दीर्घजीवी होने को लेकर क्या कहते हैं वैज्ञानिक, कहां तक पहुंची उनकी रिसर्च?

कैथी स्लैक कहती हैं, "आज भी कई लोग हैं, जिनकी काफी उम्र है। लेकिन उनका स्वास्थ्य अच्छा नहीं दिखता, यही वो पहलू है जिस पर काम करने की ज़रूरत है। ये एक पुरातनपंथी सलाह लग सकती है लेकिन हमें हेल्दी लाइफ़ स्टाइल अपनाने की कोशिश करनी चाहिए। सक्रिय बने रहने की कोशिश कीजिए। उम्र बढ़ने के साथ अपनी गतिविधियों को बनाए रखने की कोशिश कीजिए। अच्छी तरह से खाइए। बहुत ज्यादा नहीं। बहुत कम भी नहीं। अल्कोहल लेने की मात्रा तय कीजिए। धूम्रपान बंद कर दीजिए।"

दीर्घजीवी होने को लेकर क्या कहते हैं वैज्ञानिक, कहां तक पहुंची उनकी रिसर्च?
बुढ़ापा आने की रफ़्तार धीमी करने या फिर पूरी प्रक्रिया को उल्टा करने का फॉर्मूला अभी उपलब्ध नहीं है लेकिन वैज्ञानिक इस दिशा में काम कर रहे हैं।

20 जून 22। विश्वभर में 21 जून को अंतर्राष्टीय योग दिवस मनाया जा रहा है। इसके पीछे भी दीर्घजीवी होने की कामना छुपी हुई है। योग हमें दीर्घजीवी बनाता है। इसके साथ विश्वभर में इसके लिए पुरातन काल से प्रयास होते रहे हैं, आज भी हो रहे हैं। इस अवसर पर हम यह जानने का प्रयास करते हैं कि दीर्घजीवी होने को लेकर वैज्ञानिक क्या कहते हैं, उनकी रिसर्च कहां तक पहुंची है। क्या कभी 100 साल जीने का सपना सकार हो पाएगा। आओ सिलसिलेवार बात को आगे बढ़ाते हैं।

तारीख़ थी 2 जनवरी और दिन था शुक्रवार। जापान के एक छोटे से गांव में एक बच्ची का जन्म हुआ। उनका नाम रखा गया कने।
ये साल 1903 की बात है। 119 साल बाद यानी अप्रैल 2022 में कने तनाका की मौत हुई। वो आधिकारिक तौर पर दुनिया की सबसे उम्रदराज़ शख्स थीं।
उन्होंने अपने जीवन के आखिरी साल एक नर्सिंग होम में बिताए। वो सुबह छह बजे उठतीं। गणित के सवाल हल करतीं। बोर्ड गेम्स खेलतीं। चॉकलेट खातीं। कॉफी और सोडा पीतीं।
एक वक़्त ऐसा भी था जब बुजुर्ग भले ही सौ साल तक जीने का आशीर्वाद देते हों लेकिन ऐसे ख्याल का सच होना नामुमकिन माना जाता था, लेकिन अब ऐसा नहीं है।
-सौ साल तक जीने का नुस्ख़ा क्या है?
साइंस काउंसिल ऑफ़ जापान की वाइस प्रेसिडेंट रह चुकीं डॉक्टर हिरोको अकियामा कहती हैं, "अब सौ साल तक जीने में कुछ असामान्य नहीं है।"
डॉक्टर हिरोको अकियामा की विशेषज्ञता 'स्टडी ऑफ़ एजिंग' में है।
वो बताती हैं कि जापान की आबादी तेज़ी से बूढ़ी हो रही है। जापान में अब महिलाओं की औसत आयु 88 और पुरुषों की औसत आयु 82 साल है। जापान की कुल आबादी के 29 प्रतिशत लोगों की उम्र 65 साल या उससे ज़्यादा है।
औसत आयु के हिसाब से हॉन्ग कॉन्ग, सिंगापुर, स्विट्ज़रलैंड, इटली और स्पेन ही जापान के करीब आते हैं। जापान के स्वास्थ्य मंत्रालय के मुताबिक बीते साल देश के 86 हज़ार 510 नागरिकों की उम्र सौ साल या उससे ज़्यादा थी।
डॉक्टर हिरोको कहती हैं, "जापान में लोगों के लंबे जीवन के कई कारण हैं। उनमें से एक है यूनिवर्सल हेल्थ इंश्योरेंस सिस्टम। हमने 1960 के दशक में इसकी शुरुआत कर दी थी। यहां लोगों को आसानी से स्वास्थ्य सुविधाएं मिल जाती हैं। दूसरा कारण ये है कि जापान के लोग स्वास्थ्य को लेकर सतर्क रहते हैं और उनकी लाइफ़ स्टाइल हेल्दी होती है।"
कितने साल तक ज़िंदा रहेंगे आप?
