क्यों धंस रहा है उत्तराखंड का खूबसूरत शहर जोशीमठ, जानें विशेषज्ञों की राय
जोशीमठ में रहने वाले लोग कई महीनों से घरों की दीवारों में दरारें पड़ने की शिकायत कर रहे हैं। अब वैज्ञानिकों की एक सरकारी समिति ने अध्ययन के बाद कहा है कि शहर के कई हिस्से धीरे धीरे जमीन में धंसते चले जा रहे हैं।
21 सितंबर 22। उत्तराखंड (Uttarakhand)के चमोली जिले के जोशीमठ शहर(Joshimath city) का नाम पिछली बार फरवरी 2021 में सुर्खियों में आया था जब ऋषिगंगा और धौलीगंगा नदियों में अचानक बाढ़ आ गई थी और इस शहर के आस पास बसे कई गांव तबाह हो गए थे।
बीते कुछ महीनों में इस इलाके में रहने वाले कई लोगों ने प्रशासन को बताया कि सड़कों और उनके घरों की दीवारों पर दरारें आ गई हैं। जब शिकायतें बढ़ीं तो राज्य सरकार ने अध्ययन करने के लिए एक समिति नियुक्त की। विशेषज्ञों की इस समिति ने अब अपनी रिपोर्ट बना ली है और माना जा रहा है कि रिपोर्ट में चिंताजनक नतीजों के बारे में बताया गया है।
सरकार ने यह रिपोर्ट अभी सार्वजनिक नहीं है, लेकिन कई मीडिया रिपोर्टों में बताया गया है कि इसमें कहा गया है कि जोशीमठ में सिर्फ दीवारों में दरारें ही नहीं आ गई हैं बल्कि करीब 17,000 लोगों की आबादी वाले (Many parts of this city are slowly sinking into the ground)इस शहर के कई हिस्से धीरे धीरे जमीन में धंसते जा रहे हैं।
इस पूरे इलाके की पारिस्थितिकी बेहद संवेदनशील है और अब ऐसा लगता है कि इस पर बढ़ते हुए बोझ के आगे यह जवाब देने लगी है। एक रिपोर्ट के मुताबिक विशेषज्ञों की समिति ने कहा है कि भारी बारिश, भूकंप, अनियंत्रित निर्माण और क्षमता से ज्यादा पर्यटकों की आबादी की वजह से जोशीमठ की नींव खिसक सकती है।
समिति ने पाया कि दरारें सिर्फ घरों की दीवारों और जमीन पर नहीं आई हैं बल्कि छतों और आंगनों से होते हुए घरों के बाहर तक फैली हैं। इतना ही नहीं इनसे छतों के नीचे लगाई जाने वाली बीमें भी अपनी जगह से हिल गईं हैं और मकान एक तरफ झुक गए हैं।
समिति ने इन हालात के लिए जोशीमठ-औली सड़क पर अनगिनत घर, रिसॉर्ट और छोटे होटलों के निर्माण को जिम्मेदार ठहराया, जिन्हें शहर के क्षमता को नजरअंदाज करते हुए बनाया गया।
इसके अलावा समिति ने यह भी कहा है कि जोशीमठ-औली सड़क से और ऊपर पहाड़ों में कई बड़ी चट्टानों के नीचे गड्ढे हो गए हैं, जिसका मतलब है कि ये चट्टानें कभी भी गिर सकती हैं और नीचे के इलाकों में भारी नुकसान कर सकती हैं।
एक्टिविस्ट मल्लिका भनोट कहती हैं कि जोशीमठ धंस रहा है और यहां भारी निर्माण गतिविधियां पूरी तरह से प्रतिबंधित कर देनी चाहिए यह तो 1976 में ही मिश्रा आयोग ने अपनी रिपोर्ट में कह दिया था, लेकिन इन बातों को कभी माना नहीं गया।