36 जिला अस्पतालों में रक्त अवयव अलग करने की लगेंगी मशीन

36 जिला अस्पतालों में रक्त अवयव अलग करने की लगेंगी मशीन
36 जिला अस्पतालों में रक्त अवयव अलग करने की लगेंगी मशीन
भोपाल (राज्य ब्यूरो)। आने वाले समय में प्रदेश में रक्त की कमी दूर करने में बड़ी मदद मिल जाएगी। प्रदेश के 36 जिला अस्पतालों में रक्त अवयव अलग करने के लिए मशीनें लगाई जा रही हैं। तीन वर्ष से चल रहे प्रयास के बाद कंपनी का चयन हो गया है। इसका लाभ यह होगा कि रोगी को रक्त के जिस अवयव की आवश्यकता है, वही चढ़ाया जाएगा।
 
इसके अलावा "क्लिया" मशीन लगाई जाएंगी। इसमें सभी जांचें स्वचलित होंगी, जिससे जांचों में मानवीय त्रुटि का डर नहीं रहेगा। बता दें कि रक्तदान के दौरान मिले रक्त की हेपेटाइटिस बी, हेपेटाइटिस सी, यौन संक्रामक रोग का पता लगाने के लिए वीडीआरएल, एचआइवी और मलेरिया की जांच की जाती है। ठीक से जांच नहीं होने पर संक्रमित रक्त मरीज को चढ़ने का खतरा रहता है।
 
इसी तरह से रक्त की क्रास मैचिंग भी स्वचलित मशीन से की जाएगी। अभी यह काम लैब टेक्नीशियन करते हैं, जिसमें एक से डेढ़ घंटे का समय लग जाता है। गलती होने की आंशका भी रहती है। स्वास्थ्य विभाग के अधिकारियों ने बताया कि कंपनी को कार्य शुरू करने के लिए कार्य आदेश जारी किया जा रहा है। इसके बाद से लगभग तीन माह नई व्यवस्था शुरू करने में लगेंगे। यानी जुलाई-अगस्त से यह सुविधाएं शुरू हो सकती हैं। शुरू में उन ब्लड बैंकों को लिया गया है जहां रक्त का संग्रहण ज्यादा होता है।
 
यहां पहले से मौजूद है सुविधा
 
सागर, शहडोल, उज्जैन, सतना , छिंदवाड़ा, बालाघाट, मंडला, छतरपुर, शिवपुरी, खरगोन, गुना, रतलाम, मंदसौर, बड़वानी और नरसिंहपुर में पहले से रक्त अवयव अलग करने के लिए मशीनें लगी हैं। मेडिकल कालेज से संबद्ध अस्पतालों में भी यह सुविधा है।
 
खून के अवयव और जरूरत
 
इसमें पांच मुख्य अवयव होते हैं। सबसे ज्यादा जरूरत आरबीसी की होती है। हीमोग्लोबिन कम होने पर इसे चढ़ाया जाता है। दूसरा है प्लेटलेट्स। डेंगू, ब्लड कैंसर आदि बीमारियों में इसे चढ़ाया जाता है। प्लाज्मा का उपयोग पीलिया के मरीजों में होता है। बाकी दो तत्वों का उपयोग भी अलग-अलग बीमारियों में किया जाता है।
 
चार लाख यूनिट रक्त की और जरूरत
 
प्रदेश को अभी प्रतिवर्ष आठ लाख यूनिट रक्त की जरूरत है, पर स्वैच्छिक रक्तदान से लगभग चार लाख यूनिट ही मिल पाता है। मरीजों को सिर्फ जरूरत का तत्व ही चढ़ाया जाएगा तो यह कमी बहुत हद तक दूर हो जाएगी। दूसरा यह कि मरीज को जिस अवयव की आवश्यकता है वही दिया जाएगा तो उसे भी नुकसान नहीं होगा।