फ़ासीवादियों की देशभक्ति नहीं, उनकी दूसरों से घृणा उन्हें परिभाषित करती है

आरएसएस को फ़ासीवादी संगठन कहने पर कुछ लोग नाराज़ हो उठते हैं। उनका तर्क है कि वह देशभक्त संगठन है। क्या देश में रहने वाली आबादियों के ख़िलाफ़ घृणा पैदा करते हुए, उनके ख़िलाफ़ हिंसा करते हुए देशभक्ति की जा सकती है?

फ़ासीवादियों की देशभक्ति नहीं, उनकी दूसरों से घृणा उन्हें परिभाषित करती है
ममदानी इस्राइल के मामले में दुनिया के सारे देशों से बहिष्कार की नीति की मांग करते हैं। लेकिन भारत में उसी प्रकार की राजनीति को एक और ऐसा विचार मानते हैं, जिससे मेज़ पर असहमति ज़ाहिर की जानी चाहिए। उनके मुताबिक़ असहमत होते हुए भी मुसलमान विरोधी विचार को मंच दिया जाना चाहिए।

16 सितंबर 22। अमेरिका के न्यूयॉर्क शहर में होने वाले जयपुर लिटरेचर फ़ेस्टिवल से कुछ लेखकों, बुद्धिजीवियों ने अपना नाम वापस ले लिया है। ऐसा उन्होंने एक सत्र में भारतीय जनता पार्टी की एक नेता को आमंत्रित किए जाने पर अपना ऐतराज़ जताने के लिए किया है।

यह स्वाभाविक ही है कि भाजपा नेता ने उनके इस कदम को उदारवादियों की असहिष्णुता का एक उदाहरण बतलाया है और कहा है कि इससे मालूम होता है कि ख़ुद से भिन्न विचारों के लिए उनके मन में कितनी घृणा है। उत्सव में आमंत्रित युगांडा के अध्यापक और लेखक महमूद ममदानी ने कहा है कि वे इसमें ज़रूर शामिल होंगे। किसी के विचार से सख़्त असहमति के बावजूद उसकी उपस्थिति के कारण किसी कार्यक्रम का बहिष्कार उनकी दृष्टि में ग़लत है।

लेखक सुचित्रा विजयन ने याद दिलाया कि इस्राइल के संदर्भ में ऐसा नहीं सोचते। वहां वे बहिष्कार की नीति का समर्थन करते हैं। ममदानी का तर्क होगा कि इस्राइल तक़रीबन नस्लभेदी नीति पर आधारित राष्ट्र बन गया है। क्या भारत की तुलना इस्राइल से की जा सकती है? क्या भारत की संघीय सरकार का नेतृत्व जो राजनीतिक दल कर रहा है, उसकी राजनीतिक विचारधारा इस्राइल से तुलनीय है?

यह कहा जाता है कि आरएसएस भारत से प्रेम करने वालों का संगठन है। तो क्या इस्राइली जियानवादी उस देश से प्रेम नहीं करते? या क्या जर्मन और इतालवी फ़ासिस्ट अपने देशों से प्रेम नहीं करते थे? फ़ासिस्ट की देशभक्ति नहीं, उसकी दूसरों से घृणा उसे परिभाषित करती है।

यह आश्चर्य की बात नहीं कि गांधी की हत्या का इरादा ज़ाहिर करने और उस पर उल्लास मनाने वाले आरएसएस को लोग सभ्य संगठन मानते हैं और ऐसा न करने पर दूसरों की भर्त्सना करते हैं। यह भी कहा जाता है कि आरएसएस ने किसी भी दूसरे संगठन के मुक़ाबले देश को जोड़ने का काम कहीं अधिक किया है। क्या सचमुच? उसने भारत प्रेम को मुसलमान और ईसाई घृणा का पर्याय बना दिया है।

ममदानी इस्राइल के मामले में दुनिया के सारे देशों से बहिष्कार की नीति की मांग करते हैं। लेकिन भारत में उसी प्रकार की राजनीति को एक और ऐसा विचार मानते हैं, जिससे मेज़ पर असहमति ज़ाहिर की जानी चाहिए। उनके मुताबिक़ असहमत होते हुए भी मुसलमान विरोधी विचार को मंच दिया जाना चाहिए।