जापान के लोग खूब मेहनत करते हैं। वो कैंसर और दिल की बीमारी से बचने के लिए सावधानियां रखते हैं। डॉक्टर हिरोको बताती हैं कि जापान के लोग खान पान पर ध्यान देते हैं। फैट का कम सेवन करते हैं। मछलियां, सब्जियां और ग्रीन टी का ज़्यादा प्रयोग करते हैं। जापान में लोगों की औसत उम्र बढ़ रही है लेकिन कुल जनसंख्या में कमी आ रही है। दरअसल, बीते कुछ समय से जन्मदर घट रही है और नौकरियां करने लायक उम्र के लोगों की संख्या भी लगातार कम हो रही है।
बुजुर्गों की संख्या बढ़ने के साथ ये समझ भी विकसित हुई कि उम्रदराज़ लोगों की ज़रूरतें भी अलग तरह की हैं।
डॉक्टर हिरोको बताती हैं कि सरकार का प्रमुख रूप से ध्यान हेल्थ केयर सिस्टम और पेंशन सिस्टम पर है। हाउसिंग और ट्रांसपोर्ट सिस्टम पर भी ध्यान दिया गया है, लेकिन समाज के आधारभूत ढांचे को फिर से तैयार करने की ज़रूरत है। डॉक्टर हिरोको ने अपनी टीम के साथ कई सामाजिक प्रयोग किए ताकि ऐसे तरीके तलाशे जा सकें जिससे ज़्यादा उम्र के लोग बिना किसी पर निर्भर हुए रह सकें।
डॉक्टर हिरोको कहती हैं, "हम समुदायों की नए सिरे से संरचना करने की कोशिश कर रहे हैं। ताकि उम्रदराज़ समाज की ज़रूरतों को पूरा किया जा सके। हम ऐसा समुदाय बनाना चाहते हैं जहां लोग सौ साल की उम्र तक स्वस्थ, सक्रिय और एक दूसरे से जुड़े रहें और ख़ुद को सुरक्षित महसूस करें। हम सिर्फ़ बुजुर्गों के लिए ही नहीं बल्कि सभी उम्र के लोगों के लिए काम कर रहे हैं।"
जापान में रिटायर होने के बाद लोग नई नौकरियां शुरू कर रहे हैं। वो अपना दूसरा करियर या कहें तो दूसरा जीवन शुरू कर रहे हैं। इससे रूटीन बना रहता है और स्वस्थ रहने में मदद मिलती है।
डॉक्टर हिरोको अकियामा 78 साल की हैं और अपने दूसरे करियर का आनंद ले रही हैं।
वो बताती हैं, "मैं लंबे समय तक यूनिवर्सिटी में प्रोफ़ेसर थी। जब मेरी उम्र 70 साल हुई तो मैंने खेती शुरू की। मेरे समेत चार लोग, जिनके पास अलग-अलग तरह की खूबियां हैं, हमने मिलकर एक कंपनी बनाई और खेती शुरू की। जब मैं छोटी थी तब मैं किसान बनना चाहती थी। ये एक पुराना सपना था।"
क्या वो सौ साल की उम्र तक जीना चाहती हैं, इस सवाल पर डॉक्टर हिरोको अकियामा बताती हैं कि उनकी मां की मौत हुई तो वो 98 साल की थीं। वो कहती हैं कि सौ साल की ज़िंदगी पर्याप्त है। और उनकी सौ साल से ज़्यादा जीने कोई ख़ास तमन्ना नहीं है।
बुढ़ापा क्या है?
