'किसी को नहीं पता कि आखिरकार भारत-चीन मुद्दे को कौन हल करेगा'

भारत और चीन के विवाद को हल करने के लिए हमें व्यापक परिपेक्ष्य में कार्य करना होगा। हम भारतीय बहुत “रोमांटिक और आदर्शवादी संस्कृति” में प्रशिक्षित हैं, जहां युद्ध रणनीति में भी हम अर्जुन के पक्षी की आंख पर ध्यान केंद्रित करने को याद करते हैं जबकि दूसरी तरफ चीन एक बार में पांच चीजों को निशाना बनाने में यकीन रखता है। ऐसे में कुशलता, दूरदर्शिता और उच्च समझ की व्यापक जरूरत है।

'किसी को नहीं पता कि आखिरकार भारत-चीन मुद्दे को कौन हल करेगा'
विशिष्ट सेवा पदक से सम्मानित (सेवानिवृत्त) कर्नल अनिल भट्ट की पुस्तक ‘चाइना ब्लडीज बुलेटलेस बॉर्डर्स’ का विमोचन करते हुए राम माधव ने कहा कि किसी को भी इसे “विरासत का मुद्दा” नहीं बनाना चाहिए। क्योंकि किसी को नहीं पता कि आखिरकार इस मुद्दे को कौन हल करेगा।

15 जून 22। भारत-चीन मुद्दे को लेकर राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (आरएसएस) के वरिष्ठ नेता राम माधव ने कहा कि यह एक ऐसा मुद्दा है, जिस पर जल्दबाजी में कदम नहीं उठाए जा सकते हैं। उन्होंने कहा कि यह सोचना कि ‘मैं अपने जीवनकाल में भारत-चीन विवाद कर दूंगा हल’सही नहीं होगा। विशिष्ट सेवा पदक से सम्मानित (सेवानिवृत्त) कर्नल अनिल भट्ट की पुस्तक ‘चाइना ब्लडीज बुलेटलेस बॉर्डर्स’ का विमोचन करते हुए राम माधव ने कहा कि किसी को भी इसे “विरासत का मुद्दा” नहीं बनाना चाहिए। क्योंकि किसी को नहीं पता कि आखिरकार इस मुद्दे को कौन हल करेगा।
भारत-चीन सीमा मुद्दे को लेकर इस तरह का रवैया काम नहीं करेगा। उन्होंने कहा कि यह मुद्दा बड़ा है और दो सभ्यता, संस्कृति से जुड़ा है, जिससे निपटने में वक्त लगेगा और काफी समझ-बूझ की जरूरत है। लंबे समय से चल रहे इस गतिरोध का हल तलाशने में किसी भी तरह की “जल्दबाजी’चीन जैसे “सांस्कृतिक देश’से निपटने में मददगार नहीं होगी।
उन्होंने तत्काली सोवियत संघ का हवाला देते हुए कहा, “क्या आपको पता है कि तत्कालीन सोवियत संघ और चीन के बीच सीमा के सबसे बड़े विवाद को पूरी तरह से नशे में धुत रहने वाले नेता बोरिस येल्तसिन (रूस के प्रथम राष्ट्रपति) ने हल किया था। अब, किसने यह कल्पना की होगी कि येल्तसिन इस मुद्दे का आखिरकार समाधान कर लेंगे, लेकिन उन्होंने कर दिखाया और इसका श्रेय उन्हें जाता है।’
उन्होंने कहा, “हमें भारत-चीन सीमा विवाद के समाधान के लिए जल्दी नहीं करनी चाहिए।” यह जल्द और आसानी से हल होने वाला नहीं है, क्योंकि आप केवल किसी देश से नहीं निपट रहे, बल्कि आप एक सभ्यता, एक सांस्कृतिक देश से निपट रहे हैं।” चीन और उसके युद्ध हथकंड़ों के बारे में बात करते हुए संघ नेता ने कहा कि चीन को उसके कार्यों से नहीं बल्कि “उसके कार्यों के पीछे की सोच” से समझना चाहिए।
उन्होंने कहा कि भारतीय बहुत “रोमांटिक और आदर्शवादी संस्कृति” में प्रशिक्षित हैं, जहां युद्ध रणनीति में भी हम अर्जुन के पक्षी की आंख पर ध्यान केंद्रित करने को याद करते हैं जबकि दूसरी तरफ चीन एक बार में पांच चीजों को निशाना बनाने में यकीन रखता है। ऐसे में कुशलता, दूरदर्शिता और उच्च समझ की व्यापक जरूरत है।