गूगल के खिलाफ अमेरिका में केस, भारत में भी होगा इसका प्रभाव

टेक कंपनियों के एकाधिकार को चुनौती देने की तैयारी में जापान व ऑस्ट्रेलिया  गूगल ने कहा- जबरदस्ती नहीं की, लोग अपनी मर्जी से सर्च करते हैं

गूगल के खिलाफ अमेरिका में केस, भारत में भी होगा इसका प्रभाव

अमेरिका में जस्टिस डिपार्टमेंट और 11 राज्यों ने सबसे ज्यादा इस्तेमाल होने वाले सर्च इंजन गूगल पर केस दर्ज किया है। उस पर आरोप है कि प्रतिस्पर्धा खत्म करने और अपना एकाधिकार जमाने के लिए उसने अवैध तरीके से ऐपल और स्मार्टफोन बनाने वाली कंपनियों से एक्सक्लूसिव डील्स की। दो दशक में यह किसी टेक्नोलॉजी फर्म के खिलाफ सबसे बड़ा मुकदमा है। इससे पहले 1998 में इसी तरह का मुकदमा माइक्रोसॉफ्ट के खिलाफ भी दर्ज हुआ था। गूगल पर यह आरोप पहले भी लगते रहे हैं। अब खबरें यह भी आ रही हैं कि ऑस्ट्रेलिया और जापान भी यूरोप और अमेरिका के साथ बड़ी टेक कंपनियों के एकाधिकार को चुनौती देने की तैयारी में है। यह जानकारी एक वेब पोर्टल में रिलीज खबर से मिली है.

64 पेज की शिकायत में आरोप लगाया
अमेरिका में जस्टिस डिपार्टमेंट और 11 अलग-अलग राज्यों ने ळववहसम के खिलाफ यह एंटीट्रस्ट केस किया है। 64 पेज की शिकायत में आरोप लगाया गया है कि ळववहसम ने सर्च इंजिन बिजनेस में 90ः से ज्यादा मार्केट हिस्सेदारी हासिल करने के लिए एक्सक्लूसिव डील्स की। इससे इन डिवाइस पर यूजर्स के लिए ळववहसम डिफॉल्ट सर्च इंजिन बन गया। ळववहसम ने मोबाइल बनाने वाली कंपनियों, कैरियर्स और ब्राउजर्स को अपनी विज्ञापनों से होने वाली कमाई से अरबों डॉलर का पेमेंट किया, ताकि गूगल उनके डिवाइस पर प्री-सेट सर्च इंजिन बन सके। इससे गूगल ने लाखों डिवाइस पर टॉप पोजिशन हासिल की और अन्य सर्च इंजन के लिए खुद को स्थापित करने के मौके से वंचित रखा।

जस्टिस डिपार्टमेंट ने एक साल की जांच के बाद दर्ज किया केस
आरोप यह भी है कि ऐपल और ळववहसम ने एक-दूसरे का सहारा लिया और अपने प्रतिस्पर्धियों को मुकाबले से बाहर कर दिया। अमेरिका में गूगल के सर्च ट्रैफिक में करीब आधा ऐपल के आईफोन्स से आया। ऐपल के प्रॉफिट का पांचवां हिस्सा गूगल से आया। गूगल ने इनोवेशन को रोक दिया। यूजर्स के लिए चॉइस खत्म की और प्राइवेसी डेटा जैसी सर्विस क्वालिटी को प्रभावित किया। गूगल ने अपनी पोजिशन का लाभ उठाया और अन्य कंपनियों या स्टार्टअप्स को इनोवेशन करने का मौका ही नहीं दिया। जस्टिस डिपार्टमेंट ने करीब एक साल की जांच के बाद यह मुकदमा दर्ज किया है।

गूगल ने कहा- यह केस बेबुनियाद है
गूगल के चीफ लीगल ऑफिसर केंट वॉकर का कहना है कि यह मुकदमा बेबुनियाद है। लोग ळववहसम का इस्तेमाल करते हैं और यह उनका फैसला है। गूगल ने किसी के साथ अपनी सर्विसेस का इस्तेमाल करने के लिए जबरदस्ती नहीं की है। यदि उन्हें चाहिए तो ऑप्शन मौजूद है।
उनका कहना है कि एंटीट्रस्ट कानून के बहाने ऐसी कंपनियों का पक्ष लिया जा रहा है, जो मार्केट में कॉम्पीटिशन नहीं कर पा रही हैं। गूगल ऐपल और अन्य स्मार्टफोन कंपनियों को पेमेंट करता है ताकि उसे ज्यादा से ज्यादा लोगों तक पहुंचने के लिए शेल्फ स्पेस मिल सके। इसमें कुछ भी गलत नहीं है। वॉकर ने यह भी कहा कि अमेरिकी एंटी ट्रस्ट लॉ का डिजाइन ऐसा नहीं है कि किसी कमजोर प्रतिस्पर्धी को मजबूती प्रदान करें। यहां सबके लिए बराबर मौके हैं। यह मुकदमा कोर्ट में ज्यादा टिकने वाला नहीं है। गूगल जो भी सर्विस यूजर्स को देता है, वह मुफ्त है। इससे किसी और को नुकसान होने का सवाल ही नहीं उठता।