बर्मिंघम के एस्टन रिसर्च सेंटर फ़ॉर हेल्थी एजिंग की सीनियर लेक्चरर कैथी स्लैक कहती हैं, "बुढ़ापा एक नितांत निजी प्रक्रिया है। किन्हीं भी दो लोगों की उम्र बढ़ने की प्रक्रिया एक सी नहीं होती है।"
हम बूढ़े क्यों होते हैं और क्या इस जैविक प्रक्रिया को धीमा किया जा सकता है, कैथी की लैब में इसी सवाल का जवाब तलाश किया जा रहा है।
बुढ़ापे के बाहरी संकेत सब जानते हैं। मसलन झुर्रियां पड़ना और बालों का सफ़ेद होना लेकिन हमारे जिस्म के अंदर भी बहुत कुछ चल रहा होता है। कैथी बताती हैं कि उम्र बढ़ने का असर शरीर के सभी ऊतकों पर नज़र आता है। इसका असर दिमाग से लेकर प्रजनन क्षमता तक होता है। इन बदलावों को बूढ़े होने के हॉलमार्क यानी प्रामाणिक चिन्ह कहा जाता है।
कैथी बताती हैं, "इसमें कोशिकाओं से जुड़ी कई प्रक्रियाएं शामिल की जा सकती हैं। कोशिका के अंदर प्रोटीन क्वालिटी कंट्रोल में कमी आना। माइटोकॉन्ड्रिया का निष्क्रिय होना। माइटोकॉन्ड्रिया कोशिका का वो हिस्सा है, जो ऊर्जा का निर्माण करती है। उम्र बढ़ने के साथ ये काम करना बंद कर सकती है।
कैथी बताती हैं कि जब उम्र बढ़ने लगती है, तब डायबिटीज़ जैसी स्थाई बीमारियों का जोखिम भी बढ़ जाता है। पोषक तत्वों की आपूर्ति को रेगुलट करना कोशिकाओं के काम करने के लिए ज़रूरी है। दिक्कत आने पर स्टेम सेल यानी मूल कोशिकाएं नष्ट हो जाती हैं। स्टेम सेल कोशिकाओं की मरम्मत करती हैं। बदलाव दिमाग़ में भी आते हैं।
कैथी स्लैक बताती हैं, " कुछ लोगों की जब उम्र बढ़ती है तो उनके दिमाग का आकार छोटा हो जाता है। इसकी वजह से कई बुजुर्गों की याददाश्त कमज़ोर हो जाती है। उन्हें एक साथ कई सारे काम करने में दिक्कत आती है। उनके बर्ताव में भी बदलाव आते हैं। वो या तो ज़्यादा व्यग्र हो जाते हैं या फिर अवसाद में चले जाते हैं। लेकिन अहम बात ये है कि हर बुजुर्ग में ये सारी बातें एक सी नहीं होती हैं।"
सौ साल तक जीने की अपनी उम्मीदों को हम कैसे बढ़ा सकते हैं, कैथी इस सवाल का भी जवाब देती हैं।
कैथी स्लैक कहती हैं, "आज भी कई लोग हैं, जिनकी काफी उम्र है। लेकिन उनका स्वास्थ्य अच्छा नहीं दिखता, यही वो पहलू है जिस पर काम करने की ज़रूरत है। ये एक पुरातनपंथी सलाह लग सकती है लेकिन हमें हेल्दी लाइफ़ स्टाइल अपनाने की कोशिश करनी चाहिए। सक्रिय बने रहने की कोशिश कीजिए। उम्र बढ़ने के साथ अपनी गतिविधियों को बनाए रखने की कोशिश कीजिए। अच्छी तरह से खाइए। बहुत ज्यादा नहीं। बहुत कम भी नहीं। अल्कोहल लेने की मात्रा तय कीजिए। धूम्रपान बंद कर दीजिए।"
बुढ़ापे को लेकर अभी भी कई सारी बातें हैं जो हम नहीं जानते हैं। कैथी स्लैक कहती हैं कि ऐतिहासिक तौर पर हमने ज़्यादा फोकस बीमारी की प्रक्रिया पर दिया है।
