्रियों के साथ मुलाकात की। जयशंकर ने इस मुलाकात को गर्मजोशी भरा बताया। उन्होंने कहा कि इस बातचीत में कोरोना, आतंकवाद, साइबर सुरक्षा, यूक्रेन और म्यांमार पर बातचीत की। उन्होंने ताइवान के हालात का कोई जिक्र नहीं किया। एक पूर्व भारतीय अधिकारी ने भारत की चुप्पी पर कहा, 'ताइवान के हालात पर भारत का एकदम चुप्पी साधना संभवत: सबसे अच्छा जवाब है।'

 भारत जहां साल 1949 से ही एक चीन नीति का पालन कर रहा है और संकेत दिया है कि वह बीजिंग की सरकार के अलावा किसी और को मान्यता नहीं देता है। साथ ही भारत ने ताइवान के साथ केवल व्यापार और सांस्कृतिक संबंध ही रखे हैं। इस बीच भारत ने साल 2008 से आधिकारिक बयानों और संयुक्त घोषणापत्रों में एक चीन नीति का जिक्र करना बंद कर दिया है। दरअसल, चीन ने उस समय अरुणाचल प्रदेश को अपना इलाका बताना शुरू कर दिया था और राज्य के कई इलाकों का नाम बदलना शुरू कर दिया था। उसने अरुणाचल और जम्मू-कश्मीर के भारतीय नागरिकों को स्टेपल वीजा जारी करना शुरू कर दिया था।

 मनमोहन सरकार ने चीन की नापाक चाल का दिया था जोरदार जवाब

इसके बाद भारत ने कड़ा कदम उठाते हुए साल 2010 में चीन के तत्कालीन राष्ट्रपति हू जिंताओ और प्रधानमंत्री वेन जियाबाओ के साथ तत्कालीन भारतीय पीएम मनमोहन सिंह के मुलाकात के बाद जारी संयुक्त बयानों में 'एक चीन नीति' का जिक्र नहीं किया। उस समय यह माना गया कि जब चीन भारत की संवेदनशीलता को नहीं समझ रहा है तो हमें क्यों 'एक चीन नीति' को दोहराना चाहिए। एक रिटायर अधिकारी ने बताया कि यह नीति में बदलाव नहीं था बल्कि एक चीन नीति को दोबारा रिपीट नहीं करने का फैसला था। मनमोहन सरकार ने साफ-साफ कह दिया था कि अगर चीन की इच्छा है कि भारत उसकी एक चीन नीति को माने तो उसे भी 'एक भारत' की नीति को मानना होगा। इसके बाद मोदी सरकार के आने पर साल 2014 सुषमा स्वराज भी चीन के खिलाफ इसी रणनीति पर कायम रहीं। भारत ताजा ताइवान संकट में भी इसी नीति पर कायम रहकर चीन को कड़ा संदेश दिया है।