एक सिविल सर्वेंट, जो कभी कॉलेज नहीं गया, काम ऐसा किया इतिहास बन गया

एक सिविल सर्वेंट, जो कभी कॉलेज नहीं गया, काम ऐसा किया इतिहास बन गया
वीपी मेनन ने अलग अलग हस्तियों और उनके अहंकार के साथ वक़्त बिताया। जिससे उन्होंने शब्दों को बुनना और समझौता कैसे करते हैं वो सीखा। इस सीख के मुताबिक उन्होंने खुद को तैयार किया।

21 अगस्त 22। भारत  साल 1947 में ब्रितानी हुकूमत से आज़ाद होने वाला था। 54 वर्षीय भारतीय(Civil Servant VP Menon) सिविल सर्वेंट वीपी मेनन पूरी तरह थक चुके थे।

वे पिछले तीस सालों से ब्रितानी ब्यूरोक्रेसी में काम कर रहे थे।

उनकी जीवनी लिखने वालीं नारायणी बासु लिखती हैं कि वह काफ़ी थके हुए, बीमार और काम के बोझ तले दबे हुए थे।

उन्होंने अलग-अलग वायसरायों के लिए एक अहम अधिकारी के रूप में राजनीतिक और संवैधानिक सुधारों पर काम किया था। इसके साथ ही उन्होंने सत्ता हस्तांतरण की योजना को भी ड्राफ़्ट किया था।

मेनन 15 अगस्त को भारत के आज़ाद होने के साथ ख़त्म होने वाले सत्ता हस्तांतरण समारोह के बाद रिटायरमेंट लेने की सोच रहे थे। वीपी मेनन रूढ़िवादी विचारों के व्यक्ति थे। वह कांग्रेस पार्टी के नेता और स्वतंत्रता संग्राम के नायक सरदार वल्लभभाई पटेल के सहयोगी भी थे।

लेकिन रिटायरमेंट की जगह उन्हें सरदार वल्लभभाई पटेल की ओर से बुलावा आ गया।

सरदार पटेल को हाल ही में बने गृह मंत्रालय का कार्यभार दिया गया था ताकि रियासतों के विलय का मुश्किल काम किया जा सके। इस काम के लिए सरदार पटेल, वीपी मेनन को अपने सचिव के रूप में चाहते थे।

इतिहासकार रामचंद्र गुहा के मुताबिक, वीपी मेनन (Civil Servant VP Menon)ये काम करने के खास इच्छुक नहीं थे।

-सैकड़ों रियासतों को जोड़ने का काम

इन 565 रियासतों के पास हिंदुस्तान की एक तिहाई ज़मीन थी और इनमें भारत की चालीस फ़ीसद जनसंख्या रहती थी। इनमें से कई राजघरानों के पास अपनी सेनाएं, रेल सेवाएं, करेंसी और स्टैंप थे।

इनमें से ज़्यादातर राजा अयोग्य और बेफ़िजूल पैसा खर्च करने वाले थे। एक आकलन के मुताबिक़, हैदराबाद के निज़ाम का ख़र्च और कमाई बेल्जियम से भी ज़्य़ादा थी। यही नहीं, उनकी कमाई और ख़र्च संयुक्त राष्ट्र के 20 संस्थापक सदस्य देशों से भी ज़्यादा थी।

मेनन को एक ख़ास काम दिया गया था।

उन्हें इन सैकड़ों रियासतों के शासकों को समझा-बुझाकर भारत के साथ विलय के लिए तैयार करना था। ये सब ऐसे माहौल में किया जाना था जिसमें अविश्वास और हिंसा अपने चरम पर थी। पूरे उपमहाद्वीप में हिंदू और मुसलमानों के बीच सांप्रदायिक तनाव जारी था।

कांग्रेस नेता और बाद में भारत के पहले प्रधानमंत्री बनने वाले जवाहरलाल नेहरू ने प्रशासनिक काम के लिहाज़ से इसे काफ़ी चुनौतीपूर्ण काम बताया था।

