कोरोना के गंभीर मरीजों की जान बचाने वाले इंजेक्शन की कालाबाजारी नहीं रोक पा रहा प्रशासन

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कोरोना के गंभीर मरीजों की जान बचाने वाले इंजेक्शन की कालाबाजारी नहीं रोक पा रहा प्रशासन

ग्वालियर में कोरोना के गंभीर मरीजों की जान बचाने के लिए जिन जीवनरक्षक दवाओं और इंजेक्शन की जरूरत पड़ रही है, उनकी कालाबाजारी लगातार जारी है। जिला प्रशासन और स्वास्थ्य विभाग इस कालाबाजारी पर कोई रोक नहीं लगा पा रहा है। पहले फेबीफ्लू, फिर रेमडेसेवियर और अब टॉकीजोलामाइड जैसे इंजेक्शन गंभीर मरीजों के परिजनों को मूल कीमत से दोगुनी कीमत चुकाकर खरीदना पड़ रहा है।

वेंटीलेटर पर पहुंच चुके मरीज को दिया जाता है टॉकीजोलामाइड
वेंटीलेटर पर गंभीर हालत में पहुंच चुके मरीज को जान बचाने के लिए टॉकीजोलामाइड इंजेक्शन देते हैं। यह इंजेक्शन जान बचाने के लिए आखिरी विकल्प के तौर पर इस्तेमाल होता है। यह तभी इस्तेमाल होता है, जब रेमडेसेवियर और प्लाज्मा थैरेपी भी काम नहीं कर पाती है।

42 हजार का इंजेक्शन 60 हजार में मिल पाता है
सिर्फ दो फार्मा कंपनियां ही इस इंजेक्शन को बनाकर ग्वालियर में वितरित कर रही हैं। ये हैं सिप्ला और रोस। सिप्ला की कीमत 42 हजार रुपए है, तो रोस कंपनी के इंजेक्शन की कीमत 48 हजार रुपए, लेकिन ये दोनों ही इंजेक्शन मरीजों के परिजनों को 60 से 70 हजार रुपए में खरीदना पड़ता है।

दवाओं की ब्लैक मार्केटिंग पर करेंगे कार्रवाई
ग्वालियर के सीएमएचओ डॉ. मनीष शर्मा ने द लीड स्टोरी से बात करते हुए माना कि कोरोना के इलाज में जरूरी जीवन रक्षक दवाओं की ब्लैक मार्केटिंग हो रही है। इसलिए वे जल्द ही दवाओं और इंजेक्शन की ब्लैक मार्केटिंग पर कार्रवाई कराएंगे।