पीएम मोदी ने कहा-गुरुदेव का विजन था, जो भारत में सर्वश्रेष्ठ है, उससे विश्व को लाभ हो

विश्वभारती का शताब्दी समारोहः गुरुदेव ने विश्वभारती को वर्ष 1921 में स्थापित की थी

पीएम मोदी ने कहा-गुरुदेव  का विजन था, जो भारत में सर्वश्रेष्ठ है, उससे विश्व को लाभ हो


प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने पश्चिम बंगाल की विश्वभारती यूनिवर्सिटी के शताब्दी समारोह को वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग के जरिए संबोधित किया। उन्होंने कहा कि विश्वभारती के लिए गुरुदेव रवींद्रनाथ टैगोर का विजन आत्मनिर्भर भारत का भी सार है। इस संस्था को इस ऊंचाई पर पहुंचाने वाले हर व्यक्ति को मैं आदरपूर्वक नमन करता हूं, उनका अभिनंदन करता हूं। भारत आज इंटरनेशनल सोलर अलायंस के माध्यम से पर्यावरण संरक्षण में अहम भूमिका निभा रहा है। भारत इकलौता देश है जो पेरिस एकॉर्ड के तहत सही मार्ग पर आगे बढ़ रहा है। स्वतंत्रता आंदोलनों की नींव बहुत पहले रखी गई थी। आजादी के आंदोलन को पहले से चले आ रहे कई आंदोलनों से ऊर्जा मिली। भक्ति युग में भारत के हर क्षेत्र में संतों-महंतों ने देश की चेतना के लिए अविराम प्रयास किया। वेद से विवेकानंद तक भारत के चिंतन की धारा गुरुदेव के राष्ट्रवाद के चिंतन में भी मुखर थी और ये धारा अंतर्मुखी नहीं थी। वो भारत को विश्व के अन्य देशों से अलग रखने वाली नहीं थी। उनका विजन था कि जो भारत में सर्वश्रेष्ठ है, उससे विश्व को लाभ हो और जो दुनिया में अच्छा है, भारत उससे भी सीखे। आपके विश्वविद्यालय का नाम ही देखिए- विश्व-भारती। मां भारती और विश्व के साथ समन्वय। विश्व भारती के लिए गुरुदेव का विजन आत्मनिर्भर भारत का भी सार है। आत्मनिर्भर भारत अभियान भी विश्व कल्याण के लिए भारत के कल्याण का मार्ग है। ये अभियान, भारत को सशक्त करने का अभियान है, भारत की समृद्धि से विश्व में समृद्धि लाने का अभियान है।

वर्ष 1921 में गुरुदेव रवींद्रनाथ टैगोर द्वारा स्थापित विश्वभारती देश की सबसे पुरानी सेंट्रल यूनिवर्सिटी है। मई 1951 में इसे एक केंद्रीय विश्वविद्यालय और इंस्टीट्यूशन ऑफ नेशनल इंपॉर्टेंस घोषित किया गया था।

प्रधानमंत्री ने बाएं कंधे पर पल्लू रखने की परंपरा का भी इतिहास बताया
प्रधानमंत्री मोदी ने कहा कि गुजरात की बेटी भी गुरुदेव के घर बहू बनकर आई थी। सत्येंद्रनाथ टैगोर (रवींद्रनाथ टैगोर के बड़े भाई) की पत्नी ज्ञानदानंदिनी जब अहमदाबाद में रहती थीं, तब उन्होंने देखा कि वहां महिलाएं साड़ी का पल्लू दाईं ओर रखती थीं। इससे काम करने में परेशानी होती थी। उन्होंने सलाह दी कि बाएं कंधे पर पल्लू रखें तो काम करने में आसानी होगी। यह परंपरा तब से ही वहां चल रही है।