बदलाव : मथुरा में मुस्लिम होटल मालिक ने बदला रेस्टोरेंट का नाम, स्टाफ और खाना

मथुरा के मुस्लिम होटल मालिक जमील अहमद के मुताबिक, उसका परिवार 1974 से ताजमहल के नाम से होटल संचालित कर रहा था, लेकिन अब बदले हालात में उसे चलाना मुश्किल हो रहा था। हर वक्त डर का माहौल बना रहता था। हमें अपना कारोबार चलाने के लिए अब पहचान छिपाने के अलावा कोई विकल्प नहीं दिखा।

बदलाव : मथुरा में मुस्लिम होटल मालिक ने बदला रेस्टोरेंट का नाम, स्टाफ और खाना

2 जून 22।मथुरा में मंदिर एरिया में यूपी सरकार की तरफ से नॉनवेज (मांस) और शराब की बिक्री पर प्रतिबंध लगाने के बाद एक मुस्लिम ने अपने होटल का नाम ही नहीं बदला, बल्कि मुस्लिम स्टाफ बदलकर हिंदू रख लिया। इसी के साथ खाने का पूरा मेन्यू भी चेंज कर दिया। अपने काउंटर पर भी स्टाफ को बदल दिया और गैर मुस्लिम को जिम्मेदारी दी है।

मथुरा के मुस्लिम होटल मालिक जमील अहमद के मुताबिक, उसका परिवार 1974 से ताजमहल के नाम से होटल संचालित कर रहा था, लेकिन अब बदले हालात में उसे चलाना मुश्किल हो रहा था। हर वक्त डर का माहौल बना रहता था। हमें अपना कारोबार चलाने के लिए अब पहचान छिपाने के अलावा कोई विकल्प नहीं दिखा, जबकि यह होटल हमारी फैमिली की आय का माध्यम रहा है। जमील के मुताबिक, मुझसे पहले मेरे पिता इसे चलाते थे। हालात को देखते हुए उसने दिसंबर 2021 में अपने होटल ताजमहल का नाम बदलकर 'रॉयल फैमिली रेस्टोरेंट' कर लिया। इतना ही नहीं उसने किसी भी परेशानी से बचने के लिए आठ मुस्लिम कर्मचारियों को भी हटा दिया, जबकि मुस्लिम कारीगर जायकेदार शाकाहारी खाना पकाते हैं। उनकी जगह गैर मुस्लिम कारीगर रखे हैं।

बन रहे शाकाहारी व्यंजन

जमील अहमद के मुताबिक, नॉनवेज होटल होने पर हमारा चिकन कोरमा, चिकन चंगेजी और निहारी काफी पसंद किए जाते थे। नए बदले मेन्यू में पनीर चंगेज़ी और पनीर कोरमा के अलावा अन्य शाकाहारी व्यंजन कढ़ाई पनीर, शाही पनीर और दाल तड़का आदि बनाए जा रहे हैं। जमील का कहना है कि मैंने सावधानी बरतते हुए कैश काउंटर पर बैठना बंद कर दिया, ताकि कोई ग्राहक मुस्लिम होने से परेशानी महसूस न करे। मैंने अपनी जगह गैर मुस्लिम कर्मचारी को काउंटर पर बैठाने के लिए रखा हुआ है।

'बदलने में काफी वक्त लग गया'

सालों पुराने अपने होटल की पहचान बदलने वाले जमील का कहना है कि उसे अपने होटल का नाम, मेन्यू और कर्मचारियों को बदलने में काफी वक्त लग गया। इससे काफी नुकसान भी उठाना पड़ा। मेरी आमदनी जो पहले करीब 15 हजार रुपये प्रतिदिन थी, वो अब घटकर चार हजार के करीब रह गई। अभी भी कुछ सिरफिरे लोगों को उसका काम सही से चलना पसंद नहीं है।

'अब तो मीट खाने डर लगता है'

जमील अफसोस जताते हुए कहते हैं कि मैने अपनी जिंदगी में मथुरा जैसी जगह में कटुता देखी है। यह एक शांतिपूर्ण मंदिरों का शहर था। हम सौहार्दपूर्ण ढंग से रहते थे। अब कोई घर में मांसाहारी व्यंजन खाने के बारे में सोच भी नहीं सकता है। डर रहता है कि कोई सिरफिरा बीफ खाने का आरोप लगा कुछ भी विवाद खड़ा कर सकता है। जलील का कहना है कि हमने मांस पर प्रतिबंध के खिलाफ हाई कोर्ट में याचिका दाखिल की है, लेकिन वह अभी लंबित है। इसलिए ज्यादा नुकसान उठाने से बचने और होटल को बचाने रखने के लिए नाम और सिस्टम को बदलना ही बेहतर समझा।