कैसे खत्म हुई दैत्याकार मेगालोडन शार्क? नई स्टडी में रहस्य का खुलासा

नई स्टडी में दावा किया जा रहा है कि दोनो खूंखार शिकारियों के लिए व्हेल और अन्य मछलियों की कमी हो गई होगी, जो दुनिया की सबसे बड़ी मेगालोडन शार्क के विलुप्त होने का कारण बनी। पर्यावरण का दबाव जैसे समुद्र स्तर में परिवर्तन ने भी एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाई होगी। मेगलाडोन का विलुप्त होना हमेशा एक रहस्य रहा है।

कैसे खत्म हुई दैत्याकार मेगालोडन शार्क? नई स्टडी में रहस्य का खुलासा

1 जून 22। समुद्र रहस्यों से भरा हुआ है। इसमें हजारों प्रजातियों की मछलियां रहती हैं। दुनिया में सबसे खतरनाक मछलियों में से ग्रेट वाइट शार्क है, लेकिन करीब 30 लाख साल पहले इसी समुद्र पर एक दूसरी शार्क का राज होता था। ये मेगालोडन शार्क थी जो अब तक की सबसे बड़ी शार्क की प्रजाति थी। वाइट शार्क जहां पांच मीटर की होती है तो मेगालोडन शार्क 16-18 मीटर होती थीं। मेगालोडन के विशालकाय जीवाश्म दातों की स्टडी से पता चला है कि भोजन के लिए मेगालोडन को वाइट शार्क के साथ प्रतिस्पर्धा करनी पड़ी।

नई स्टडी में दावा किया जा रहा है कि दोनो खूंखार शिकारियों के लिए व्हेल और अन्य मछलियों की कमी हो गई होगी, जो दुनिया की सबसे बड़ी मेगालोडन शार्क के विलुप्त होने का कारण बनी। पर्यावरण का दबाव जैसे समुद्र स्तर में परिवर्तन ने भी एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाई होगी। मेगलाडोन का विलुप्त होना हमेशा एक रहस्य रहा है।

कैसे हुआ शोध

मेगालोडन के विलुप्त होने से जुड़े कई और कारण भी हो सकते हैं। जैसे समुद्र स्तर में बदलाव से उनके आवास को नुकसान और शिकार में कमी। नए स्टडी के लिए अंतरराष्ट्रीय शोधकर्ताओं ने जीवित और विलुप्त शार्क के दातों में जिंक आइसोटोप का इस्तेमाल किया। इससे उन्हें मृत जानवरों के आहार को समझने में मदद मिली। दोनों शार्क के दांतों से पता चला है कि वाइट शार्क और मेगालोडन शार्क का खाना-पीना एक समय समान था।

खाने की हो गई होगी कमी

दोनों शार्क व्हेल, डॉल्फिन और पोरपोइज़ का शिकार करती थीं। वैज्ञानिक मानते हैं कि पर्यावरणीय दबाव और जलवायु परिवर्तन इनके विलुप्त होने का प्रमुख कारक हो सकता है। मेंज में जोहान्स गुटेनबर्ग विश्वविद्यालय के प्रोफेसर थॉमस टुटकेन ने कहा कि यह सबूत मेगालोडन के विलुप्ति के रहस्य को सुलझा सकता है। मछलियों की कमी के दौरान वाइट शार्क कम खाने में भी जिंदा रही होगी, लेकिन मेगालोडन का अस्तित्व ही नहीं बचा।