हिंद-प्रशांत में भारत के 12 दोस्त व चीन के सिर्फ दो

जी हां, भारत समेत हिंद-प्रशांत क्षेत्र के कुल 12 देश अमेरिका की मुहिम में शामिल हो गए हैं। क्षेत्र में चीन की दादागीरी पर अंकुश लगाने के लिए अमेरिका के बढ़ते प्रभाव को काफी महत्वपूर्ण माना जा रहा है।

हिंद-प्रशांत में भारत के 12 दोस्त व चीन के सिर्फ दो
क्वाड समिट में द्विपक्षीय वार्ता के दौरान प्रधानमंत्री मोदी व अमेरिका के राष्ट्रपति जो बाइडेन।

मंगलवार।भारत के दक्षिण में समुद्री क्षेत्र से लेकर ऑस्ट्रेलिया से आगे तक का विशाल जलक्षेत्र बिजनेस और अर्थव्यवस्था के लिहाज से काफी महत्वपूर्ण है। इसे ही हिंद-प्रशांत क्षेत्र कहते हैं। दो समंदर में दबदबे के लिए चीन और अमेरिका में अब जोर आजमाइश शुरू हो गई है। हिंद महासागर क्षेत्र में भारत सबसे बड़ा प्लेयर है। ऐसे में भारत को साथ लेकर अमेरिका ने हिंद-प्रशांत में एक नई पहल की है। इसमें 12 दोस्त साथ आए हैं। कुछ ऐसे भी हैं जो इस क्षेत्र में होने के बाद भी चीन के साथ खड़े दिख रहे हैं। कह सकते हैं कि जापान में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और अमेरिकी राष्ट्रपति जो बाइडन की मौजूदगी में इस महत्वपूर्ण हिंद-प्रशांत की असली पिक्चर साफ हो गई है।
चीन की दादागीरी पर लगेगा अंकुश!
जी हां, भारत समेत हिंद-प्रशांत क्षेत्र के कुल 12 देश अमेरिका की मुहिम में शामिल हो गए हैं। क्षेत्र में चीन की दादागीरी पर अंकुश लगाने के लिए अमेरिका के बढ़ते प्रभाव को काफी महत्वपूर्ण माना जा रहा है। क्वाड समिट के लिए जापान में जुटे दुनिया के दिग्गज नेताओं ने इंडो-पैसिफिक इकोनॉमिक फ्रेमवर्क लॉन्च का सपोर्ट किया है। अमेरिका के राष्ट्रपति जो बाइडन का कहना है कि इस फ्रेमवर्क का मकसद समान विचार वाले देशों के बीच स्वच्छ ऊर्जा, आपूर्ति श्रृंखला और डिजिटल कारोबार जैसे क्षेत्रों में सहयोग को गहरा बनाना है। यह सीधे तौर पर अमेरिका की पहल है। ऐसे में ‘हिंद-प्रशांत की समृद्धि के लिए आर्थिक रूपरेखा’ को क्षेत्र में चीन की आक्रामक कारोबारी रणनीति का मुकाबला करने के अमेरिकी प्रयासों का हिस्सा माना जा रहा है। खास बात यह है कि सीधेतौर पर खुलकर 12 देश अमेरिका के साथ खड़े हुए हैं। 7 आसियान देश इस मुहिम में शामिल हुए हैं लेकिन कंबोडिया, लाओस जैसे देश इससे दूर रहे जिन्हें चीन का करीबी माना जाता है। महत्वपूर्ण यह भी है कि अमेरिका ने फिलहाल ताइवान को इस से दूर रखा है।
भारत समेत ये देश अमेरिका के साथ
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी भी तोक्यो में आईपीईएफ के शुभारंभ के अवसर पर कार्यक्रम में शामिल हुए। अमेरिकी मुहिम से जुड़ने वाले देशों में भारत, ऑस्ट्रेलिया, ब्रुनेई, इंडोनेशिया, जापान, दक्षिण कोरिया, मलेशिया, न्यूजीलैंड, फिलिपींस, सिंगापुर, थाइलैंड और वियतनाम हैं। भारत का कहना है कि आईपीईएफ के माध्यम से सदस्य देशों के बीच आर्थिक गठजोड़ मजबूत बनाने पर जोर दिया जाएगा। इसका उद्देश्य हिंद प्रशांत में आर्थिक खुशहाली, निष्पक्षता, प्रतिस्पर्धा को बढ़ावा देना है।
इंडोनेशिया अमेरिका के साथ लेकिन...
अमेरिकी मुहिम का समर्थन करते हुए भारत ने बड़ी सावधानी से आर्थिक सहयोगी और साझा उद्देश्यों को पूरा करने का मकसद जाहिर किया है। सबसे बड़े आसियान देश इंडोनेशिया ने ग्रुप में आने के बाद भी कुछ चिंता जताई है। उसने कहा है कि आईपीईएफ को समावेशी और क्षेत्र के सभी देशों के लिए खुला होना चाहिए। उसका कहना है कि हिंद-प्रशांत क्षेत्र काफी विशाल है और इस पहल का फायदा केवल कुछ देशों को नहीं मिलना चाहिए।
क्या चीन को भी शामिल करेगा अमेरिका?
अमेरिका ने साफ किया है कि यह पहल कोई फ्री ट्रेड एग्रीमेंट नहीं है और न ही सुरक्षा व्यवस्था है। हालांकि चीन ने आरोप लगाया है कि आर्थिक उद्देश्यों के लिए अमेरिका क्षेत्र के देशों को चीन या अमेरिका में से किसी एक के तरफ होने का दबाव बना रहा है। अमेरिका का कहना है कि आईपीईएफ समावेशी होगा, क्लोज्ड ग्रुप नहीं। इस ग्रुप में चीन भविष्य में कौन सी भूमिका निभा सकता है, यह पूछे जाने पर अमेरिका के जेक सुलिवान ने कहा कि अमेरिका संस्थापक सदस्यों के साथ यह तय करेगा कि वह प्रक्रिया और क्राइटीरिया क्या होगी जिसके आधार पर नए सदस्यों को शामिल किया जाए। उन्होंने कहा, 'ऐसा नहीं होगा कि आपने हाथ उठाया और आपको शामिल कर लिया जाए। हम अर्थव्यवस्थाओं की विविधता और समावेशिता चाहते हैं।'