पीएफआई पर इतने गंभीर आरोप, बैन सिर्फ 5 साल का, जानिए क्या है वजह
28 सितंबर 22। केंद्र सरकार ने आखिरकार पॉपुलर फ्रंट ऑफ इंडिया (Popular Front Of India Ban) और उससे जुड़े संगठनों पर पांच साल की पाबंदी लगा दी है। जिन संगठनों पर पाबंदी लगाई गई है, उनमें कैंपस फ्रंट ऑफ इंडिया, रिहैब इंडिया फाउंडेशन, ऑल इंडिया इमाम काउंसिल, नेशनल कन्फेडेरेशन ऑफ ह्यूमन राइट्स ऑर्गनाइंजेशन, विमेंस फ्रंट, जूनियर फंर्ट, एंपावर इंडिया फाउंडेशन शामिल हैं। PFI पर 9 हिंदुओं की नृशंस हत्या व एक प्रोफेसर के हाथ काटने की घटनाएं अब तक सामने आ चुकी हैं। इसके अलावा भी कई ऐसी घटनाएं हैं, जिनमें पीएफआई ( PFI) का हाथ होने की अशंका व्यक्त की जाती रही है।
गृह मंत्रालय ने इन संगठनों के खूनी खेल और काले कारनामों की एक लिस्ट भी जारी की है। इससे पता चलता है कि ये सारे संगठन देश के कई राज्यों में दंगा करवाने, हत्याएं करवाने, देश के खिलाफ साजिश रचने में लिप्त रहे हैं। केंद्रीय जांच एजेंसियों ने देशभर में दो बार छापेमारी कर इस संगठन के 300 से ज्यादा सदस्यों को गिरफ्तार किया है। पीएफआई के तार खतरनाक आतंकी संगठन आईएसआईएस से भी जुड़े हैं। इसका इरादा देश के लोगों में भय पैदा करना था।
अब आप सोच रहे होंगे कि इतने खतरनाक संगठन को सिर्फ पांच साल के लिए ही क्यों बैन किया गया? इसपर पूरी तरह से प्रतिबंध क्यों नहीं लगा दिया गया? क्या पांच साल बाद फिर से ये संगठन संचालित होने लगेगा?
पहले जानिए PFI है क्या?
पॉपुलर फ्रंट ऑफ इंडिया यानी पीएफआई का गठन 17 फरवरी 2007 को हुआ था। ये संगठन दक्षिण भारत के तीन मुस्लिम संगठनों का विलय करके बना था। इनमें केरल का नेशनल डेमोक्रेटिक फ्रंट, कर्नाटक फोरम फॉर डिग्निटी और तमिलनाडु का मनिथा नीति पसराई शामिल थे। पीएफआई का दावा है कि इस वक्त देश के 23 राज्यों यह संगठन सक्रिय है। देश में स्टूडेंट्स इस्लामिक मूवमेंट यानी सिमी पर बैन लगने के बाद पीएफआई का विस्तार तेजी से हुआ है। कर्नाटक, केरल जैसे दक्षिण भारतीय राज्यों में इस संगठन की काफी पकड़ बताई जाती है। इसकी कई शाखाएं भी हैं।
खाड़ी देशों से जुटाते थे पैसा
पॉपुलर फ्रंट ऑफ इंडिया (पीएफआई) के प्रचारक व सक्रिय सदस्य खाड़ी देशों से (where did you get money from)जकात का पैसा जुटाते हैं। इसके लिए वहां के अमीर कारोबारियों को भारत में मुस्लिमों पर जुल्म की झूठी कहानी बयां करते हैं। फिर उन्हीं पैसे से भारत में आतंक की पाठशाला चलाते हैं। PFI यहां गरीबों की पढ़ाई व बीमारी के नाम पर मदद कर नेटवर्क मजबूत कर रहा है।
इसका खुलासा केरल के कोझिकोड से ईडी की गिरफ्त में आए PFI के प्रचारक शफीक पाएथ की पूछताछ में हुआ है। शफीक से ED के हजरतगंज स्थित कार्यालय में पूछताछ की जा रही है। शफीक की रिमांड तीन अक्तूबर को खत्म होगी।
पीएफआई के लिए फंड जुटाने का काम रिहैब इंडिया फाउंडेशन करता है। यही फाउंडेशन ही शफीक को पैसे देता था, जिसे उसने लखनऊ समेत प्रदेश के कई जिलों के अलावा दिल्ली और भारत-नेपाल सीमा के इलाकों में संगठन को मजबूत करने के लिए खर्च किया।
सुरक्षा एजेंसियों के मुताबिक फाउंडेशन के जरिए आए पैसे को धार्मिक संस्थानों में लगाया जा रहा है, जहां धर्म के नाम पर जिहाद का संदेश दिया जाता है। इन पैसों से जरूरतमंदों को लालच देकर धर्मांतरण व लव जिहाद कराई जा रही है। ईडी को शफीक से पीएफआई का नेटवर्क खाड़ी देशों से जुड़े होने की जानकारी मिली है। शफीक विदेशियों को भी संगठन से जोड़ने का काम कर रहा था।
फिर केवल पांच साल के लिए ही प्रतिबंध क्यों?
सुप्रीम कोर्ट के वरिष्ठ अधिवक्ता के मुताबिक अभी एनआईए की प्रारंभिक जांच के आधार पर गृह मंत्रालय ने ये आदेश जारी किया है। अभी इसकी जांच जारी है और चार्जशीट फाइल होनी है। प्रारंभिक जांच में कई अहम सबूत मिले। कई ने गवाही दी, जिसके आधार पर एक ये बड़ा एक्शन हुआ है। आगे चार्जशीट फाइल करते समय सरकार इन संगठनों पर हमेशा के लिए पाबंदी लगा सकती है। ये भी सबूत के आधार पर होगा। उन्होने बताया कि किसी भी संगठन को खत्म करने के लिए शुरुआती पांच साल काफी अहम होते हैं। इन पांच साल में अगर सही से कानूनी शिकंजा कसता है तो इस संगठन के सभी गलत लोगों का तार कट जाएगा। जो सरकार के लिए बड़ी उपलब्धि होगी।