कई ऐसे वैज्ञानिक हैं जो कैंसर और दूसरी बीमारियों पर काम कर रहे हैं लेकिन अब उनके जैसे लोगों का भी एक समूह है जो रोगों को उम्र से जुड़ी बीमारियों के तौर पर देख रहा है।
इस तरह कई बीमारियों के उपचार के नए तरीके विकसित किए जा सकते हैं।
दिलचस्प प्रयोग
न्यूर्याक सिटी स्थित अल्बर्ट आइंस्टीन कॉलेज ऑफ़ मेडिसिन के इंस्टीट्यूट फ़ॉर एजिंग रिसर्च में डायरेक्टर नीर बारज़िलाई बताते हैं, " मेरी प्रयोगशाला में हम दिखाते हैं कि प्रयासों के जरिए शरीर के बूढ़े होने की रफ़्तार को धीमा किया जा सकता है। कुछ मामलों में इसे रोका और इसकी चाल को पलटा भी जा सकता है। ये करना मुमकिन हैं।"
ये अनुमान लगाना मुश्किल है कि दुनिया में सौ साल या उससे ज़्यादा उम्र के कितने लोग हैं।
संयुक्त राष्ट्र के जनसंख्या विभाग का अनुमान है कि साल 2021 में ऐसे पांच लाख 73 हज़ार लोग थे।
डॉक्टर नीर बारज़िलाई अपने रिसर्च के बारे में कहते हैं कि ज़्यादा से ज़्यादा लोग सौ साल या उससे लंबी ज़िंदगी जिएं, इसके लिए वो तरीके तलाश रहे हैं और प्रयोग कर रहे हैं। सौ साल की उम्र पूरी कर चुके साढ़े सात सौ लोगों और उनके परिवारों से भी वो मदद ले रहे हैं। वो ऐसे जीन्स की तलाश में हैं जिनके जरिए बुढ़ापे की रफ़्तार को धीमा किया जा सकता है। इस जानकारी का इस्तेमाल दवा बनाने में भी किया जा सकता है।
उनकी टीम बुढ़ापे से जुड़ी तीन संभावनाओं पर काम कर रही है। इनमें से पहली का मक़सद है प्रक्रिया को धीमा करना। इसे काल्पनिक चरित्र 'डोरियन ग्रे' का नाम दिया गया है, जिन पर उम्र का असर नहीं होता बल्कि ये असर उनकी छुपी हुई पेंटिंग पर दिखाई देता है।
नीर बारज़िलाई बताते हैं, " दूसरी स्थिति को हम 'फाउंटेन ऑफ़ यूथ' कहते हैं। इसमें सभी लोगों को युवा बनाने की बात होती है। इसे संभव कर दिखाना सबसे मुश्किल है। तीसरी स्थिति सबसे ज्यादा रोमांचक है। इसे नाम दिया गया है पीटर पेन। इस काल्पनिक चरित्र की उम्र नहीं बढ़ती है। विचार ये है कि इसके लिए बीस या तीस साल की उम्र के लोगों को लिया जाए। उन्हें हर कुछ महीने पर या साल में एक बार उपचार दिया जाए और उन पर उम्र बढ़ने से होने वाले असर को रोका जाए या फिर उसकी रफ़्तार बहुत धीमी कर दी जाए।"
बायोमार्कर्स ऐसे मोलेक्यूल्स यानी अणु हैं जो अंदर की बीमारियों को लेकर संकेत देते हैं जैसे कि कैलेस्ट्रोल दिल की बीमारी को लेकर संकेत देता है। लेकिन बुढ़ापे की पहचान के लिए ऐसे मार्कर्स तलाशना आसान नहीं है।
