BJP में बड़े बदलाव की कुछ अहम बातें - CM योगी आदित्यनाथ की हुई अनदेखी

उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री के रूप में अपने दूसरे कार्यकाल में योगी आदित्यनाथ निस्संदेह ही भगवा हेवीवेट हैं। दो सालों के अंदर ही राज्य की 80 लोकसभा सीटों में से जितनी भी सीटें भाजपा जीतेगी उसमें योगी आदित्यनाथ की अहम भूमिका होगी। फिर भी भाजपा के अपने शीर्ष निकाय के अंदर हुए इतने बड़े बदलाव के बावजूद उन्हें संसदीय बोर्ड में जगह नहीं मिल सकी।

BJP में बड़े बदलाव की कुछ अहम बातें - CM योगी आदित्यनाथ की हुई अनदेखी
संसदीय बोर्ड के पुनर्गठन से वास्तव में एक अघोषित और कुछ हद तक अनावश्यक संदेश निकल कर आता है। और ये संदेश है कि मोदी ही तय करते हैं कि क्या होना चाहिए। और दूसरों को बस उस हुक्म को पालन करना होता है।

18 अगस्त 22।  उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री के रूप में अपने दूसरे कार्यकाल में योगी आदित्यनाथ (Yogi Adityanath ignored)निस्संदेह ही भगवा हेवीवेट हैं।  दो सालों के अंदर ही राज्य की 80 लोकसभा सीटों में से जितनी भी सीटें भाजपा जीतेगी उसमें योगी आदित्यनाथ की अहम भूमिका होगी। फिर भी भाजपा के अपने शीर्ष निकाय के अंदर हुए इतने बड़े बदलाव के बावजूद उन्हें संसदीय बोर्ड में जगह नहीं मिल सकी। योगी के अलावा जिन अन्य लोगों को सार्वजनिक रूप से फटकार लगाई गई है उनमें मध्य प्रदेश के मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान और आरएसएस के पसंदीदा नितिन गडकरी शामिल हैं। नितिन गडकरी फिलहाल केंद्रीय मंत्री हैं।

भाजपा ने कर्नाटक के दिग्गज बीएस येदियुरप्पा यानि "बीएसवाई" को इस हकीकत को स्वीकार करते हुए संसदीय बोर्ड में शामिल किया है कि अगले साल के अंत तक कर्नाटक में चुनाव होना है। बीएसवाई पर पूरी तरह आश्रित रहने वाले बसवराज एस बोम्मई के नेतृत्व वाली कर्नाटक सरकार भाजपा के मुताबिक उतनी मजबूत नहीं है। बहरहाल, पार्टी की यह रणनीतिक जरूरत है कि वो येदियुरप्पा के सहयोग से राज्य में पार्टी को स्थिर रखें और सार्वजनिक जगहों पर दिख रहे अंदरूनी झगड़ों से भी निपट सके।

संसदीय बोर्ड में एक और नाम है-- सर्बानंद सोनोवाल। इन्होंने पिछले साल मई में हिमंत बिस्वा सरमा के लिए मुख्यमंत्री पद से इस्तीफा दिया था। शायद यह उस त्याग के लिए एक मुआवजा है।

संसदीय बोर्ड और केंद्रीय चुनाव समिति के पुनर्गठन को करीब दो साल के लिए टाल दिया गया था। भाजपा के वाजपेयी युग के एकमात्र जीवित व्यक्ति जिन्हें नए संसदीय बोर्ड में अभी भी रखा गया है, वे रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह हैं।

63 वर्षीय शिवराज सिंह चौहान के लिए दीवारों पर लिखी इबारत साफ है। कभी शिवराज सिंह चौहान को प्रधानमंत्री पद के लिए सुषमा स्वराज और लालकृष्ण आडवाणी ने समर्थन दिया था और आज तक शिवराज उस अतीत से स्वयं को अलग नहीं कर पाए हैं। "यह पारी उनके लिए एक तरह से बोनस ही है क्योंकि (ज्योतिरादित्य) सिंधिया हमारे साथ शामिल हो गए और कमलनाथ सरकार को गिरा दिया। शिवराज सिंह चौहान अपने परिवार को राजनीति में बढ़ावा देना चाहते थे, और यह मोदी को मंजूर नहीं है। उनके लिए या तो राज्यपाल का पद या 'मार्गदर्शक मंडल' होगा जो कि एक निष्क्रिय सलाहकार समिति है।" इस कॉलम के लिए बात करते हुए एक भाजपा नेता ने कहा।

