अपने नाम को सार्थक नहीं कर पाई ‘ब्रह्मास्त्र’, संवादों में भी नहीं दिखा दम

अपने नाम को सार्थक नहीं कर पाई ‘ब्रह्मास्त्र’, संवादों में भी नहीं दिखा दम
फिल्म की शुरूआत दिलचस्प तरीके से होती है, लेकिन जरा से आगे बढ़ते ही कई मोर्चों पर दौड़ने लगती है। इस पर प्रेम का रंग हावी होता है और बॉलीवुड का अंदाज पूरी फिल्म को ग्रस लेता है। फिल्म बहुत लंबी लगती है। वीएफएक्स हावी रहते हैं। वीएफएक्स इतने ज्यादा हैं कि एक समय पर आंखों को चुभने लगते हैं।

9 सितंबर 22।  Brahmastra : बॉलीवुड डायरेक्टर अयान मुखर्जी ने आलिया भट्ट, रणबीर कपूर, नागार्जुन, अमिताभ बच्चन और मौनी रॉय जैसे कलाकारों को लेकर एक अलग ही दुनिया रची। सुपरहीरो की यह दुनिया रचना आसान नहीं था। इसमें ग्राफिक्स का इस्तेमाल किया गया। अंत में सस्पेंस भी छोड़ दिया गया ताकि फिल्म की दूसरी और तीसरी किस्त को लाया जा सके। लेकिन बॉलीवुड तो ठहरा बॉलीवुड। इस तरह की सुपरहीरो की कहानी में भी वह रोमांस की लंबी पींगें और गानों की कतार लगाने से बाज नहीं आया। बस यहीं, दर्शकों को कहानी के साथ चलने के बजाय कहानी के बारे में सोचने का मौका मिल जाता है। वह सोचने लगता है कि फिल्म में हो क्या हो रहा है? सुपरहीरो की फिल्म बनाते समय हमारे सामने हॉलीवुड की शानदार मिसाल हैं, हम हर बार की तरह प्रेरणा तो उससे लेते हैं। लेकिन जहां जरूरत होती है, वहां चूक जाते हैं।

'ब्रह्मास्त्र' की कहानी रणबीर कपूर की है। जिसके पास कुछ ताकतें हैं। वह आलिया भट्ट से प्यार करता है। फिल्म में गुरु अमिताभ बच्चन भी हैं और दुश्मन मौनी रॉय भी है। फिल्म की कहानी अंधेरे और रोशनी के बीच की है और उस ब्रह्मास्त्र के लिए जिसे तीन हिस्सों में बांट दिया गया है और अब उसे हासिल करना कुछ अंधेरी ताकतों का ध्येय है। कुल मिलाकर अयान मुखर्जी ने अपना एक अस्त्रवर्स तैयार किया और उसकी अपनी तरीके से कल्पना भी की। लेकिन उसको (Got tired of putting the story on screen)परदे पर उतारने में गच्चा खा गए। फिल्म की शुरूआत दिलचस्प तरीके से होती है, लेकिन जरा से आगे बढ़ते ही कई मोर्चों पर दौड़ने लगती है। इस पर प्रेम का रंग हावी होता है और बॉलीवुड का अंदाज पूरी फिल्म को ग्रस लेता है। फिल्म बहुत लंबी लगती है। वीएफएक्स हावी रहते हैं। वीएफएक्स इतने ज्यादा हैं कि एक समय पर आंखों को चुभने लगते हैं।

'ब्रह्मास्त्र' में एक्टिंग की बात करें तो सब कुछ बहुत ही सामान्य है। कुछ भी सुपर जैसा नहीं है। मौनी रॉय ने कुछ हटकर किया है और बढ़िया भी है। फिल्म एक और मोर्चे पर मात खाती है, वो(Dialogue not effective) इसके डायलॉग हैं। वह बिल्कुल भी असरदार नहीं हैं।