नीर बारज़िलाई कहते हैं, "हमें बहुत सारे बायोमार्कर्स की ज़रूरत है। हमें ऐसे बायोमार्कर्स की तलाश है जो दो जानकारी दे सकें। पहली ये कि वो वास्तविक उम्र और बायोलॉजिक यानी जैविक उम्र के बीच अंतर बता सकें। आप जानते हैं कि कुछ लोग अपनी उम्र से कम तो कुछ ज़्यादा नज़र आते हैं। दूसरे नंबर पर हम ये चाहते हैं कि उम्र बढ़ने की रफ़्तार कम करने के लिए हम जो दवा बना रहे हैं, जब उनका इस्तेमाल हो तब बायोमार्कर्स में बदलाव दिखाई दे।"
बुढ़ापे पर रोक लगाने के मक़सद से तैयार की जा रहीं कुछ दवाओं को रेगुलेटर्स से मंजूरी मिल चुकी है और उन्हें तैयार भी किया जा रहा है। इनका इस्तेमाल दूसरी स्थितियों में भी किया जाता है। जैसे कि ट्रांसप्लांट के बाद जिस्म अंग को ख़ारिज न कर दे इसके लिए ये दवाएं दी जाती हैं।
टाइप टू डायबटीज़ पर काबू पाने के लिए इस्तेमाल होने वाली 'मेटफॉर्मिन' नाम की दवा के दूसरे मकसद में प्रयोग के लिए हो रहे क्लीनिकल ट्रायल से जुड़े अभियान की डॉक्टर नीर बारज़िलाई अगुवाई कर रहे हैं।
क्या आपको उम्मीद है कि आपके जीते जी इस दिशा में कोई बड़ी कामयाबी हासिल होगी,  तो वो कहते हैं, "हां, यकीनन। हम दो साल में क्या कर सकते हैं इसे लेकर हम बढ़ा चढ़ाकर अनुमान लगा रहे होते हैं, लेकिन हम पांच या 10 साल में क्या कर सकते हैं, इसे लेकर कम अनुमान लगाते हैं। मुझे लगता है कि इस क्षेत्र में एक जबरदस्त लहर दिख रही है। दुनिया भर के अमीर लोग भी इसमें निवेश कर रहे हैं और आगे इसकी रफ़्तार बढ़ेगी।"
उम्र बढ़ाते हैं दोस्त
हार्वर्ड मेडिकल स्कूल में मनोचिकित्सा के प्रोफ़ेसर रॉबर्ट वैल्डिंगर कहते हैं, "जो लोग दूसरों के साथ बेहतर तरीके से जुड़े होते हैं और गर्मजोशी भरे रिश्ते रखते हैं, वो बेहतर रिश्ते न रखने वाले लोगों की तुलना में लंबी ज़िंदगी जीते हैं और स्वस्थ रहते हैं।"
रॉबर्ट वैल्डिंगर हार्वर्ड स्टडी ऑफ़ एडल्ट डेवलपमेंट के डायरेक्टर भी हैं।

वो बताते हैं, " ये हमारे अध्ययन का 84वां साल है। हमारी जानकारी के मुताबिक लोगों के एक ही समूह पर ये सबसे लंबा अध्ययन है। इसकी शुरुआत तब हुई थी जब वो किशोर थे। ये उनके बुजुर्ग होने तक जारी है। अब हमने उनके बच्चों पर अध्ययन शुरू कर दिया है। हमने ये जानने की कोशिश की है कि इंसानी जीवन में क्या ग़लत हुआ और इससे सही ट्रैक पर चल रही ज़िंदगी को लेकर अध्ययन में भी मदद मिलेगी।"
इस अध्ययन की शुरुआत 1938 में हुई।
रॉबर्ट बताते हैं कि शुरुआत में 724 प्रतिभागी थे। उनमें से ज़्यादातर की मौत हो चुकी है। लेकिन नब्बे और सौ साल से ज़्यादा उम्र के कुछ लोग अब भी ज़िंदा हैं।
वो बताते हैं कि इस अध्ययन से कुछ ऐसी बातें सामने आईं जिनसे हम परिचित हैं। ये हैं पौष्टिक आहार लेना और लाइफ़स्टाइल से जुड़ी आदतें, जो लंबी उम्र जीने में मदद करती हैं।
रॉबर्ट के मुताबिक इस अध्ययन से पता चला कि दूसरे लोगों से ज़्यादा रिश्ते रखने, अपने आसपास के लोगों से ज़्यादा जुड़े रहने और गर्मजोशी दिखाने से लोगों को स्वस्थ रहने में मदद मिली।
