दो जगह हत्याएं, एक ही पैटर्न, एक ही आरोप, दिन भी एक... मंगलवार

दो जगह हत्याएं, एक ही पैटर्न, एक ही आरोप, एक ही संगठन की ओर उठ रहीं अंगुलियां, दिन भी एक... मंगलवार। क्या यह सब संयोग है। क्या सभ्य समाज में इस तरह के कार्यों का कोई स्थान है। इस पर सभी को विचार करना चाहिए। यहां हम जिन दो घटनाओं का जिक्र कर रहे हैं, उनमें एक जैसी समानता नजर आती है।

दो जगह हत्याएं, एक ही पैटर्न, एक ही आरोप, दिन भी एक... मंगलवार
दोनों घटनाओं में टारगेट के घर से निकलने का कई दिनों तक इंतजार गया और फिर उस पर खुलेआम, भीड़ के बीच हत्या की वारदात को अंजाम दे दिया गया।  हमलावर को अपने टारगेट की पल-पल की जानकारी थी। घर से निकलते, बिना वक्त गंवाए हमला। हत्यारों की संख्या भी दोनों में दो-दो। क्या यह सब संयोग है।

1 जुलाई 22। एक गुजरात में दूसरा उदयपुर में। दोनों के नाम का अर्थ एक। एक किशन, दूसरा कन्हैया। दोनों पर एक ही इल्जाम लगा। पहले ने मुस्लिमों के पैगम्बर से बड़ा हिंदुओं के कृष्ण को बताया। तुलना तो जीसस से भी की थी, लेकिन इस्लाम पर आस्था रखने वाले इस तुलना से भड़क गए।

दूसरे ने BJP प्रवक्ता नूपुर शर्मा के पैगम्बर को लेकर दिए गए बयान का समर्थन करते हुए पोस्ट लिखी। इस पर भी एक खास समुदाय के लोग भड़क गए। अंजाम दोनों का एक जैसा- हत्या, सरेआम। एक की गोली से और दूसरे की धारदार हथियार से गला रेतकर। इन दोनों घटनाओं में एक और बात कॉमन है। हत्या का दिन मंगलवार था। दोनों मामलों के कनेक्शन एक ही इस्लामिक संगठन दावत-ए-इस्लामी से जुड़े पाए गए हैं।

इसी साल 25 जनवरी को गुजरात के अहमदाबाद के धंधुका में 27 साल के किशन भारवाड़ की हत्या से लोगों का दिल दहल उठा था। किशन को ईशनिंदा की सजा मिली, बावजूद इसके कि उसने माफी मांग ली थी।

6 जनवरी को किशन ने सोशल मीडिया पर एक वीडियो पोस्ट किया। कुछ घंटों में ही इस वीडियो ने बवाल खड़ा कर दिया। ईशनिंदा का आरोप लगाते हुए मुस्लिम समुदाय के लोगों ने किशन पर रिपोर्ट दर्ज करा दी। कम्युनिटी का गुस्सा देखकर पुलिस फौरन हरकत में आई। किशन को अरेस्ट कर लिया गया।

किशन को 7 जनवरी को बेल मिली, लेकिन यह बेल उस कम्युनिटी से माफी मांगने के बाद मिली। कम्युनिटी के लोगों ने बेल मिलने के बाद उसकी पिटाई भी की। किशन ने पूरे समुदाय से हाथ जोड़कर माफी मांगी, लेकिन इस बीच घर वालों को धमकियां मिलनी शुरू हो चुकी थीं। धमकियां किशन को जान से मारने की। घर वालों ने जेल से छूटने के बाद उसे किसी रिश्तेदार के घर कुछ दिनों के लिए भेज दिया। किशन के फोन पर धमकियां बराबर आती रहीं।

उधर किशन की पत्नी को एक बच्ची हुई। किशन के घरवालों ने उसे घर न आने के लिए बार-बार कहा, लेकिन बच्ची का चेहरा देखने के लिए किशन 25 जनवरी को बाइक से घर के लिए रवाना हो गया। रास्ते में ही बाइक सवार दो लोगों ने भरे चौराहे उस पर ताबड़तोड़ गोलियां चला दीं। वहीं उसकी मौत हो गई।

इस मामले की इन्वेस्टिगेशन में शामिल ATS ने बाइक सवार दो आरोपियों के अलावा दिल्ली के दरियागंज से भी मौलाना कमर गनी उस्मानी को गिरफ्तार किया था। ATS ने जांच में मौलाना उस्मानी का संबंध दावत-ए-इस्लामी नाम की संस्था से होने की बात कही थी।

इतिहास फिर वर्तमान बनकर कन्हैया की हत्या के रूप में सामने आ खड़ा हुआ।

10 जून को कन्हैया के 8 साल के बेटे ने पूर्व BJP प्रवक्ता नूपुर शर्मा के समर्थन में सोशल मीडिया में पोस्ट की।

11 जून को उनके पड़ोसी नाजिम ने उन पर ईशनिंदा का आरोप लगाते हुए FIR दर्ज कराई। पुलिस ने कन्हैयालाल को गिरफ्तार कर लिया। पुलिस ने समझौता कराने के बाद उन्हें छोड़ा। समझौता लिखित था। कन्हैया ने पूरे समुदाय से माफी मांगी थी। उसी दिन कोर्ट से उन्हें जमानत भी मिल गई।

15 जून को कन्हैया ने पुलिस को एक पत्र लिखकर अपनी हत्या की आशंका जताई। इस आशंका की वजह कन्हैया को लगातार आ रहे धमकी भरे फोन थे। वे टेलर थे, उनकी बीच चौराहे पर दुकान थी। उन्होंने दुकान के आसपास भी कुछ लोगों को उन पर नजर रखते देखा।

नाजिम ने कन्हैया की फोटो वायरल कर दी थी। उसमें लिखा था- अगर यह व्यक्ति कहीं दिखे तो इसे जान से मार दो।

कन्हैया ने 5-6 दिन तक दुकान भी नहीं खोली। 28 तारीख को जब वह दुकान पहुंचे तो दो लोग उनकी दुकान में पजामा सिलवाने के बहाने घुसे। उन्होंने नाप लेनी शुरू की। और फिर दिनदहाड़े, भरे चौराहे को नजरअंदाज करते हुए एक व्यक्ति ने उन पर धारदार हथियारों से वार किया और गर्दन काट दी। दूसरे ने वीडियो बनाया।

इस मामले में अब तक हुई दोनों गिरफ्तारी में भी NIA ने दावते-ए-इस्लामी से हत्यारों के तार जुड़े होने की आशंका जाहिर की है।
किशन और कन्हैया दोनों की कहानी में सोशल मीडिया पोस्ट है, ईशनिंदा है। पड़ोसियों का ऐतराज है। गिरफ्तारी और फिर ईशनिंदा के आरोपी का माफी मांगना है, लेकिन माफी से संतुष्ट न होने वाले दहशतगर्दों की धमकियां हैं।

इतना ही नहीं, टारगेट के घर से निकलने का कई दिनों तक इंतजार गया और फिर उस पर खुलेआम, भीड़ के बीच हत्या की वारदात को अंजाम दे दिया गया।  हमलावर को अपने टारगेट की पल-पल की जानकारी थी। घर से निकलते, बिना वक्त गंवाए हमला। हत्यारों की संख्या भी दोनों में दो-दो। क्या यह सब संयोग है।