हीरों की बारिश भी संभव है, रिसर्च में सामने आई चौंकाने वाली बात

एक स्टडी में ये बात सामने आई है कि हीरों यानी डायमंड की बारिश किसी भी ग्रह पर हो सकती है, बस इसके लिए कुछ जरूरी कंपोनेंट्स की जरूरत है।

हीरों की बारिश भी संभव है, रिसर्च में सामने आई चौंकाने वाली बात
साइंस एडवांस जर्नल में पब्लिश एक रिसर्च बताती है कि डायमंड एक और तरीके से इजाद किया जा सकता है और वो है बारिश के जरिए, जी हां आपने सही सुना। इसको लेकर एक रिसर्चर ने शोध किया, जिसने सबको चौंका कर रख दिया।

6 सितंबर 22।   व्यक्ति के जीवन में पैसों की बारिश होने वाली बात तो हम सबने सुनी है, खैर बिना मेहनत किए पैसों की बारिश तो सपने में ही हो सकती है, लेकिन अब ये बात पुरानी हो चुकी है। पैसों से आगे की बात पर बढ़ते हैं। एक रिसर्चर ने हाल ही में अपने एक्सपेरिमेंट के रिजल्ट के बल पर ये दावा()Researcher's claim किया कि पूरे संसार में हीरे की बारिश(diamond rain) हो सकती है। रिसर्चर ने हीरे की बारिश के लिए आर्टिफिशियल एटमॉस्फेयर भी तैयार किया और कुछ जरूरी कंपोनेंट की भी बात की।

कहां से आया हीरे की बारिश का ख्याल

हमारे सौर मंडल के सबसे दूर दो ग्रह यूरेनस और नेपच्यून जो बेहद ठंडे हैं। वैज्ञानिकों ने वहां होने वाली बारिश को रिक्रिएट करने का फैसला लिया। यूरेनस और नेपच्यून बेहद बर्फीले हैं जिनमें स्ट्रक्चरल ट्रांजिशन हो सकता है और अंदर से एक्स्ट्रीम कंडीशंस होने की वजह से ऐसा भी हो सकता है कि वहां सुपरआयोनिक पानी या हीरे की बारिश हो। इसी धारणा को ध्यान में रखकर रिसर्चर ने एक वैसा ही (artificial atmosphere recreated and decided to make it rain)आर्टिफिशियल एटमॉस्फेयर रिक्रिएट किया और बारिश कराने का फैसला किया।

एक्सपेरिमेंट में क्या था

वैज्ञानिक पहले मानते थे कि उच्च दबा और कम तापमान के चलते बर्फ की सतह के हजारों किलोमीटर नीचे हाइड्रोजन और कार्बन के यौगिक ठोस हीरे में बदल जाते हैं, लेकिन साइंस एडवांस जर्नल में पब्लिश एक रिसर्च बताती है कि डायमंड एक और तरीके से इजाद किया जा सकता है और वो है बारिश के जरिए, जी हां आपने सही सुना। इसको लेकर एक रिसर्चर ने शोध किया, जिसने सबको चौंका कर रख दिया। जब रिसर्चर्स ने शॉक-कंप्रेसिंग पॉलीइथाइलीन टेरेफ्थेलेट (Compressing Polyethylene Terephthalate-PET) प्लास्टिक के जरिए C और H2O के स्टोइकोमेट्रिक मिश्रण (Stoichiometric Mixture) का अध्ययन किया तो पता चला कि -3500 से -6000 केल्विन टेंपरेचर पर हाई प्रेशर में डायमंड बने हुए थे। वैज्ञानिकों का मानना है कि इस प्रयोग से भविष्य में नैनो डायमंड का उत्पादन आसान हो जाएगा।