नितिन गडकरी का हटाया जाना भाजपा के अंदरूनी सूत्रों या किसी भी राजनीतिक पर्यवेक्षक के लिए कोई आश्चर्य की बात नहीं है। फिलहाल तो यही लग रहा है कि उन्हें बता दिया गया है कि अब उनका समय पूरा हो गया है। सूत्रों का कहना है कि वो हमेशा ही अपने "नागपुर कनेक्शन" का दिखावा करते थे, हरेक हफ्ते आरएसएस मुख्यालय जाते थे जो केंद्रीय नेतृत्व को अच्छा नहीं लगता था। केंद्रीय नेतृत्व मतलब नरेन्द्र मोदी। मोदी अब संघ में सभी अहम फैसले ले रहे हैं और आरएसएस नितिन गडकरी को सत्ता समीकरणों से बाहर निकलते सिर्फ देख ही सकता है। नागपुर के अन्य पसंदीदा, देवेंद्र फडणवीस, को अपमान का घूंट पीने के लिए महाराष्ट्र सरकार का उपमुख्यमंत्री बना सार्वजनिक रूप से उनकी सराहना की गई। गौरतलब है कि उद्धव ठाकरे की सरकार गिराकर राज्य में भाजपा-शिवसेना की सरकार बनाने में उनका अहम रोल रहा था। फडणवीस का इनाम - केंद्रीय चुनाव समिति में उन्हें शामिल किया गया है।

लेकिन योगी आदित्यनाथ(Yogi Adityanath ignored) की जिस तरह अनदेखी की गई है वो निश्चित ही बीजेपी के आज के बदलाव की “बोल्ड फेस हेडलाइन” है। हिंदुत्व के प्रतीक के रूप में उनका बढ़ता कद पीएम मोदी और अमित शाह को रास नहीं आ रहा है। यह एक सच्चाई है कि शिवराज सिंह चौहान और बसवराज एस बोम्मई सहित अन्य मुख्यमंत्रियों ने योगी आदित्यनाथ का अनुकरण करने की कोशिश की है या उन्हें एक शासन के “शुभंकर” के रूप में उद्धृत किया है। निश्चित तौर पर इन तारीफों की वजह से योगी आदित्यनाथ को अपने शीर्ष बॉस से कोई ब्राउनी पॉइंट ( अतिरिक्त नम्बर) नहीं मिलने वाला है।  उनके अनुसार, पार्टी के स्टार और मुख्य प्रचारक के रूप में पीएम मोदी को ही बना रहना चाहिए। इतना ही नहीं, योगी आदित्यनाथ को मोदी की विरासत के "स्वाभाविक उत्तराधिकारी" के रूप में पदोन्नत किया जाना भी उतना स्वागत योग्य नहीं है।

इनमें से अधिकांश को काफी सावधानी से संभालना होगा क्योंकि योगी आदित्यनाथ ने अपनी अपार लोकप्रियता साबित कर दी है। गंगा में तैरते शवों की न भुला सकने वाली तस्वीरों और  डेल्टा लहर के कुप्रबंधन के बावजूद उन्होंने शानदार तरीके से चुनाव जीता। इतना ही नहीं, योगी आदित्यनाथ ऐसे नेता हैं जिन पर लगाम लगाना मुश्किल है और उन्हें काफी सावधानी से संभालना होगा।

पांच दिन पहले भाजपा के एक वरिष्ठ अधिकारी सुनील बंसल को उत्तर प्रदेश से स्थानांतरित कर दिया गया था। उत्तरप्रदेश में अमित शाह के सबसे भरोसेमंद सहयोगी के रूप में बंसल सात साल से वहां तैनात थे। राजस्थान के एक आरएसएस प्रचारक (पूर्णकालिक) सुनील बंसल, आरएसएस के एक शक्तिशाली संगठनात्मक सचिव रहे हैं। लेकिन योगी आदित्यनाथ का उनके साथ अच्छे संबंध नहीं थे। भाजपा के वरिष्ठ सूत्रों ने मुझे बताया, "बंसल-जी योगी सरकार की परछाईं हैं। खुशी और गुस्सा दोनों को दिल्ली के कान में रखते थे। भाजपा के सभी विधायक उनके पास जाते थे।”

योगी आदित्यनाथ (Yogi Adityanath ignored)खुश थे जब सुनील बंसल लखनऊ से बाहर चले गए और उन्हें पश्चिम बंगाल और तेलंगाना का प्रभारी महासचिव बनाया गया। इन दोनों राज्यों में भाजपा सत्ता संभालने की इच्छुक है। सूत्रों का कहना है कि अब योगी आदित्यनाथ को एहसास होगा कि उनकी जीत बहुत छोटी अवधि की थी और मोदी ही सभी महत्वपूर्ण निर्णय लेते थे।

संसदीय बोर्ड के पुनर्गठन से वास्तव में एक अघोषित और कुछ हद तक अनावश्यक संदेश निकल कर आता है। और ये संदेश है कि मोदी ही तय करते हैं कि क्या होना चाहिए। और दूसरों को बस उस हुक्म को पालन करना होता है।