अंतिम वायसराय लॉर्ड माउंटबेटन और फिर पटेल के साथ काम करने वाले मेनन ने विलय पत्र पर काम किया, जिसके तहत इन रियासतों ने रक्षा, विदेश मामलों और संचार से जुड़े मामले सरकार के हवाले कर दिए।

दो सालों तक मेनन और पटेल लगातार राजघरानों को मनाने के काम में जुटे रहे।

इस प्रक्रिया में उन्हें कई बार रियासतों के चक्कर काटने पड़े। इन रियासतों के शासकों के सामने एक बड़ा सवाल था कि आज़ाद भारत में उनका भविष्य क्या होगा? ये सवाल मेनन से भी बार बार पूछा गया।

हैदराबाद, कश्मीर और जूनागढ़ ने इस मुद्दे पर सहयोग करने से मना कर दिया था। वहीं त्रावणकोर ने भारत और पाकिस्तान में से किसी में भी शामिल होने से इनकार कर दिया था।

-रियासतों को कैसे मनाया

इसके साथ ही कुछ राजाओं ने भारत से अलग अपना संघ बनाने पर विचार किया। उड़ीसा और छत्तीसगढ़ के शासकों ने पूर्वी राज्यों का संघ बनाने पर बातचीत भी की।

वीपी मेनन - द अनसंग आर्किटेक्ट ऑफ़ मॉडर्न इंडिया में नारायणी बासु लिखती हैं, "अलग होने से जुड़ी कोशिशें गहरा रही थीं और ऐसे चुनौतीपूर्ण माहौल में वीपी मेनन ने रियासतों को भारत में मिलाने का काम किया।"

वल्लभभाई पटेल के दूत के रूप में वीपी मेनन (Civil Servant VP Menon)ने रियासतों को मनाने के लिए आर्थिक प्रलोभनों के साथ-साथ सख़्त रुख़ का सहारा लिया। इन रियासतों को पहले प्रिवी पर्स या मुआवजे़ के रूप में पेंशन देने की पेशकश की गयी। उन्हें उनके महल एवं टाइटल रखने दिए गए, लेकिन जब स्थितियां ज़्यादा बिगड़ गईं तो सख़्ती के साथ पेश आया गया।

हैदराबाद के निज़ाम, भारत और पाकिस्तान दोनों से अलग रहना चाहते थे। ऐसे में विद्रोहियों को शांत करने के लिए सितंबर में भारतीय सेना को हैदराबाद भेजा गया। भारतीय सेना ने जूनागढ़ पर भी हमला किया, जिसके मुस्लिम शासक ने पाकिस्तान के साथ जाने का फ़ैसला किया था।

इसके बाद एक जनमत संग्रह कराया गया जिसमें स्थानीय लोगों ने भारी मतों के साथ भारत के साथ विलय पर सहमति जताई। मेनन जब कश्मीर ये बताने के लिए गए कि पाकिस्तान से आए कबायली लड़ाकों ने रियासत पर हमला कर दिया है उस वक्त महाराजा हरि सिंह सो रहे थे। हमले की बात सुनकर कश्मीर के महाराजा ने भारत के साथ कश्मीर को विलय करने के लिए तैयार हो गए और विलय पत्र पर हस्ताक्षर किए।

 दो साल के भीतर 500 देसी रियासतों को मिलाकर 14 नए राज्य बना दिए गए जो कि एक बड़ी कामयाबी थी। बासु कहती हैं, ''रजवाड़ों के प्रति पटेल की खुली अवमानना पर दरअसल वीपी के व्यक्तित्व में बसी चतुराई, अक्खड़पन और बेरहमी का असर देखा जा सकता है।''

-भारत के एकीकरण से पहले मेनन

वीपी मेनन भारत के एकीकरण का काम शुरू होने से पहले ही एक अहम अधिकारी बन चुके थे। उन्होंने बेहद कम समय में अपने टाइप राइटर पर 1947 में भारत और पाकिस्तान की सरकार को सत्ता सौंपने की योजना का प्रस्ताव तैयार किया था।