अमेरिकी सरकार ने चुनाव पर असर के डर से उठाया यह कदम!
यह मुकदमा दर्ज करने की टाइमिंग से लेकर इस मुकदमे में शामिल राज्यों को लेकर कई प्रश्न उठ रहे हैं। अमेरिका में राष्ट्रपति चुनाव से ठीक दो हफ्ते पहले यह मुकदमा दाखिल किया गया है। आम तौर पर किसी भी कदम का चुनावों पर असर पड़ने का डर होता है, इस वजह से कोई बड़ा कदम सरकार नहीं उठाती। महत्वपूर्ण बात यह है कि जिन 11 राज्यों ने जस्टिस डिपार्टमेंट का साथ दिया है, वहां सभी अटॉर्नी जनरल रिपब्लिकन हैं। हकीकत तो यह है कि अमेरिका के सभी 50 राज्यों ने गूगल के खिलाफ एक साल पहले जांच शुरू की थी, लेकिन सिर्फ रिपब्लिकन राज्यों ने मुकदमा दर्ज किया है। कुछ राज्यों में तो जांच भी पूरी नहीं हुई है।

भारत में एकाधिकार को खत्म करने का काम करता है सीसीआई
भारत में कॉम्पीटिशन कमीशन ऑफ इंडिया (सीसीआई) का काम बाजार में किसी कंपनी के एकाधिकार को खत्म करना है। वह हेल्दी कम्पीटिशन को प्रमोट करता है। अमेरिका में जो मुकदमा दाखिल हुआ है, उसी तरह की शिकायत की जांच सीसीआई पहले ही कर रहा है।
पिछले महीने गूगल बनाम पेटीएम के मुद्दे पर भी ऐसी ही स्थिति बनी थी, जब गूगल ने अपनी पोजिशन का फायदा उठाते हुए पेटीएम के ऐप को प्ले स्टोर से हटा दिया था। तब भी पेटीएम ने यही आरोप लगाए थे कि ळववहसम अपने और दूसरे ऐप्स के बीच भेदभाव करता है। न्यूज एजेंसी रॉयटर्स ने कुछ दिन पहले खबर दी थी कि कॉम्पीटिशन कमीशन ऑफ इंडिया स्मार्ट टीवी मार्केट में गूगल की दादागिरी की जांच कर रहा है। मामला स्मार्ट टीवी में इंस्टॉल होने वाले एंड्रॉयड ऑपरेटिंग सिस्टम के सप्लाई से जुड़ा है, जो भारत में बिक रहे ज्यादातर स्मार्ट टीवी में पहले से इंस्टॉल मिलता है।

डेटा की खरीद-फरोख्त पर अंकुश लगाना जरूरी: साइबर विशेषज्ञ
भारत के साइबर कानून विशेषज्ञ कहते हैं कि यदि अमेरिका में गूगल के कॉर्पोरेट वर्चस्व को खत्म करने की कार्रवाई हुई तो इसका असर भारत में भी पड़ेगा। अमेरिका के मुकाबले भारत में गूगल जैसी कंपनियों ने अपना अराजक वर्चस्व स्थापित किया है। वहीं वकीलों का कहना है कि भारत में नए कानून बनाने और पुराने कानूनों में बदलाव जरूरी है। भारत ने हाल में चीन और पाकिस्तान से एफडीआई को लेकर कई प्रतिबंधात्मक नियम बनाए हैं। इसी तर्ज पर टेक कंपनियों के लिए भी कंपनी कानून, आईटी कानून और आयकर कानून के नियमों को बदलना जरूरी है। इन कंपनियों की ओर से बड़े पैमाने पर डेटा की खरीद-फरोख्त होती है। इस पर अंकुश लगाना जरूरी है, ताकि सरकारी राजस्व बढ़ाया जा सके। भारत में इन कंपनियों के एकाधिकार को चुनौती देने के लिए सीसीआई की व्यवस्था को दुरुस्त करने की जरूरत है।