रॉबर्ट वैल्डिंगर कहते हैं, "इसे लेकर अब बहुत शोध हो चुका है। इस मामले में सबसे अच्छी परिकल्पना का संबंध तनाव और तनाव पर काबू पाने को लेकर है। मान लीजिए अगर दिन में ऐसा कुछ हुआ जिसने आपको परेशान कर दिया या फिर आपकी किसी से बहस हो गई तो आप अपने शरीर में जकड़न सी महसूस करेंगे। आप घर आते हैं और अगर आपके पास ऐसा कोई भरोसेमंद व्यक्ति है जो आपकी बात सुने तो आपको महसूस होगा कि आपकी थकान उतर गई है। हम ये मानते हैं कि जो लोग अकेले हैं, उनका गुस्सा कभी पूरी तरह उतरता नहीं है। उनके शरीर में हमेशा एक हल्का सा तनाव होता है। ये शरीर के सिस्टम को खराब करने लगता है। शोध के जरिए हमें ये जानकारी मिलती है कि अच्छे रिश्ते हमें तनाव से बाहर आने में मदद करते हैं।" लंबे जीवन के लिए रिश्ते ज़रूरी हैं लेकिन कुछ लोग ऐसे हैं जिन्हें अकेलापन ही रास आता है।
उनके लिए रॉबर्ट वैल्डिंगर कहते हैं, "ये एक अहम प्वाइंट है। हम सब अच्छे लोगों से संपर्क रखना चाहते हैं। हम में से कुछ लोग अंतरमुखी होते हैं और ये कोई समस्या नहीं है। अंतरमुखी लोगों को लगता है कि उनके आसपास के ज़्यादातर लोग तनाव में हैं। उन्हें सिर्फ़ एक या दो करीबी लोगों की ज़रूरत होती है। उनके लिए ये ही काफी होता है। स्वस्थ जीवन के लिए आपके कितने रिश्ते होने चाहिए, इस मामले में सब पर एक ही फॉर्मूला लागू नहीं होता है। इतना ही नहीं पालतू जानवर भी हमें खुशी दे सकते हैं और हमारा तनाव कम कर सकते हैं।"

रॉबर्ट बताते हैं कि उन्होंने उन लोगों पर भी अध्ययन किया है जिनकी उम्र सत्तर या अस्सी साल से ज़्यादा है और उन्होंने जीवन में पहली बार रिश्ते बनाने की कोशिश की है। कुछ लोगों को पहली बार प्यार हुआ है। ऐसे में कह सकते हैं कि कभी भी बहुत देर नहीं होती है।
लौटते हैं उसी सवाल पर कि सौ साल तक जीने का नुस्ख़ा क्या है?
गारंटी के साथ ऐसा कोई नुस्ख़ा नहीं बताया जा सकता है लेकिन अगर आप एक से ज़्यादा चीजें करते हैं तो इससे मदद मिल सकती है।
खान पान को सही रखें। शारीरिक गतिविधियां बनाए रखें। कोई दोस्त या पालतू जानवर तलाशिए जिससे आप बात कर सकें। अगर आप किसी ऐसे देश में रहते हैं, जहां बुजुर्गों की संख्या युवाओं से ज़्यादा है तो वहां शायद ऐसे बदलाव हो रहे हों जहां आपके जीवन की शाम जोश भरी और आरामदेह हो।
बुढ़ापा आने की रफ़्तार धीमी करने या फिर पूरी प्रक्रिया को उल्टा करने का फॉर्मूला अभी उपलब्ध नहीं है लेकिन वैज्ञानिक इस दिशा में काम कर रहे हैं। लेकिन जब तक ऐसा होता है तब तक रॉबर्ट वैल्डिंगर की ये सलाह आपके काम आ सकती है कि अपने शरीर का इस तरह ध्यान रखें कि आपको सौ साल तक इसकी ज़रूरत हो सकती है।