इसी के आधार पर हुए समझौते के तहत तीन महीने बाद ब्रिटेन ने भारत छोड़ा।

बासु बताती हैं, "उन्होंने ये काम मात्र चार घंटों में किया जिसने दक्षिण एशिया और इतिहास को बदल दिया। ये एक उल्लेखनीय उपलब्धि थी।"

मेनन ने अपने जीवन में जो कुछ हासिल किया, उसके बारे में उन्होंने सपने में भी नहीं सोचा होगा।

ज़िंदगी में कभी भी कॉलेज नहीं जाने वाले वीपी मेनन ने ज़िंदगी की शुरुआत एक सोने की खान से की। इसके बाद वह धीरे धीरे सिविल सर्वेंट जैसे उच्च पद पर पहुंच गए।

ब्यूरोक्रेट के रूप में उनके 37 साल लंबे करियर में भारत ने गुलामी से आज़ादी हासिल करने का कठिन सफर तय किया।

वह सिविल सर्वेंट्स वाले विशेष काडर से नहीं आते थे। उन्होंने ब्रितानी ब्यूरोक्रेसी में एक टाइपिस्ट, स्टेनोग्राफ़र और क्लर्क के रूप में काम करना शुरू किया था। सालों तक सरकारी दफ़्तरों के बड़े और धुएं भरे कमरों में अधिकारियों के आदेशों को लिखने और नेताओं के बीच गंभीर बातचीत सुनने से मेनन ने काफ़ी कुछ सीखा। मेनन ने ब्रितानी विदेश मंत्री एडविन मोंटेगू को श्रेय देते हुए बताया था कि उन्होंने उनसे पत्र लेखन और फाइल आगे बढ़ाने से आगे बढ़कर कुछ करने के लिए कहा था।

इसके बाद आने वाले सालों में मेनन को अलग-अलग तरह के काम दिए गए। एक बार उन्हें उत्तर भारत की एक रियासत के राजा को लंदन से दो नाइट क्लब होस्टेस को दिल्ली बुलवाने से रोकना पड़ा। क्योंकि इस मामले में भारत में काफ़ी हंगामा मच गया था।

 उन्होंने एक वरिष्ठ मंत्री को टेलीग्राम भेजकर लंदन से एक भारतीय राजा की बहुमूल्य कलाकृति को लाने को कहा। वह हैदराबाद के निज़ाम के परिवार की ओर से उनके गहनों से जुड़े मामलों में भारत सरकार की ओर से भी पेश हुए।

लेकिन इसके बाद भी नारायणी बासु जैसी इतिहासकार मानती हैं कि उन्हें बहुत जल्दी भुला दिया गया और पटेल की मौत के बाद उन्हें नेहरू की ओर से अनदेखा कर दिया गया।

बासु लिखती हैं, "उन्हें भारतीय राजनीतिक चर्चा-परिचर्चा से गायब कर दिया गया।"

75 साल की उम्र में दो शादियों से हुए तीन बच्चों को पीछे छोड़कर जाने वाले वीपी मेनन की अंत्येष्टि भी छोटी और निजी स्तर पर हुई, वैसी ही जैसे वे अपनी ज़िंदगी में रहे।

मेनन एक ब्यूरोक्रेट होने के साथ-साथ संकटमोचक और भारत के एकीकरण का ड्राफ़्ट लिखने वाले अधिकारी के साथ-साथ बहुत कुछ थे।

बासु कहती हैं, "उन्होंने अलग अलग हस्तियों और उनके अहंकार के साथ वक़्त बिताया। जिससे उन्होंने शब्दों को बुनना और समझौता कैसे करते हैं वो सीखा। इस सीख के मुताबिक उन्होंने खुद को तैयार किया।"

मेनन होते तो कहते, "अगर आप सबसे नीचे से शुरू करते हैं तभी आप सीख सकते हैं।"